साल साल बीतते बीतते
बीत गए दस साल
तुम साथ थी...
ऐसा लगता है ,
कल की ही बात थी,
कैसे भूलूंगी तुमको
मैं तो तुम्हारी परछाई हूँ
दुःख में ख़ुशी में
ख़ामोशी में, तन्हाई में
हर पल तुम्हे साथ पाती हूँ
और
चलती हूँ चुपचाप ....
तुम्हारी दिखाई राह पर
कल तुम्हारी बेटी भी
कुछ ऐसा कर जाए
दुनिया भी मुझमे
तुम्हारी ही झलक पाए...........
सचमुच, मां भगवान का ही दूसरा रूप है।
जवाब देंहटाएंमां को समर्पित सबसे श्रेष्ठ रचना।
मां को नमन।
..आज की तुम्हारी यह कविता इतनी पसंद आई की बताना मुश्किल है इतना अच्छा और सच्चा लिखा है की प्रसंशा को शब्द नहीं मिलते .
जवाब देंहटाएंआपकी प्रसंशा भी इतनी सच्ची और अच्छी है, की आभार प्रकट करने के लिए शब्द कम पड़ रहे है ..........
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद्..............
माँ पे लिखी हर कविता मुझे बेहद पसंद आती है :)
जवाब देंहटाएंएक और बात, ये तस्वीर भी मुझे बहुत पसंद है...बहुत पहले अपने ब्लॉग के एक पोस्ट में यही तस्वीर मैंने लगाईं थी..
जवाब देंहटाएं... bahut sundar ... behatreen rachanaa !!!
जवाब देंहटाएंsandhya ji....aapki kavita ka swagat hai....
जवाब देंहटाएंAadat Musukurane par
सभी का भी शुक्रिया जिन्होंने मेरी कविता को सराहा है ....
जवाब देंहटाएंbahut khoobsurat rachna sandya zi :)
जवाब देंहटाएं________________________________
मैं , मेरा बचपन और मेरी माँ || (^_^) ||