हाय!!! महंगाई .....
हाय हाय महंगाई..
महंगाई - महंगाई
न जाने कहाँ से आई.
बेबस शासन इसके आगे,
ये किसी के समझ न आई.
करते थे दाल-रोटी से गुज़ारा,
अब वो भी नसीब नहीं भाई.
सब नकली हर जगह मिलावट,
नीयत में भी खोट है समाई.
हाहाकार मचा दी तूने ,
कैसे गूंजेगी शहनाई.
दिन दूनी आबाद हो रही,
तू क्या जाने पीर पराई.
करूणा दया ने तोडा नाता,
अब तो जान पर बन आई.
नींद उड़ा दी जनता की,
और खुद लेती अंगड़ाई.
आग लगा कर जनजीवन में,
तुझे जरा भी शर्म न आई.
जगती आशा देख बजट से,
हौले से मुस्काई.
खुदा कहाँ तू , बचा ले अब तो,
तेरी कैसी है ये खुदाई.
हाय हाय महंगाई..
महंगाई - महंगाई
न जाने कहाँ से आई.......
संध्या शर्मा