बुधवार, 13 मई 2015

जीवन पथ ...

हर सुबह के इंतज़ार में 
अंधियारे से लड़ना है
हर पल घटती सांसें हैं
पल को जीभर जीना है
हर रिश्ते हर नाते को
राख यही हो जाना है
झूठे जग का मोह त्याग
उस पार अकेले जाना है ....
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भीड़ चहूँ ओर है
हर तरफ शोर है
रिश्तों के मेले हैं
अपनो के रेले हैं
दुनिया के खेले हैं
फिर भी अकेले हैं...