शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

लम्बी प्रतीक्षा...........! संध्या शर्मा

फिर बनेगा कोई नया राजा,  
फिर होगा राजतिलक...
फिर सजेंगे चौराहे,
निकलेंगे लम्बे जुलूस...
गूंजेंगे स्वागत गान,
होगी फूलों की बरसात...
अभिमान से ऊंचे होंगे,
मस्तक चापलूसों के...
और कुचल दिए जायेंगे,
असहमति के सर,
विजयी जुलूस तले...
किसानो ने की आत्महत्या,
कितने मरे भूख से,
कौन हुआ घायल,
भ्रष्टाचार की तलवार से...
बदल गया कुंठा में,
कितनो का आत्मविश्वास...
सारे के सारे प्रश्न,
खड़े होंगे चुपचाप...
हाथ बांधे,
निरीह सी आँखों में,
अनसुलझे से सवाल लिए,
एक जवाब की,
लम्बी प्रतीक्षा में....
 

सोमवार, 18 अप्रैल 2011

तुम्हारे बारे में.... संध्या शर्मा


तुम्हारी रचना से जानती हूँ
मैं, तुम्हारे बारे में
तुम क्या सोचते हो ?
तुम क्या चाहते हो ?
किस बात से आहत होते हो
 और किस बात से खुश ...!

कुछ भी नहीं जानती
तुम्हारे बारे में
तुम्हारी भाषा - तुम्हारा वेश
तुम्हारे, अपने - पराये

फिर भी बहुत  कुछ जानती हूँ
तुम्हारे बारे में
तुम्हारे पास ह्रदय है
पवित्र कोमल
जिसमे सजते हैं सपने
उठते हैं सवाल
जो चाहते  है बदलाव
देश और समाज में

कहती है सब कुछ मुझसे
तुम्हारी ये रचना
चाहत है तुम्हारी
इस दुनिया में
बस नेक इन्सान बनकर जीना ..!

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

क्रांति सूर्य उदय होगा...संध्या शर्मा


राख में दबी चिंगारी सुलग उठी,
ये मूक मूरतें पत्थर की,
लो जाग गई और बोल उठीं,
जब जनाक्रोश भड़कता है,
सिंहासन डोलने लगते हैं,
सरकार कांपने लगती है,
और ताज हवा में उड़ता है,
जिस और मोड़ना चाहता है,
ये काल उधर ही मुड़ता है,
विराट जनतंत्र गरज रहा,
इन्कलाब गगन में गूंज रहा,
जन-जन के शीश पर मुकुट धरो,
कोटि सिंहासन निर्माण करो,
अभिषेक प्रजा का जब होगा,
जो हुआ कभी न अब होगा..
और क्रांति सूर्य उदय होगा....!   

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

एक सवाल.......? संध्या शर्मा


सवाल क्यों करते हो
मैं पहेली नहीं हूँ
कलम मेरा हमसफ़र है
अकेली नहीं हूँ...

लोग सवाल पूछते रहे
मैं जवाब देती रही
जब कोई रास्ता न सूझा
तो उन्ही के साथ चलती रही

और.... 
खुद भी एक सवाल में
उलझकर रह गई हूँ
क्या मैं भी....?
अपनी एक अलग राह बना पाऊंगी
इन्हें भी अपने साथ चला पाऊंगी

या फिर ....
यूँ ही कुछ सवाल लिए 
एक अनबूझ पहेली की तरह
एक दिन खुद भी
इस दुनिया से चली जाऊंगी...