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शनिवार, 11 जनवरी 2014

अंतिम छोर...


प्रायवेट वार्ड नं. ३
जिन्दगी/मौत के मध्य
जूझती संघर्ष करती
गूंज रहे हैं तो केवल
गीत जो उसने रचे
जा पहुंची हो जैसे
सूनी बर्फीली वादियों में
वहाँ भी अकेली नहीं
साथ है तन्हाइयां
यादों के बड़े-बड़े चिनार
मरणावस्था में पड़ी
अपनी ही प्रतिध्वनि सुन
बहती जा रही है
किसी हिमनद की तरह
ब्रह्माण्ड के अंतिम छोर तक.....

15 टिप्‍पणियां:

  1. ब्रह्माण्ड के अंतिम छोर तक गुंज रहा है नाद ब्रह्म,
    हिमगिरि से हिमनद तक अबोल का टूट रहा है भ्रम।

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  2. जीवन के कटु सत्य को अभिव्यक्त करती पंक्तियाँ .....!!!

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  3. 'जिन्दगी और मौत के बीच जो थोड़ी सी छोटी सी चेतना होती है उसमें भी उसके रचे गीतों का स्मरण 'चंद्रधर शर्मा गुलेरी की 'उसने कहा था 'की याद दिलाता है।
    एकान्त बर्फीली वादियों में भी नहीं वहां भी साथ हैं तन्हाई।
    ऐसा लगता है कि जैसे ''वहां''से आकर किसी से वर्णन किया है जवकि वहां से कोई आता नहीं
    'उतते कोउ न आवहि जासों पूछों जाय
    इतते सबही जात हैं भार लदाय लदाय'
    सच है जहां न पहुंचे रवि ,वहां पहुंचे कवि

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  4. बहुत सुंदर ...मृत्यु का वरण गीतों से किया जाये तो मृत्यु भी सुंदर हो जाती है

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  5. जिंदगी जो गीत बन जाती है ... इन वादियों में रह जाती है ... फिर चेतन हो जाती है अनंत में जा कर ...

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  6. बहती जा रही है
    किसी हिमनद की तरह
    ब्रह्माण्ड के अंतिम छोर तक...

    ...........टु सत्य को अभिव्यक्त करती पंक्तियाँ !!!

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  7. मेरा मानना है .. शब्द मरता नहीं ... कवी/लेखक उसे ताउम जीता है

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  8. अत्यंत गहन और सुन्दर ……… हैट्स ऑफ इसके लिए |

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  9. वो अंतिम छोर कम से कम एक असीम शांति तो देगा .......

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