प्रायवेट वार्ड नं. ३
जिन्दगी/मौत के मध्य
जूझती संघर्ष करती
गूंज रहे हैं तो केवल
गीत जो उसने रचे
जा पहुंची हो जैसे
सूनी बर्फीली वादियों में
वहाँ भी अकेली नहीं
साथ है तन्हाइयां
यादों के बड़े-बड़े चिनार
मरणावस्था में पड़ी
अपनी ही प्रतिध्वनि सुन
बहती जा रही है
किसी हिमनद की तरह
ब्रह्माण्ड के अंतिम छोर तक.....
मरने के बाद लिखा ही रह जाता है।
जवाब देंहटाएंब्रह्माण्ड के अंतिम छोर तक गुंज रहा है नाद ब्रह्म,
जवाब देंहटाएंहिमगिरि से हिमनद तक अबोल का टूट रहा है भ्रम।
शब्द सदा अमिट रहते हैं ....
जवाब देंहटाएंजीवन के कटु सत्य को अभिव्यक्त करती पंक्तियाँ .....!!!
जवाब देंहटाएंरह जाती है तो बस यादें ...
जवाब देंहटाएंजीवन के बाद मरण ही तो विचारणीय है।
जवाब देंहटाएंबस यादें तो.रह जाती है ...
जवाब देंहटाएं'जिन्दगी और मौत के बीच जो थोड़ी सी छोटी सी चेतना होती है उसमें भी उसके रचे गीतों का स्मरण 'चंद्रधर शर्मा गुलेरी की 'उसने कहा था 'की याद दिलाता है।
जवाब देंहटाएंएकान्त बर्फीली वादियों में भी नहीं वहां भी साथ हैं तन्हाई।
ऐसा लगता है कि जैसे ''वहां''से आकर किसी से वर्णन किया है जवकि वहां से कोई आता नहीं
'उतते कोउ न आवहि जासों पूछों जाय
इतते सबही जात हैं भार लदाय लदाय'
सच है जहां न पहुंचे रवि ,वहां पहुंचे कवि
शानदार,सुंदर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: कुसुम-काय कामिनी दृगों में,
बहुत सुंदर ...मृत्यु का वरण गीतों से किया जाये तो मृत्यु भी सुंदर हो जाती है
जवाब देंहटाएंजिंदगी जो गीत बन जाती है ... इन वादियों में रह जाती है ... फिर चेतन हो जाती है अनंत में जा कर ...
जवाब देंहटाएंबहती जा रही है
जवाब देंहटाएंकिसी हिमनद की तरह
ब्रह्माण्ड के अंतिम छोर तक...
...........टु सत्य को अभिव्यक्त करती पंक्तियाँ !!!
मेरा मानना है .. शब्द मरता नहीं ... कवी/लेखक उसे ताउम जीता है
जवाब देंहटाएंअत्यंत गहन और सुन्दर ……… हैट्स ऑफ इसके लिए |
जवाब देंहटाएंवो अंतिम छोर कम से कम एक असीम शांति तो देगा .......
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