शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

रेखाएं कुछ कहती हैं... संध्या शर्मा


ऐसी ही है वह
खूब बोलना चाहती है
पर बोलती नहीं
जब बोलने को कहो
कह देती है
कुछ नहीं कहना
हाँ लेकिन उसी वक़्त
उन मुरझाई आँखों से
टपक जाती हैं 
दो बूंदें........!
बिलकुल दर्पण की तरह 
जिसमे झलकता है
उसका प्रतिबिंब 
झुर्रियों भरा चेहरा
स्पष्ट उभर आती हैं
अनगिनत रेखाएं
आखिर उन बूंदों पर
इन अनगिनत
आड़ी-टेढ़ी लकीरों से 
क्या लिख देती है वह....?

   
   

बुधवार, 25 जनवरी 2012

दे सकोगे जबाब???? संध्या शर्मा

वक़्त कल तुमसे हिसाब मांगेगा
सुलगते सवालों का जवाब मांगेगा

क्यों बैचैन हो गया है बचपन 
क्यों है जवानों के चहरे पर उलझन  


क्यों खनकते नहीं बाँहों में कंगना 
क्यों पलाश फूलते नहीं अंगना 

                        
क्यों हो रहा है हर तरफ भेदभाव 
क्यों है भाई का भाई से मनमुटाव 



क्यों किसान आत्महत्या कर रहा  है
क्यों आदमी - आदमी से डर रहा है 


क्यों हर तरफ आतंक का शोर है 
क्यों वैर नफरत चहुँ ओर है  .  



क्यों आज हर फिजा वीरान है 
क्यों धरती बनी शमशान है 



क्यों सत्ता के लिए लड़ी जा रही है जंग 
क्यों है आदमी का आदमी से , मोहभंग 



क्यों आज हर तरफ हवा जहरीली है 
क्यों  प्रकृति में आई यह तबदीली है 


क्यों इंसान भूख से मर रहे हैं  
क्यों गरीब के सपने बिखर रहे हैं 


क्यों बेटियाँ जलाई जा रहीं हैं 
क्यों विधवाएं तडपायी जा रहीं हैं 


क्यों क़ानून हमारे कमजोर हैं 
क्यों भ्रष्टाचार फैला पुरजोर है 


अगली पीढ़ी तुमसे मांग रही है हिसाब 
क्या तुम दे सकोगे ऐसे सवालों के जबाब ?

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

वज्र विश्वास... संध्या शर्मा


मज़बूत
विश्वास की जड़
किसी तूफ़ान
बहाव से
नहीं हिलती

विश्वास
पानी में उठता
बुलबुला नहीं
जो मिट जाये
एक पल में ही

विश्वास
सिद्धांतों से
अडिग हैं
जो नहीं बदलते
किसी भी प्रयोग से....

रविवार, 15 जनवरी 2012

देख लूँ जरा.... संध्या शर्मा


विषयुक्त वातावरण में,
अमृत कलश खोज लूँ जरा.

क्षण के इस जीवन का मंथन कर,
दो घूंट अमृत के पी लूँ जरा.

शब्दों में समेट दूँ साँसों को,
गीतों में संवेदना भर लूँ जरा.

दुःख के अंधियारे आसमान में,
  ध्रुवतारा अमन का ढूंढ़ लूँ जरा.

प्रश्नों और समाधानों का,
सत्यान्वेषण कर लूँ जरा.

जीवन - मृत्यु के पावन संगम पर,
खुद को अनासक्त कर दूँ जरा.

जीवन मरण दोनों घाट अनोखे,
हर घाट के ठाठ देख लूँ जरा...    

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

"सुनहला ख्वाब"... संध्या शर्मा

 
अपना वादा ऐसे निभाते हैं 
  सदा ख्वाबों में आते-जाते हैं,
     अपने आने का अहसास देकर,
मीलों के फ़ासले मिटाते हैं.
  रजनीगंधा की खुश्बु बनकर,
  मेरी साँसों में सिमट जाते हैं.
   अपनी यादों का हौसला देकर,
   राह मंजिल की वो दिखाते हैं.
                            मेरी सादा सी सूरत को भी,                            
  माहताब सी बता भरमाते हैं.
   वो मुझे राधा का नाम देते हैं,
 
    मुझे वो श्याम नज़र आते हैं...


 

रविवार, 1 जनवरी 2012

शुभकामनाएं स्वीकार करें... संध्या शर्मा

बीते साल की विदा बेला
नए साल का आगमन
आओ हिलमिल महका दें
खुशियों का आँगन.

समय है यह , सफर क्षण -क्षण का
" भूतो न भवति , ना भविष्यत् "
आता है यह और जाता है चला ....!
हम सभी हैं इस स्थिति से अवगत

"खूब कोशिश की सब कुछ पाने की
पर कुछ भी नहीं निकला सार"
क्या है यह दुनिया , क्या अपनी किस्मत
ऐसे वाक्यों का करें बहिष्कार

"पत्थर के ऊपर खिंची लकीर"
इन शब्दों को आत्मसात करें
क्या खोया, क्या पाया और क्या है पाना  ?
खुद से सवाल , खुद से ही जबाब करें


तुमकर सकते हो सब कुछ
आगे बढ़ सृजन करें, नव निर्माण करें
भूल कर झूठे अहम् और शान को
सबका सम्मान, सबसे प्यार करें

आदमी से डरता आदमी
संकीर्ण होती मानवीय दृष्टि
अब तो सिर्फ सोचना होता
कैसी थी और अब कैसी है यह सृष्टि

सबका भला हो जग में
आओ मिलकर विचार करें
वसुधैव कुटुम्बकम, सर्वधर्म समभाव,
ऐसे वचनों को स्वीकार करें

कोई न रहे बेघर धरा पर
पूरी प्रकृति से प्यार करें
यह है तो हम है , और बचेंगी संताने हमारी
भाव उदात ले मन में
नव वर्ष की शुभकामनाएं स्वीकार करें !!!