सकल भुवन के आँगन गूंजे,
आलोकित मंगल - गान नए .
कोटि-कोटि जन मिलजुल छेड़ें,
एकता के अभियान नए .
कैसी थी वह हिम्मत अपनी,
कौन सा था वह अद्भुत बल .
छुपे थे जिसमे सब प्रश्नों के,
सीधे सच्चे सुन्दर हल .
जिसने गुलामी की बेडी को,
काट हमें आज़ाद किया .
नए सिरे से उजड़े गुलशन को,
फिर जिसने आबाद किया .
वक़्त मांगता उसी शक्ति से,
फिर हमसे बलिदान नए .
बेशक पूरब - पश्चिम जायें,
उत्तर- दक्षिण की धारा जोड़ें .
जाल बिछा लम्बी सड़कों का,
चाहे भारत सारा जोड़ें .
लेकिन उससे पहले जोड़ें,
टूटे, बिखरे, छिटके दिल .
नवयुग के नवराष्ट्र यज्ञ में,
बच्चा-बच्चा होगा शामिल .
ऊँच-नीच का रंग-रूप का,
भेद भूल करें काम नए.
हर भारतवासी जन को,
एक दीपक सा बनना होगा .
पहले खुद के भीतर का ही,
अँधियारा हरना होगा .
जिन्हें प्रकाशित करना है,
अपनों का जीवन .
उन्हें सत्य की ज्वाला में,
हर एक पल जलना होगा .
दिव्य पराक्रम से ही होंगे,
सृजन नए, निर्माण नए.
लाल हैं हम भारत-माता के,
अलग कभी ना हो सकते .
सब मिल देंगे माता को,
रत्न नए परिधान नए .
कोटि-कोटि जन मिलजुल छेड़ें,
एकता के अभियान नए.....