गुरुवार, 31 जुलाई 2014

सुने कविता: रंगमंच... संध्या शर्मा

यह कविता तो पुनः पोस्ट की है हमने, इसलिए इसे आप पहले भी पढ़ चुके हैं. अब सुनिए हमारी  आवाज़ में :) (पहली बार कोशिश की है)

करती हूँ अभिनय 
आती हूँ रंगमंच पर प्रतिदिन
भूमिका पूरी नहीं होती
हर बार ओढ़ती हूँ नया चरित्र
सजाती, संवारती हूँ
गढ़ती हूँ खुद को
रम जाती हूँ रज कर
कि खो जाये "मुझमे"
"मैं" कहीं.... 
अब तो हो गई है आदत 
किरदार निभाने क़ी
हर आकार में ढल जाती हूँ 
पानी सी.....
पहचान खोकर शायद 
पा सकूँ खुद को
समंदर में सीप तो बहुत मिल जाते हैं
सीप में मोती हर किसी को नहीं मिलता.    
कविता सुनने के लिए प्लेयर को प्ले करें

शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

बरखा की रुत तुम भूल न जाना...

बरखा की रुत तुम भूल न जाना, सजना अब आ जाना,
आज बदरिया झूम के बरसी, संग सावन पींग झुलाना।।

बूंद बूंद से घट भर जाए
ताल तलैया भी हरसाए
जाग के नींद से कलियाँ
भँवरों को समीप बुलाएँ
बरखा रानी झम्मके बरसो, वन-उपवन का मन हरसाना,
उमड़ घुमड़ के ऐसे बरसो, धरती की तुम प्यास बुझाना।।

काले मेघों की रुत आई
काली - काली घटा छाई
सावन की फुहारों ने भी
झूम - झूम प्रभाती गाई
बोलन लागे मोर बगिया में, चकवा संग गाए राग पुराना,
रात अमावस की है काली, गरज तरज बिजली चमकाना।।

सांझ ढले मैं दीया बालूँ
देहरी पर मैं चौक पुराऊं
राह तकूं कब तक बैरी
दूर दूर लों मैं देखूं भालूं
डगर चलत बटोही आवेगा, चमकेगा कब चेहरा नुराना,
देखत बाट भई बावरिया, सावन में सांवरिया आ जाना।।

मंगलवार, 15 जुलाई 2014

नर्मदा माई की गोद में हम...

अमरकंटक सुंदर धार्मिक स्थल है, शास्त्रों में यह शैव क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। जब हम कक्षा नवमी में पढ़ते थे, मीडिया सेंटर द्वारा आयोजित एक सप्ताह की कार्यशाला में हिस्सा लिए थे। वहाँ हमें अमरकंटक की एक सुन्दर डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई। तब से इच्छा थी वहां जाकर घूमने की। जबकि जबलपुर से एक दिन में वहां जाकर वापस आया जा सकता है, लेकिन संयोग नही बन सका। अचानक एक दिन योजना बनी, आनन-फ़ानन में रेल आरक्षण भी मिल गया और 11 जून की रात शिवनाथ एक्सप्रेस से चलकर हम सब बिलासपुर पहुंचे। वहां से लोकल ट्रेन से पेण्ड्रा रोड पहुंचे, स्टेशन के बाहर निकल कर हमें जाने के लिए आरामदायक वाहन मिल गया, जिससे हम लगभग 3 बजे अमरकंटक पहुंचे। 

कल्याण आश्रमअमरकंटक पहुँचकर हमें ठहरने की व्यवस्था कल्याण आश्रम उपलब्ध हुई। सुन्दर स्वच्छ भक्तिमय वातावरण और भव्य सुन्दर-सुन्दर मूर्तियों, हरे-भरे वृक्षों और रंग बिरंगे पुष्पों से सजा प्रांगण बड़ा ही मनमोहक था। कुछ देर प्रतीक्षा के बाद हमें वहां रुकने का स्थान मिल गया।
कल्याण आश्रम का मुख्य द्वार
अमरकंटक मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले की मैकल पर्वत श्रेणी स्थित अमरकंटक एक प्रसिद्ध शैव तीर्थस्‍थल है। समुद्र तल से 1065 मीटर इस स्‍थान पर मध्‍य भारत के विंध्य और सतपुड़ा की पहाडि़यों का मेल स्थल भी है। यहां के खूबसूरत झरने, तालाब, पहाडि़याँ और स्वच्छ, शांत वातावरण सभी का मन मोह लेता है। नर्मदा, जोहिला नदियों और शोणभ्रद का उद्गम स्थल अमरकंटक प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहा है। यहाँ का वातावरण इतना नयनाभिराम है कि यहाँ पर तीर्थयात्रियों समेत अनेक प्रकृति प्रेमी सैलानीयों का ताँता लगा रहता है। यह एक लोकप्रिय हिन्‍दू तीर्थस्‍थल है। माँ नर्मदा को समर्पित यहाँ अनेक मंदिर बने हैं। अमरकंटक आयुर्वेदिक वनस्पतियों के लिए भी प्रसिद्ध है, जिन्‍हें संजीवनी गुणों से भरपूर माना जाता है।
नर्मदा उद्गम स्थान पर संध्या आरती
नर्मदा उद्गम स्थलशाम हो चुकी थी इसलिए आज ज्यादा कुछ घूमना संभव नहीं था। माँ नर्मदा का उद्गम स्थल आश्रम से करीब एक-डेढ़ किमी की दूरी पर है। हम जब वहां पहुंचे तो महाआरती का समय हो चुका था।अमरकंटक को पवित्र  नर्मदा नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। यहां स्थित नर्मदाकुंड से नर्मदा नदी का उदगम होता है इस पवित्र नदी मे स्नान करने हेतु हजारों तीर्थयात्री दूर-दूर से आते हैं तथा इस जल मे स्नान करके पवित्रता का एहसास करते हैं। मान्यता है कि नर्मदा उत्‍पत्ति शिव की जटाओं से हुई है अत: भगवान शिव व उनकी पुत्री नर्मदा यहां पर वास करते हैं नर्मदा के उद्गम स्थल के चारों ओर कई मंदिरों का निर्माण किया गया है। इन मंदिरों में नर्मदा, शिव, कार्तिकेय और श्रीराम जानकी आदि मंदिर स्थापित हैं। यहाँ पर प्रस्तर का हाथी भी है, ऐसी मान्यता है की मोटे से मोटा व्यक्ति भी इसमें से निकल जाता है और दुबला पापी नही निकल सकता।  
नर्मदा मंदिर की पैड़ियों पर विश्राम
कलचुरी कालीन कर्ण मंदिर समूह नर्मदाकुंड से कुछ दूर दक्षिण में कलचुरी काल एवं उसके परवर्ती काल के समय के अनेक प्राचीन मंदिर बने हुए हैं जिनका निर्माण कलचुरी के महाराजा कामदेव एवँ कर्ण ने करवाया था। यहां का पातालेश्‍वर मंदिर उस समय की निर्माण कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। यहाँ मुख्यत पातालेश्वर मन्दिर, शिव मन्दिर, जोहिला मंदिर एवं कर्ण मन्दिर है। मंदिर के चारों ओर शानदार हरा भरा आंगन है। इसके एक किनारे पर कुआँ भी दिखाई दिया। पातालेश्वर शिव मंदिर  छोड़कर  मंदिरों में ताले लगे हुए थे. जबकि पातालेश्वर शिव मंदिर में बाकायदा जलाभिषेक और पूजा का प्रबंध था।  
कर्ण मंदिर समूह स्थित - जोहिल मंदिर
इस स्थान की सुंदरता और पवित्रता ने दिनभर की गर्मी और सफ़र की तकलीफों को भुला सा दिया। वहां से वापसी में रात्रि भोजन ग्रहण करने  पश्चात् हम कल्याण आश्रम आ गए। सोने से पहले आगामी योजना के अनुसार घूमने का प्रबंध किया जाना था. एक या दो घण्टे में सभी स्थानों को ठीक से नही देखा जा सकता, इसलिए १३०० रुपए में दिनभर लिए गाड़ी तय की गई। 
कलचुरी कालीन कर्ण मंदिर
श्रीयंत्र  मंदिर -  श्रीयंत्र  मंदिर की विशेषता है कि यह देवी का शक्‍तिपीठ माना जाता है और यहाँ मान्‍यता के अनुसार देवी के बाजू, कलाई का हिस्‍सा गिरा था। मंदिर पिछले 27 सालों से निर्माणाधीन है। बनावट से लगता है कि किसी रहस्यमय तांत्रिक प्रभाव वाली जगह में प्रवेश कर रहे हैं। इसे केवल विशेष मुहूर्त पर बनाया जाता है। याने विशेष मुहूर्त जितनी देर के लिये होगा, केवल उतनी ही देर काम चलेगा फिर रोक दिया जायेगा। बाहर लिखा था कि भीतर कहीं भी फोटो न लें। मंदिर में त्रिपुर सुंदरी की मूर्ति विद्यमान है। जब यह बन जाएगा तो केवल विशेषज्ञ (पंडित, साधु, महात्‍मा आदि) ही आ पाएंगे। कठिन साधना के बाद तंत्रशक्‍ति सिद्धी आंख पर काली पट्टी बांध करवाई जाएगी। जो माता की शक्‍ति यहां गुप्त रूप में मौजूद है उससे सिद्धी होगी। अनिष्‍ट होने की दृष्‍टि से इसे कोई देख नहीं सकता। अत: इसे ढंककर रखना शास्‍त्रों के अनुसार अनिवार्य है। श्रीयंत्र की शक्‍ल में बन रहा मंदिर का प्रागंण बरबस ही आकर्षित करता है।

श्रीयंत्र मन्दिर
सोनमुड़ा सोनमुड़ा स्थल शोण नद का उद्गम है यह नर्मदाकुंड से कुछ दूर मैकल पहाडि़यों के किनारे पर स्थित है। शोण झरने के रूप में यहां प्रवाहित है। इसकी की रेत चमक से युक्त सुनहरी लगती है इस वजह से ही इसको शोण नद के नाम जाना जाता है। यहाँ पर स्थानीय जड़ी बूटियों की कई दुकाने दिखाई दी और दीवार पर पेंट किया हुआ हर साध्य-असाध्य रोग का नाम के साथ उन रोगों के इलाज़  मिलने वाली दवाओं का नाम। 
शोण उद्गम 
कबीर चबूतराकबीर चबूतरा कबीरपंथियों के लिए विशेष महत्‍व रखता है। इसी जगह पर संत कबीर ने वर्षों तप किया था तथा संत कबीर व गुरु नानकदेव जी मिले थे। उन्होने परस्पर अपने विचारों का आदन-प्रदान किया। इस चबूतरे के पास कबीर झरना भी बहता है। खूब सारे गुलबकावली के पौधे भी हैं यहाँ।
कबीर चौरा

श्रीज्‍वालेश्‍वर महादेवअमरकंटक से कुछ दूरी पर स्थित श्रीज्‍वालेश्‍वर जी का भव्य मंदिर है मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने इस जगह पर शिवलिंग स्‍थापित किया था जो मैकल की पहाड़ियों में असंख्‍य शिवलिंग के रूप में बिखर गया था। इस स्‍थान को महा रूद्र मेरू भी कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव पार्वती के साथ यहां पर निवास करते थे। इसके साथ ही यह रमणीय स्थल अमरकंटक की अन्य नदी जोहिला का उदगम भी है।
ज्वालेश्वर महादेव
अमरेश्वर महादेव - यह मंदिर अमरकंटक से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है। इस मंदिर का निर्माण अभी प्रारंभ है। यहाँ 51 टन का भव्य शिवलिंग स्थापित है। जिस पर जल चढाने के लिए पैड़ियों का निर्माण कर रखा है। यह ज्वालेश्वर के समीप ही मनोरम स्थान पर निर्मित है।
अमरेश्वर महादेव
पार्श्वनाथ जैन मंदिर - कल्याण आश्रम से उत्तर दिशा की तरफ़ जैन मंदिर दिखाई देता है। इस मंदिर का निर्माण विगत कई वर्षों से हो रहा है।मंदिर के समक्ष वृक्ष के नीचे गाड़ी खड़ी कर दी, सामने मंदिर का विशाल गुम्बद दिखाई दे रहा था। कलचुरियों के बाद यदि किसी मंदिर का निर्माण हो रहा है तो यही तीर्थंकर आदिनाथ मंदिर है। धौलपुर के गुलाबी पाषाणों की कटाई-छटाई की आवाजें दूर तक आ रही थी। निर्माण योजना के अनुसार मंदिर ऊँचाई 151 फ़ुट, चौड़ाई 125 फ़ुट तथा लम्बाई 490 फ़ुट है। इसके निर्माण में 25-30 टन वजन के पाषाणो का भी प्रयोग किया गया है। जब मंदिर निर्माण की योजना बनी थी तब इसकी लागत लगभग 60 करोड़ रुपए आँकी गई थी।
निर्माणाधीन जैन मंदिर
कपिलधारा जैसे ही हम कपिलधारा पहुंचे बहुत तेज़ हवा चलने लगी, इस तेज़ हवा के कारण झरने का पानी नीचे की और गिरने के बजाए ऊपर उड़ने लगा जिससे बड़ा ही मनोरम दृश्य प्रकट हुआ। कुछ ही मिनटों में जोरों से बारिश शुरू हो गई, हम लोगों ने सीमेंट के बने हुई झोपड़ीनुमा स्थान का आश्रय लेना उचित समझा। कपिलाधारा झरना बहुत सुंदर व मनमोहक है। नर्मदा कुंड से निकले जल को छोटे बांध के रूप में रोककर प्रवाहित किया गया है। नर्मदा पूर्व में कुण्‍ड से निकल सीधी बहा करती होगी।  जिसे अब बॉंध के रूप में रोक छोड़ा जा रहा है। यहॉं धारा 100 फ़ुट की ऊँचाई से गिरती है और खाई , जंगल से होती हुई मैदान में प्रवेश करती है। जनश्रुतियों में इसे कपिल मुनि का निवास स्थल कहा गया है। किवदंती है कि कपिल मुनि द्वारा रचित सांख्‍य दर्शन रचना इसी स्‍थान पर हुई थी। इस धारा के निकट ही कपिल मुनि का मंदिर कपिलेश्‍वर बना है। इसके पास अनेक गुफाएं है, यहां से प्रकृति के सुंदर नजारे भी देखे जा सकते हैं। बारिश रुकने के बाद हम दूध धारा की ओर चल पड़े। 
कपिल धारा
दूधधाराकपिलधारा का पानी आगे जाकर दूधधारा नामक प्रसिद्ध झरने के रूप में प्रवाहित होता है। काफी ऊंचाई से गिरने के कारण  इस झरने का जल, दूध के जैसा धवल प्रतीत होता है इसीलिए इसे दुग्धधारा के नाम से जाना जाता है। कपिलधारा से बने पतले से पहाड़ी रस्ते से नीचे उतरकर इस स्थान पर पहुंचा जाता है। उतरना तो फिर भी हो गया, लेकिन वापस आना हमारे लिए बहुत कठिनाई भरा रहा, सांस लेना मुश्किल हो रहा था जैसे-तैसे रुक-रुक कर आखिर ऊपर वापस आ ही गए।
दूध धारा
    
शोण और नर्मदा की कथाशोण और नर्मदा की प्रेमकथा पूरे अंचल में प्रचलित है। कहा जाता है कि राजा मैकल ( मैकल पर्वत श्रेणी) ने पुत्री राजकुमारी नर्मदा के लिए निश्चय किया कि जो राजकुमार बकावली के फूल लाकर देगा, उसका विवाह नर्मदा से होगा। राजपुत्र शोण, बकावली के फूल ले आया लेकिन देर हो जाने से विवाह नहीं हो पाया। इधर नर्मदा, शोण के रूप-गुण की प्रशंसा सुन आकर्षित हुई और नाइन-दासी जोहिला से संदेश भेजा। जोहिला ने नर्मदा के वस्त्राभूषण मांग लिए और संदेश लेकर शोण से मिलने चली। जयसिंहनगर के ग्राम बरहा के निकट जोहिला का शोण से संगम, वाम-पार्श्व में दशरथ घाट पर होता है और कथा में रूठी राजकुमारी नर्मदा कुंवारी ही विपरीत दिशा में प्रवाहित हो जाती है, याने पश्‍चिम दिशा में बहते हुए अरब सागर में जा मिलती है। जबकि शोण पूर्व की तरफ प्रवाहित हो बंगाल की खाड़ी में गिरता है. हमारे देश में ब्रह्मपुत्र और शोण दो नद माने गए है। और बाकी सब नदियाँ।
हर जगह बंदरों का राज
इन स्थलों के दर्शन पश्चात हम बहुत थक गए थे। भोजन के उपरांत आश्रम पहुंचे और रात भर आराम किया। अगले दिन हमने अपनी वापसी की। अमरकंटक से 700 रुपए में टैक्सी किराया कर पेंड्रा रोड़ स्टेशन पहुंचे और वहाँ से बिलासपुर आकर नागपुर के लिए ट्रेन पकड़ी। कुल मिलाकर गर्मी के मौसम कुछ दिन प्राकृतिक वातावरण में रहने के कारण हमारी यह यात्रा सुखद रही। 

शनिवार, 5 जुलाई 2014

करतब...



मुक्ति पा लेता है........!
अपराधी एक बार सूली पर चढ
वह निरपराध पेट की खातिर
सूली पर चढती है रोज - रोज
रस्सी पर डगमगाते नन्हे पाँव
किसी के लिए मनोरंजन भले हो
इसके लिए साधन है पेट भरने का
मौत के खेल को तमाशा बना
नन्हे नन्हे कदम आगे बढाती वह
जब सुनती है तालियों की आवाजें
तो डर से सहम सी जाती है 
बहकने लगती उसकी चाल
वह तुरंत साध लेती है खुद को
क्योंकि डगमगाना कारण बन जाएगा
उसके परिवार के भूखे रहने का
अभी उसे तो उस पार जाना है
जीवन और मृत्यु का करतब दिखाना है
और रोज जीतना है मृत्यु को
निरपराध होकर भी 
यही नियति है……………।

मंगलवार, 1 जुलाई 2014

लफ़्ज़ों की छांव में..!



 चित्र- गूगल से साभार 

सोचती हूँ चलते-चलते
लड़खड़ाती साँसों के सफ़र में
कुछ ऐसा लिख जाऊं जिसमें
ताज़गी हो, उम्मीदें हों
रौनक हो, खुशियां हो 
जीवन की तेज़ धूप से झुलसा
हर एक आने वाला
इन लफ़्ज़ों की छांव में
राहतों की ठंडक पाए
कब लफ्ज़ बिखर जाएं
कब ये हाथ कंपकंपाएँ
जाने कब चिता के साथ
कागज़ भी राख बन जाए
राख बन चुके कागज़ में
कुछ देर तो चमकेंगे हर्फ़
वरना क्या फर्क पड़ता है
एक मेरे होने ना होने से
वैसे भी कोई नही आया
इस नश्वर लोक में
अमरफ़ल खाकर………।