बड़ी मुश्किल से रात कटती
कब सुबह हो और उसे मिलूं
भुनसारे की चिरैया के जागते ही
जग जाती थी वो
पता नहीं क्यों बहुत भाता था
संग उसका
सिर्फ बरसात के दिनों में ही मिलती थी
उसका छोटी - छोटी साड़ी पहनना
और उसका वह खास खिलौना
ईंट बनाने का सांचा
उसकी मोटर गाड़ी थी
एक रस्सी बाँधकर चलाती
बहुत अच्छा लगता
लगता भी क्यों नहीं
बचपन होता ही ऐसा है
खेल कूद गुड्डे-गुड़िया
इतनी सी दुनिया होती है बचपन की
वो भी एक गुड़िया जैसी लगती
लेकिन वह गाती भी बहुत अच्छा थी
उसके साथ खेलते हुए हमने भी सीख लिया
उसका गाना
घर आकर जब हम गुनगुनाते
"ओ री बऊ कबे बजहे रमतूला"
माँ बहुत गुस्सा होती
कई बार जानना चाह माँ से इसका अर्थ
माँ बहाने से टाल जाती
अचानक एक साल वह नहीं आई
मैं बहुत दुखी थी माँ से पूछा
माँ वह इस साल क्यों नहीं आई
माँ बोली....
अब वह कभी नहीं आएगी
बज गया रमतूला........
कब सुबह हो और उसे मिलूं
भुनसारे की चिरैया के जागते ही
जग जाती थी वो
पता नहीं क्यों बहुत भाता था
संग उसका
सिर्फ बरसात के दिनों में ही मिलती थी
उसका छोटी - छोटी साड़ी पहनना
और उसका वह खास खिलौना
ईंट बनाने का सांचा
उसकी मोटर गाड़ी थी
एक रस्सी बाँधकर चलाती
बहुत अच्छा लगता
लगता भी क्यों नहीं
बचपन होता ही ऐसा है
खेल कूद गुड्डे-गुड़िया
इतनी सी दुनिया होती है बचपन की
वो भी एक गुड़िया जैसी लगती
लेकिन वह गाती भी बहुत अच्छा थी
उसके साथ खेलते हुए हमने भी सीख लिया
उसका गाना
घर आकर जब हम गुनगुनाते
"ओ री बऊ कबे बजहे रमतूला"
माँ बहुत गुस्सा होती
कई बार जानना चाह माँ से इसका अर्थ
माँ बहाने से टाल जाती
अचानक एक साल वह नहीं आई
मैं बहुत दुखी थी माँ से पूछा
माँ वह इस साल क्यों नहीं आई
माँ बोली....
अब वह कभी नहीं आएगी
बज गया रमतूला........