गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

धरती की वेदना - जन्मा कोरोना

धरती माँ ने सही

असह्य वेदना

जन्मा कोरोना

कभी रफ़्तार होती थी

मायने ज़िंदगी की

थम गई दुनिया

एक ही पल में

धरा ने खोल दिया

अपने घर का झरोखा

आसमान साफ़ किया

आँगन बुहारा

कुछ परिंदे उड़ा दिए

कुछ सहेज लिये 

जल पवित्र किया 

नदियाँ जी उठीं  

हवा शुद्ध की

अल्प साधनों में

जीना सिखा दिया

लौटा दी प्राकृतिक छटा

ताकि सांस ले सके जीवन

पनपती रहें वनस्पतियां

बचे रहें पहाड़

आओ इस नए साल में

संकल्प लें हम सब

धरती माँ की आज्ञा

सहजता से स्वीकार

उसे सहयोग करेंगे

उसके आँगन को

सदा सहेजकर रखेंगे 

मानव जाति को बचाने....

 नव संकल्प के साथ आंग्ल नूतन वर्ष की आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें ... 


गुरुवार, 13 अगस्त 2020

कुछ मन ने कहा ....

आँचल उड़ा 
नभ से बादल गिरा
आह छन गई
प्रीत बन गई
भावनाएं गहराई
अबीर बन गई
गीत बरसे
स्वर झनझनाने लगे
बिन बाती बिन तेल
दीप जगमगाने लगे...

जब तेरा साथ है
मन में विश्वास है
मेरे गीतों को
तेरा आधार है
तेरे बिन जीवन
निराधार है
जैसे पराग फूलों का
श्रृंगार है....   
  
 
           

सोमवार, 9 मार्च 2020

होली है भई होली है ....



रंग-अबीर-गुलाल उड़ाती 
ढोल-नगाड़े-चंग बजाती
फिरती मस्तों की टोली है 
होली है भई होली है

कहीं फाग, कहीं पर रसिया 
सबकी प्यारी बोली है 
भंग-रंग के मद में गाते 
कानों में मिश्री घोली है 

फिरती मस्तों की टोली है 
होली है भई होली है 

टेसू दहके, महुआ गमके 
फूलों भरी रंगोली है 
बाजे शहनाई ढोल मंजीरे 
कोयल की तान अलबेली है 

फिरती मस्तों की टोली है 
होली है भई होली है 

सद्भाव बढ़े, कटुता मिटे 
हर रंग प्रेम की रोली है 
भेदभाव और द्वेष मिटाती 
खुशियों भरी ठिठौली है 

फिरती मस्तों की टोली है 
होली है भई होली है 

झूम झूमकर नाच गा रहे 
मिलजुल सब हमजोली है 
लाल गुलाबी नीले पीले
रंगो से भर गई झोली है

रंग-अबीर-गुलाल उड़ाती 
ढोल-नगाड़े-चंग बजाती
फिरती मस्तों की टोली है 
होली है भई होली है..... 

फ़ीके न पड़ें कभी ज़िन्दगी के रंग 
आप अभी को रंगो के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनायें व बधाई ... 

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

अधूरे सपनों की कसक......


‘सपने’ सिर्फ़ कहानी नही, यह तो एक... सफ़र है – ज़िंदगी का सफ़र। जहाँ आँखें सपने देखती हैं, उनमे से कुछ पूरे होते हैं तो कुछ अधूरे रह जाते हैं।

जैसे सपनों के पूरे होने पर ज़िन्दगी चलती रहती है, वैसे ही उनके टूटने पर थमती नहीं। वक़्त  और परिस्थितियां इस अधूरेपन के साथ जीना सिखा देती हैं, लेकिन ज़िंदगी चलती रहती है....

कहते हैं जब हम सपना ही नहीं देखेंगे तो उन्हें पूरा कैसे करेंगे। हम जब तक जीवित हैं सपने देखते रहते हैं। उम्र के हर पड़ाव और परिस्थियों के साथ बदलते सपने।

ब्लॉगरों के ऐसे ही अधूरे सपनों की कसक को रेखा श्रीवातव दी ने संजोकर एक पुस्तक का रूप दिया है, जो अत्यंत ही श्रमसाध्य कार्य था। 

एक मार्च को इस पुस्तक का विमोचन किया जाना है, तो दिल्ली में जमावड़ा होगा देश के जाने - माने हिंदी ब्लॉगरों का। विमोचन के बहाने ब्लॉगर मिलन इस कार्यक्रम  की शोभा में चार चाँद लगा देगा। 

हिंदी ब्लॉगिंग की बगिया पुनः हरी भरी हो, इसे नई दिशा और दशा प्राप्त हो। इसी आशा और विश्वास के साथ कार्यक्रम की सफलता हेतु रेखा दी व पुस्तक के सभी लेखकों व पूरी सम्पादकीय टीम को हार्दिक बधाई व शुभकामनायें ...