सवाल क्यों करते हो
मैं पहेली नहीं हूँ
कलम मेरा हमसफ़र है
अकेली नहीं हूँ...
लोग सवाल पूछते रहे
मैं जवाब देती रही
जब कोई रास्ता न सूझा
तो उन्ही के साथ चलती रही
और....
खुद भी एक सवाल में
उलझकर रह गई हूँ
क्या मैं भी....?
अपनी एक अलग राह बना पाऊंगी
इन्हें भी अपने साथ चला पाऊंगी
या फिर ....
यूँ ही कुछ सवाल लिए
एक अनबूझ पहेली की तरह
एक दिन खुद भी
इस दुनिया से चली जाऊंगी...
इस बेहतरीन रचना के लिए आप बधाई की पात्र हैं...
जवाब देंहटाएंनीरज
जीवन की वास्तविकताओं के सन्दर्भ में रची गयी इस रचना के माध्यम से आपने एक अबूझ प्रश्न का हल तलाशने की कोशिश की है ....आपका आभार
जवाब देंहटाएंये तो सच है कि इस दुनिया में जो आता है वह जाता भी है.पर उसके
जवाब देंहटाएंबोल और कृत्य याद रखे जाते हैं.आपने कविता के माध्यम से सुन्दर भावों की बेहतरीन अभिव्यक्ति की हैं.बहुत आभार इस अभिव्यक्ति के लिए.अनुपम भावों की निर्मल सरिता यूँ ही बहाते रहिएगा.
बेहतरीन लाजवाब।
जवाब देंहटाएंसुंदर गीत के लिए आभार!!
इस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हमारा नव संवत्सर शुरू होता है इस नव संवत्सर पर आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं......
गहरी संवेदनाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंलाजवाब...प्रशंशा के लिए उपयुक्त कद्दावर शब्द कहीं से मिल गए तो दुबारा आता हूँ...अभी
जवाब देंहटाएंमेरी डिक्शनरी के सारे शब्द तो बौने लग रहे हैं...
जीवन की वास्तविकताओं के सन्दर्भ में रची गयी बेहतरीन रचना|
जवाब देंहटाएंकलम मेरा हमसफ़र है
जवाब देंहटाएंअकेली नहीं हूँ...
बेहतरीन..... बहुत ही गहन विचार लिए हैं यह शब्द..... उम्दा कविता के लिए बधाई....
कविता के प्रश्न अंतर्द्वंद्वों की प्रतिश्रुति होते हैं.
जवाब देंहटाएंकवि कविता के माध्यम से ही उतर खोजता है.
आपके इन अनबूझ प्रश्नों के उतर भी आपकी कविता जल्द ही दे देगी.
सलाम.
one question
जवाब देंहटाएंbeautiful poem
इंसान के कर्म कभी दुनिया से नहीं जाते हैं | ये नाशवान शरीर रूप बदलता है .......धन्यवाद
जवाब देंहटाएंउड़ान परों से नहीं हौसले से होती है। और आशा करता हु कि आपको अपने प्रश्नों के जवाब जल्दी से मिले।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना ।
जवाब देंहटाएंलेकिन इस सवाल के रुप में क्यों ?
व्यक्तित्व का एक सशक्त आधार ही व्यक्ति की पहचान होती है - इस सोच को बखूबी निखारती हुई कविता।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना के लिये बधाई.........
जवाब देंहटाएंआकर्षण
मन में कई सवाल पैदा करती हुई बेहतरीन रचना !
जवाब देंहटाएंbahut acchhi rachna.
जवाब देंहटाएंek bar aisi hi ek post maine dali thi...
आंधियो का भी मुख मोड़ देता है..
नदियों के भी रास्ते बदल देता है..
खुदा को भी जो झुका देता है..
ऐ दोस्त..वो सिर्फ़ इंसान होता है..!!
iska link apko de rahi hun...pahle me isi nam se likhti thi...padhiyega..
http://tanhasagar.blogspot.com/2008/09/blog-post_9170.html
सवाल क्यों करते हो
जवाब देंहटाएंमैं पहेली नहीं हूँ
कलम मेरा हमसफ़र है
अकेली नहीं हूँ...
बहुत ही सशक्त कविता संध्या जी बधाई और शुभकामनाएं |
कलम मेरा हमसफ़र है
जवाब देंहटाएंअकेली नहीं हूँ...
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति,बधाई
खुद भी एक सवाल में
जवाब देंहटाएंउलझकर रह गई हूँ
क्या मैं भी....?
अपनी एक अलग राह बना पाऊंगी
इन्हें भी अपने साथ चला पाऊंगी
आपका लेखन,आपकी विनम्र शैली ख़ुद ब ख़ुद आपकी पहचान बना रही है,संघ्या जी.बस इसे बरक़रार रखियेगा.
खुद भी एक सवाल में
जवाब देंहटाएंउलझकर रह गई हूँ
क्या मैं भी....?
अपनी एक अलग राह बना पाऊंगी
इन्हें भी अपने साथ चला पाऊंगी...
बहुत गहरे अहसास..आज जो अपनी राह बनाने की कोशिश कर रहे हैं, उनके रास्ते में आने वाली उलझनों का बहुत मर्मस्पर्शी चित्रण. बहुत सुन्दर
क़लम मेरा हमसफ़र है
जवाब देंहटाएंअकेली नहीं हूँ ...
शब्द ,
कविता को गरिमामय होने का
गौरव दे रहे हैं ... !!
Klam meri humsafar. , . . . . . . . Bahut pyaari rachna. . . . . . Jai hind jai bharat
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