बीती यादें उमड़ -घुमड़ के
आ रही रही हैं मेरे मन में
कैसे-कैसे वो दिन हैं बीते
क्या-क्या छूटा बचपन में
आ रही रही हैं मेरे मन में
कैसे-कैसे वो दिन हैं बीते
क्या-क्या छूटा बचपन में
रोज सबेरे सूरज आता
स्वर्ण रश्मि साथ लिए
नंगे पैरों दौड़ते थे हम
तितलियों को हाथ लिए
गेंद खेलना, रस्सी कूदना
गीली रेत के घर बनाना
भरी दुपहरी छत पर जाना
भैया के संग पतंग उड़ाना
खुशबू से महकती रसोई
चूल्हे पे पकता भात-दाल
खुश होना जब धोती माँ
रविवार को रीठे से बाल
स्वर्ण रश्मि साथ लिए
नंगे पैरों दौड़ते थे हम
तितलियों को हाथ लिए
गेंद खेलना, रस्सी कूदना
गीली रेत के घर बनाना
भरी दुपहरी छत पर जाना
भैया के संग पतंग उड़ाना
खुशबू से महकती रसोई
चूल्हे पे पकता भात-दाल
खुश होना जब धोती माँ
रविवार को रीठे से बाल
आंगन में चारपाई बिछौना
बारिश की बूंदों से भीगना
लेटे-लेटे कहानियां सुनना
हुई सांझ तो तारे गिनना
पेड़ों से झांकता हुआ चाँद
पीपल, नीम की ठंडी छाँव
गाय-बैलों के घुंघरू के सुर
हरी-हरी घास, धूल सने पाँव
हँसते खेलते दौड़ते भागते
पैदल चले जाना स्कूल
स्कूल की छुट्टी होते ही
खेल में हो जाना मशगूल
बारिश की बूंदों से भीगना
लेटे-लेटे कहानियां सुनना
हुई सांझ तो तारे गिनना
पेड़ों से झांकता हुआ चाँद
पीपल, नीम की ठंडी छाँव
गाय-बैलों के घुंघरू के सुर
हरी-हरी घास, धूल सने पाँव
हँसते खेलते दौड़ते भागते
पैदल चले जाना स्कूल
स्कूल की छुट्टी होते ही
खेल में हो जाना मशगूल
पल में हँसते पल में रोते
पल में होती खूब लड़ाई
पल में जाते हम सब भूल
यादें बचपन की रही छाई
पल में होती खूब लड़ाई
पल में जाते हम सब भूल
यादें बचपन की रही छाई
जाने कितनी बातें,यादें
बसी हैं मन के कोने में
जब छा जाएं आँखों में
घंटों लग जाते हैं सोने में
बसी हैं मन के कोने में
जब छा जाएं आँखों में
घंटों लग जाते हैं सोने में