तारों में हँसती
फूलों सी खिलती
आज भी इस मन में
बसती है तू
मिट्टी की खुश्बू
अब भी तुझे लुभाती है
पहिली बारिश में
अब भी भीगती है तू
अब भी संग मेरे
धूप में चलती है
आँचल की शीतल छाँव
अब भी करती है तू
मेरी अंखियों के झरोखों से
अब भी झांकती है तू
अब भी मन की देहरी पर
दीप जलाती है तू
बोलती सी आँखें तेरी
हरपल बतियाती हैं मुझसे
फिर भी दुनिया कहती है
मौन हूँ मैं
और मौन है तू....
अब भी करती है तू
मेरी अंखियों के झरोखों से
अब भी झांकती है तू
अब भी मन की देहरी पर
दीप जलाती है तू
बोलती सी आँखें तेरी
हरपल बतियाती हैं मुझसे
फिर भी दुनिया कहती है
मौन हूँ मैं
और मौन है तू....
पर तू तो मेरे साथ है , मुझीमें लीन - बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंगहरे अहसास।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
संध्या जी,..अच्छी रचना सुंदर पोस्ट,...बधाई
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना..
नेताओं की पूजा क्यों, क्या ये पूजा लायक है
देश बेच रहे सरे आम, ये ऐसे खल नायक है,
इनके करनी की भरनी, जनता को सहना होगा
इनके खोदे हर गड्ढे को,जनता को भरना होगा,
खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |
जवाब देंहटाएंजब एक ही हैं तो शब्दों की क्या आवश्यकता ...... बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंभावों को खूबसूरती से उकेरा है ... बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरती से पिरोया है भावों को ...
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूबसूरत भावपूर्ण प्रस्तुति है आपकी.
जवाब देंहटाएंमौन के शब्द दिल में गुंजन कर रहे है जी.
मेरे ब्लॉग पर आयीं आप और सुन्दर भावपूर्ण टिपण्णी भी की
आपने,इसके लिए मैं दिल से आभारी हूँ आपका.
मौन और मुखरता के प्रतिमान भिन्न हैं... जिस वार्ता की बात कविता कर रही है... उसे सुनने समझने के लिए एक अलग शक्ति चाहिए जो प्रायः नहीं मिलती... इसीलिए सुन्दर वार्तालाप से अनजान लोग मौन समझ लेते हैं शब्दों को...!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना!
सुन्दर शब्दों से सुसज्जित लाजवाब रचना लिखा है आपने !बधाई!
जवाब देंहटाएंमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
ये मौन कुछ ऐसा ही होता है , बहुत ही प्यारी लगी संध्या जी , आपकी रचना.
जवाब देंहटाएंबोलती सी आँखें तेरी
जवाब देंहटाएंहरपल बतियाती हैं मुझसे
फिर भी दुनिया कहती है
मौन हूँ मैं
और मौन है तू....
....सच में मौन की एक अलग ही भाषा होती है...बहुत सुंदर प्रस्तुति..
मेरी अंखियों के झरोखों से
जवाब देंहटाएंअब भी झांकती है तू
अब भी मन की देहरी पर
दीप जलाती है तू
मौन के ये शब्द बहुत ही अच्छे लगे।
सादर
अति सुन्दर |
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं ||
dcgpthravikar.blogspot.com
मौन की भाषा अमर होती है
जवाब देंहटाएंशब्दों में शीरीं द्खल होती है
उनसे मिलने की हसरत लिए
यूँ ही रोज शामो शहर होती है
सुंदर कविता के लिए आभार
lajawaaab!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दरता से एहसास लिखीं है आपने ...!
जवाब देंहटाएंजहाँ शब्दों की सीमा समाप्त होती है वहीँ से मौन की भाषा शुरू होती है !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता !
सुंदर भाव की सुंदर रचना .............
जवाब देंहटाएंखूबसूरत , बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.....मन को छू गई.....
जवाब देंहटाएंये मौन भी बहुत कुछ कह जाता ही ... गहरे एहसास को बयान कर जाता है ...
जवाब देंहटाएंvery nice.
जवाब देंहटाएंbhaut hi khubsurat............rachna....
जवाब देंहटाएंगहन संवेदनशील...बहुत सुंदर अल्फाज़ ..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार.....संध्या जी
bahut sunder ...
जवाब देंहटाएंअकेलेपन का विश्वसनीय याथी है मौन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता।
अकेलेपन का विश्वसनीय साथी है मौन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता।
▬● संध्या जी , आपकी लिखी रचना पहली बार देखी... पसंद आया आपका कहने का अंदाज...
जवाब देंहटाएंमौन हूँ मैं
और मौन है तू.... ( बहुत खूब )
ठीक लगे तो यहाँ आकर भी देखिये :
Meri Lekhani, Mere Vichar..
Gaane Anjaane.. (Bhoole Din, Bisri Yaaden..)
.
कल 11/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन रचना....
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