गुरुवार, 17 अक्टूबर 2019

जल्दी आना ओ चाँद गगन के .....



करवा चौथ

मैं यह व्रत करती हूँ
अपनी ख़ुशी से
बिना किसी पूर्वाग्रह के
करती हूँ अपनी इच्छा से
अन्न जल त्याग
क्योंकि मेरे लिए
यह रिश्ता ....
इनसे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है
मेरे लिए यह उत्सव जीवन में
उस अहसास की ख़ुशी व्यक्त करता है
कि उस ख़ास व्यक्ति के लिए
मैं भी उतनी ही ख़ास हूँ
मैं उल्लसित होकर सजती संवरती हूँ
मेरे लिए मेहँदी , सिन्दूर ,चूड़ियाँ, महावर
संस्कारों और संस्कृति का हिस्सा हैं
सबसे अनमोल गहने हैं  
दीप अक्षत रोली हल्दी कुंकुम की थाल सजाकर
भागदौड़ के जीवन से कुछ पल चुराकर
चाँद - तारों और खुले आसमान के साथ
प्रकृति के बहुत क़रीब होती हूँ
चाँद की प्रतीक्षा करती हूँ
भावविभोर होकर महसूस करती हूँ  
चाँद का धरती के प्रति तन्मयता से
निभाया जाने वाला
सदियों का प्यार और समर्पण
और धन्य हो जाती हूँ
उस चाँद की उपमा पाकर  ...... 

3 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१८-१०-२०१९ ) को " व्याकुल पथिक की आत्मकथा " (चर्चा अंक- ३४९३ ) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  2. और धन्य हो जाती हूँ
    उस चाँद की उपमा पाकर ......
    वाह!!!
    बहुत लाजवाब...

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