ताकती हूँ उसे बड़ी आस से,
छूना चाहती हूँ पास से,
सोचती हूँ उसे देखकर,
जब मैं पुकारूँ तो,
आयेगा वह इस धरती पर,
अगर नहीं आ सका,
तो बुला लेगा मुझे वहां,
तभी ख़याल आता है,
ये धरती भी तो कभी,
ऐसी ही रही होगी,
स्वच्छ, निर्मल, प्रदुषणमुक्त
क्या कसूर था उसका,
क्यूँ ये हाल हुआ उसका,
पर दोष है किसका...?
डर जाती हूँ सोचकर,
और...
नहीं बुलाना चाहती उसे यहाँ,
ना जाना चाहती हूँ वहां,
ओ मेरे प्यारे से चाँद,
तुम जहाँ हो वहीँ रहो,
मेरी दुआ है,
पीड़ा इस धरती सी
कभी ना सहो....