भारतीय संस्कृति का महापर्व है दीपावली. असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरत्व की ओर जाने का त्यौहार है दीपावली. और दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति. इसे सिक्ख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मानते हैं.
माना जाता है, कि इस दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात् वापस अयोध्या लौटे थे, और अपने परम प्रिय राजा के स्वागत में अयोध्या वासियों ने घी के दीप जलाये थे. उस दिन काली अमावस्या की यह रात दीयों की रोशनी में जगमगा उठी. तब से आज तक यह प्रकाश पर्व हर्षौल्लास से प्रति वर्ष मनाया जाता है.
दीप जलाने के पीछे भी अनेक प्रथायें व कहानियां प्रचलित हैं:-
जैसे कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था और हर्ष से भरी जनता ने धी के दीप जलाये.
जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थकर महावीर स्वामीजी का निर्वाण दिवस दिवाली को ही है.
एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध भी इसी दिन किया था और इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात् श्रीलक्ष्मी व धन्वन्तरी प्रकट हुए थे.
सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिंद सिंह जी को १६१९ में दिवाली के दिन ही रिहा किया गया था, और इसी दिन अमृतसर में १५७७ में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था.
नेपालियों का नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है. महर्षि दयानंद सरस्वती ने भारतीय संस्कृति का नायक बनकर इसी दिन अजमेर के निकट अवसान लिया था. इसी तरह और भी कई घटनाये जुडी हुई हैं इस दिन से.
तो दीपकों के तेज रौशनी से प्रकाशमान अमावस की रात्रि एक चैतन्य दिवस है, आत्म चैतन्यता का दिवस. और इन्ही दीपों को लड़ियों में पिरोकर बनती है एक अनोखी दीपमालिका, जिसके प्रत्येक दीप में समायी होती है एक मनोकामना, और इन्हीं मनोकामनाओं की पूर्णता का दिवस है दिवाली.
और इन्ही दीपों में से एक दीप होता है, जो नन्हे-मुन्नों से सजे परिवार में मंगल कामनाओ के साथ सजाया जाता है एक बहन द्वारा.
एक दीप वह होता है, जो नए जीवन की महक से परिपूर्ण, एक नवविवाहिता द्वारा एक परिवार से दूसरे परिवार में लाया जाता है.
एक दीप होता है जब धरती पर जन्म लेने की ख़ुशी में किसी नन्हे बच्चे के स्वागत में जलाया जाता है. जो जिंदगी के कोरे कागज़ पर उजले अक्षरों के रूप में जगमगाकर मनुष्य को निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है.
एक ऐसा भी दीप होता है जिसके सहारे विरहणी अपने प्रिय की याद में अपनी पूरी जिंदगी काट देती है.
एक दीप होता है जिसकी लौ में वर-वधू पहली बार एक-दूसरे को निहारते हैं, और समझ लेते हैं एक दूसरे के मन की बातें.
और एक दीया होता है जो जीवन की सम्पूर्ण पूजा के पश्चात् प्रभु के चरणों में समर्पित किया जाता है जो खुद जलकर और दूसरों को रौशनी देकर जिंदगी की सार्थकता सिद्ध करता है.
जब इन सारे दीपों को एक कतार में संजोया जाता है, तो बन जाती है दीपावली.
तो आइये इस दीपावली पर अपने मन के अहंकार, भेद, बैर और मोह रुपी अंधकार को रौशनी में बदल दें, फिर देखिये लक्ष्मी कैसे नहीं आती आपके द्वार.
माँ महालक्ष्मी से आप सभी की समृद्धि, सम्पन्नता, सदबुद्धि, श्रीवृद्धि, सम्मान और यश की मंगल कामना करती हूँ. आप सभी को दीपावली की हार्दिक-हार्दिक शुभकामनायें.
"दीया का गुण तेल है, राखे मोटी बात
दीया करता चाणना, दीया चाले साथ
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दादू दयाल