शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

हाय!!! महंगाई ..... 


हाय हाय महंगाई..
महंगाई - महंगाई
न जाने कहाँ से आई.

बेबस शासन इसके आगे,
ये किसी के समझ न आई.

करते थे दाल-रोटी से गुज़ारा,
अब वो भी नसीब नहीं भाई.

सब नकली हर जगह मिलावट,
नीयत में भी खोट है समाई.

हाहाकार मचा दी तूने ,
कैसे गूंजेगी शहनाई.

दिन दूनी आबाद हो रही,
तू क्या जाने पीर पराई.

करूणा दया ने तोडा नाता,
अब तो जान पर बन आई.

नींद उड़ा दी जनता की,
और खुद लेती अंगड़ाई.

आग लगा कर जनजीवन में,
तुझे जरा भी शर्म न आई.

जगती आशा देख बजट से,
हौले से मुस्काई.

खुदा कहाँ तू , बचा ले अब तो,
तेरी कैसी है ये खुदाई.

हाय हाय महंगाई..
महंगाई - महंगाई
न जाने कहाँ से आई.......
संध्या शर्मा  



  

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

हर लम्हा - हर पल... संध्या शर्मा

लो गुज़र गया 
एक और दिन
एक और झूठी आस में
अब हंसती भी हूँ 
तो लगता है
अहसान कर रही हूँ
अपने आप पर
खुश्क आँखें भी अब 
अश्क टपकाती नहीं
बस यूँ ही लगता है
हर लम्हा हर पल...
कि ....
तरस आ जाये कभी
वक़्त को भी 
मुझ पर
क्योकि.... 
अब भी है आसरा तेरा
हर पल है अहसास तेरा
और ....
मिल जाये मुझे वो पल
जिसकी है तलाश मुझे
हर लम्हा - हर पल............

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

बस इतनी दुआ दो


उम्रभर सूरज तुमको  माना करेंगे ,
मेरे मन का तुम अँधियारा मिटा दो.
दीया हूँ एक, दुआ के वास्ते ही सही,
चलो आओ गंगा में मुझको बहा दो.
लो आंच इसकी भी कम होने लगी है,
ये आतिश बुझे न ज़रा तो हवा दो.
तसव्वुर का पानी जो ठहरा हुआ है,
यादों का अपनी एक कंकर गिरा दो.
खुशियाँ हैं ग़म है, होश बेहोशियाँ हैं,
जिंदगानी से मेरी, ये जलसा उठा दो,
क़ायम रहे ये दीवानगी अब दुआ है,
खातिर मेरी बस इतनी दुआ दो,
यादों की बस्ती का हूँ एक मुसाफिर,
दो पल ठहरने की न इतनी सज़ा दो..