गुरुवार, 24 सितंबर 2015

मनोकामना सिद्ध महालक्ष्मी उत्सव...



महाराष्ट्र में महालक्ष्मी का तीन दिवसीय पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी से आरम्भ होता है। "महालक्ष्मी आली घरात सोन्याच्या पायानी भर भराटी घेऊन आली सर्व समृद्धि घेऊन आली, पंक्तियों के साथ महालक्ष्मी की अगवानी की जाती है। माता लक्ष्मी सपरिवार पधारें व हर घर में सुख समृद्धि और सदैव लक्ष्मी का वास हो ऐसी मनोकामनाओं के साथ इस तीन दिवसीय महालक्ष्मी उत्सव का आयोजन कर कई पीढिय़ों से चली आ रही परंपरा का बडी ही श्रद्धा व उत्साह से निर्वाह किया जाता है। आकर्षक सज्जा और तीन दिनों तक विविध आयोजन किए जाते हैं।

लक्ष्मी ‘लक्ष्य’ शब्द से बना है। जिसका अर्थ होता है ‘चिन्ह।’ लेकिन किस चिन्ह विशेष से लक्ष्मी बनी है, यह अज्ञात है। वह मानते हैं कि स्वस्तिक चिन्ह लक्ष्मी का ही प्रतीक है। लक्ष्मी की पूजा में आज भी स्वस्तिक चिन्ह बनाया जाता है। दिवाली के दिन व्यापारी अपने बही-खाते में स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर ‘शुभ- लाभ’ लिखते हैं और उसकी पूजा करते हैं।

माँ लक्ष्मी के 8 रूप माने जाते है | हर रूप विभिन्न कामनाओ को पूर्ण करने वाला है | दिवाली और हर शुक्रवार को माँ लक्ष्मी के इन सभी रूपों की वंदना करने से असीम सम्पदा और धन की प्राप्ति होती है |

१) आदि लक्ष्मी या महालक्ष्मी :

माँ लक्ष्मी का सबसे पहला अवतार जो ऋषि भृगु की बेटी के रूप में है।

२) धन लक्ष्मी :

धन और वैभव से परिपूर्ण करने वाली लक्ष्मी का एक रूप | भगवान विष्णु भी एक बारे देवता कुबेर से धन उधार लिया जो समय पर वो चुका नहीं सके , तब धन लक्ष्मी ने ही विष्णु जी को कर्ज मुक्त करवाया था |

३) धन्य लक्ष्मी :

धन्य का मतलब है अनाज : मतलब वह अनाज की दात्री है।

४) गज लक्ष्मी :

उन्हें गज लक्ष्मी भी कहा जाता है, पशु धन की देवी जैसे पशु और हाथियों, वह राजसी की शक्ति देती है ,यह कहा जाता है गज - लक्ष्मी माँ ने भगवान इंद्र को सागर की गहराई से अपने खोए धन को हासिल करने में मदद की थी । देवी लक्ष्मी का यह रूप प्रदान करने के लिए है और धन और समृद्धि की रक्षा करने के लिए है।

५) सनातना लक्ष्मी :

सनातना लक्ष्मी का यह रूप बच्चो और अपने भक्तो को लम्बी उम्र देने के लिए है। वह संतानों की देवी है। देवी लक्ष्मी को इस रूप में दो घड़े , एक तलवार , और एक ढाल पकड़े , छह हथियारबंद के रूप में दर्शाया गया है ; अन्य दो हाथ अभय मुद्रा में लगे हुए है एक बहुत ज़रूरी बात उनके गोद में एक बच्चा है।

६) वीरा लक्ष्मी :

जीवन में कठिनाइयों पर काबू पाने के लिए, लड़ाई में वीरता पाने ले लिए शक्ति प्रदान करती है।

७) विजया लक्ष्मी या जाया लक्ष्मी :

विजया का मतलब है जीत। विजय लक्ष्मी जीत का प्रतीक है और उन्हें जाया लक्ष्मी भी कहा जाता है। वह एक लाल साड़ी पहने एक कमल पर बैठे, आठ हथियार पकडे हुए रूप में दिखाई गयी है ।

८) विद्या लक्ष्मी :

विद्या का मतलब शिक्षा के साथ साथ ज्ञान भी है ,माँ यह रूप हमें ज्ञान , कला , और विज्ञानं की शिक्षा प्रदान करती है जैंसा माँ सरस्वती देती है। विद्या लक्ष्मी को कमल पे बैठे हुए देखा गया है , उनके चार हाथ है , उन्हें सफेद साडी में और दोनों हाथो में कमल पकड़े हुए देखा गया है , और दूसरे दो हाथ अभया और वरदा मुद्रा में है.

मान्यता है कि माता लक्ष्मी के जिन रूपों की पूजा की जाती है वो जेठानी व देवरानी हैं। अपने दो बच्चों के साथ वे इन दिनों मायके आती हैं। मायके में आने पर तीन दिनों तक उनका स्वागत किया जाता है। पहले दिन स्थापना, दूसरे दिन भोग और तीसरे दिन हल्दी कुमकुम के साथ माता की विदाई। तीनों दिनों में महालक्ष्मी की प्रतिमा ज्येष्ठा व कनिष्का का विशेष शृंगार किया जाता है। ज्येष्ठा लक्ष्मी को दरिद्रा कहा गया है और इसके आने की आहट ही प्राण हरण जैसी दुखदाई होती है। लोग इसे जाते हुए देखकर ही खुश होते हैं। इस पर्व में कनिष्ठा के संग ज्येष्ठा भी पूजित होती है। कहा जाता है कि पीहर की महिमा ही अलग है, वहां तो सभी बेटियों को बराबर मान मिलता है।

गुझियों का फुलहरा बांधकर की जाती है महालक्ष्मी की पूजा । घरों में तरह-तरह के पकवान बनते हैं। यह पूजा विशेषकर घर की बहुओं द्वारा की जाती है। लक्ष्मी की इन मूर्तियों की स्थापना अनाज मापने वाली पायली के ऊपर की जाती है, जिसमे अंदर गेहूं और चावल भरे जाते हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि घर धन-धान्य से भरा रहे।

महालक्ष्मीजी की विदाई में विशेष दाल, चावल, गुझिया, मोदक, चिरवंट, सेवइयां की खीर व अनेक तरह के मिष्ठान सहित विशेष रुप से सोलह प्रकार की सब्जियों का भोग लगाया जाता है। पुरणपोली, पातलभाजी के साथ छप्पन भोग लगाया जाता है। छप्पन भोगों में पुरणपोली, सेवइयां, चावल की खीर, पातलभाजी, तिल्ली, खोपरा, खसखस तथा मूंगफली के दाने की चटनी, लड्डू, करंजी, मोदक, कुरोडी, पापड़, अरबी के पत्ते आदि का भोग लगाया जाता है। विशेष रूप से ज्वार के आटे की आम्बिल और पूरणपोली का महाप्रसाद प्रमुख होता है। छप्पन पकवान तैयार कर केले के पत्ते पर भोग लगाया जाता है। इसके बाद परंपरानुसार सर्वप्रथम सुहागिनों को भोजन व प्रसाद का वितरण किया जाता है। तदुपरांत बंधु-बांधव व कुटुंब सहित महाप्रसाद भोज किया जाता है। मान्यता है कि माता लक्ष्मी की आराधना से सुख संपन्नता व समृद्धि के साथ-साथ सभी मनोकामना पूर्ण होती है।