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सोमवार, 24 अक्टूबर 2011

दीया करता चाणना... संध्या शर्मा


             भारतीय संस्कृति का महापर्व है दीपावली. असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरत्व की ओर जाने का त्यौहार है दीपावली. और दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति. इसे सिक्ख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मानते हैं.

           माना जाता है, कि इस दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात्  वापस अयोध्या
लौटे थे, और अपने परम प्रिय राजा के स्वागत में अयोध्या वासियों ने घी के दीप जलाये थे. उस दिन काली अमावस्या की यह रात दीयों की रोशनी में जगमगा उठी. तब से आज तक यह प्रकाश पर्व हर्षौल्लास से प्रति वर्ष मनाया जाता है.

दीप जलाने के पीछे भी अनेक प्रथायें व कहानियां प्रचलित हैं:-
जैसे कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है
कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था और हर्ष से भरी जनता ने धी के दीप जलाये.

जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थकर महावीर स्वामीजी का निर्वाण दिवस दिवाली को ही है.

एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध भी इसी दिन किया था और इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात् श्रीलक्ष्मी व धन्वन्तरी प्रकट हुए थे.

सिक्खों के छठे गुरु  हरगोबिंद सिंह जी  को १६१९ में दिवाली के दिन ही रिहा किया गया था, और इसी दिन अमृतसर में १५७७ में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था.

नेपालियों का नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है. महर्षि दयानंद सरस्वती ने भारतीय संस्कृति का नायक बनकर इसी दिन अजमेर
के निकट अवसान लिया था. इसी तरह और भी कई घटनाये जुडी हुई हैं इस दिन से.
         तो दीपकों के तेज रौशनी से प्रकाशमान अमावस की रात्रि एक चैतन्य दिवस है, आत्म चैतन्यता का दिवस. और इन्ही दीपों
को लड़ियों में पिरोकर बनती है एक अनोखी दीपमालिका, जिसके प्रत्येक दीप में समायी होती है एक मनोकामना, और इन्हीं मनोकामनाओं की पूर्णता का दिवस है दिवाली.

और इन्ही दीपों में से एक दीप होता है, जो नन्हे-मुन्नों से सजे परिवार में मंगल कामनाओ के साथ सजाया जाता है एक बहन द्वारा.

एक दीप वह होता है, जो नए जीवन की महक से परिपूर्ण, एक नवविवाहिता द्वारा एक परिवार से दूसरे परिवार में लाया जाता है.

एक दीप होता है जब धरती पर जन्म लेने की ख़ुशी में किसी नन्हे बच्चे के स्वागत में जलाया जाता है. जो जिंदगी के कोरे कागज़ पर उजले अक्षरों के रूप में जगमगाकर मनुष्य को निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है.

एक ऐसा भी दीप होता है जिसके सहारे विरहणी अपने प्रिय की याद में अपनी पूरी जिंदगी काट देती है.

एक दीप होता है जिसकी लौ में वर-वधू पहली बार एक-दूसरे को निहारते हैं, और समझ लेते हैं एक दूसरे के मन की बातें.

और एक
दीया होता है जो जीवन की सम्पूर्ण पूजा के पश्चात् प्रभु के चरणों में समर्पित किया जाता है जो खुद जलकर और दूसरों को रौशनी देकर जिंदगी की सार्थकता सिद्ध करता है.

जब इन सारे दीपों को एक कतार में संजोया जाता है, तो बन जाती है दीपावली.

         तो आइये इस दीपावली पर अपने मन के अहंकार,
भेद, बैर और मोह रुपी अंधकार को रौशनी में बदल दें, फिर देखिये लक्ष्मी कैसे नहीं आती आपके द्वार.
        
माँ महालक्ष्मी से  आप सभी की समृद्धि, सम्पन्नता, सदबुद्धि,  श्रीवृद्धि, सम्मान और यश की मंगल कामना करती हूँ. आप सभी को दीपावली की हार्दिक-हार्दिक शुभकामनायें. 
 
"दीया का गुण तेल है, राखे मोटी बात
दीया करता चाणना, दीया चाले साथ
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दादू दयाल
           
  

सोमवार, 17 अक्टूबर 2011

इसे कहते हैं वरदान... संध्या शर्मा

एक दिन लक्ष्मी जी के प्रिय उल्लू को  जाने क्या हुआ
रूठे-रूठे से लग रहे थे
लक्ष्मी जी ने पूछा
क्या हुआ क्यों उदास हो ?
आज इतने चुप से क्यों हो ?
इतना सुनना था कि
फूट पड़ा उनका गुस्सा
बोले...
गरुड़, मूषक, सिंह सबकी पूजा होती है
सभी कितने खुशनसीब हैं
मैं भी तो आपका वाहन हूँ
और इतना आज्ञाकारी हूँ
फिर मेरे साथ ये अन्याय क्यों ?
लक्ष्मी जी मुस्कराईं
उन्हें प्यार से समझाते हुए बोलीं
ठीक है उदास क्यों होते हो
साल में एक दिन तुम्हे भी देती हूँ
दीपावली से ठीक ग्यारह दिन पहले का दिन
तुम भी पूजे जाओगे उस दिन
पर बदले में अपने प्रिय को उपहार देने होंगे
उनकी हर बात माननी होगी
उल्लूजी ठहरे आज्ञाकारी
तुरंत मान गए
बहुत खुश हो गए
और देखिये
आज तक पूजे जाते हैं
हर करवा चौथ के दिन....

 

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2011

उड़ान.... संध्या शर्मा

आज फिर जी लिया
खुद को
फुर्सत के पलों में
आज फिर देखा
हर दिशा में
स्वच्छंद होकर
खुले आसमान में
उड़ते पक्षियों को
मैं भी उड़ चली
धीरे-धीरे
उनके पीछे-पीछे...

देखो
लौट आये हैं
सबके सब
थक हारकर
अपने-अपने घोसलों में
पूरी करके
अपनी-अपनी खोज...

और मैं
उड़ रही हूँ अब भी
बिना रुके
बिना थके
पंख फैलाये
अनंत आकाश में
अब भी यहीं हूँ
एक तलाश में...

मेरे लिए महत्वपूर्ण है
गति और निरंतरता
रफ़्तार धीमी हो
या हो तेज़
पहुंचा ही देती है
गंतव्य तक
एक ऐसा गंतव्य
जहाँ पहुंचकर भी लगता है
बाकी है अब भी कुछ
कुछ शेष है अभी भी ...

यही भावना है
जो बल देती है
मेरे पंखों को
जोश भरती है
मेरी उड़ान में
एक अनंत उड़ान
मेरे विचारों की उड़ान....  
 

बुधवार, 5 अक्टूबर 2011

"काश कि फिर मर जाये रावण,..." संध्या शर्मा

हर साल जलाते हो जिसको,
हर साल जन्म ले लेता है.
कद छोटा नहीं होता जिसका,
दिनों दिन बढता जाता है.
आ जाता है रूप बदलकर, 
देखो अब भी ज़िन्दा है.
माया, मोह, अहंकार, क्रोध बन,
रहता सबके अन्दर है.
अपने अन्दर का राम जगाओ,
राम राज्य फिर वापस लाओ.
रावण की सच्चाई जानो,
मन के भीतर का रावण मारो.
रावण ने ही राम मिलाये,
हेतु वही था जो धरा पर आये.
ये सतयुग की सच्चाई है,
पर आज जहाँ पर छाई है....
"काश कि फिर मर जाये रावण,
हो जाये फिर से धरती पावन..."

विजय पर्व "विजयादशमी"  पर आप सभी को ढेर सारी शुभकामनायें... संध्या शर्मा