शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

रामरती...

चिड़ियों की चहचहाहट होते ही नींद से उठकर छुई खदान जाना और शाम ढले वापस आकर छुई-मिट्टी के एकसार ढ़ेले तैयार करके सुखाने के लिए रखना. यही दिनचर्या है उसकी. गर्मियों में काम दुगुना बढ़ जाता है, इन दिनों में और अधिक परिश्रम करके छुई इकठ्ठा करती है बरसात के लिए. चाहे कोई भी मौसम हो झुलसा देने वाली गर्मी हो, ठिठुरने वाली ठण्ड या फिर फिसलन भरी बरसात. काम तो करना है पेट की आग बुझाने के लिए. बारिश के दिनों में चिकनी सफ़ेद छुई खदान में जाना कोई आसान काम नहीं, जान हथेली पर रहती है. उसपर कुछ ज्यादा पैसे पाने की चाह उसे खदान में अधिक गहराई तक जाने को मजबूर कर देती. दो बरस पहले इस मजबूरी ने उसके सिन्दूर के लाल रंग को भी सफ़ेद छुई - मिट्टी बदल में दिया. अकेली रह गई है तब से एक मासूम बेटी के साथ. 
 
बस्ती के चूल्हे भी अब बहुत कम ही रह गए हैं मिट्टी के. नहीं तो पहले हर घर में मिट्टी के चूल्हे, सुबह - शाम के भोजन बनने के बाद रात को राख- लकड़ी को साफ़ करके छुई - मिट्टी से पुतकर सौंधी -सौंधी खुशबू से महकते थे. ना रहे वह पहले वाले गोबर से लिपे सुन्दर आँगन जिसके बीचोंबीच तुलसी के चबूतरे में दीपक जगमगाते थे, इसलिए आजकल जंगल से लकड़ियाँ भी चुन लाती है वह.
 
कई दिनों से मिट्टी और लकड़ियाँ बेचकर अपना पेट भरने वाली माँ-बेटी आधा - पेट भोजन कर सो जाती हैं, क्योंकि आधी लकड़ियों से घर के चारों ओर बाड़ बना रही थी वह बेटी की सुरक्षा के लिए. भूख उनके चेहरे पर साफ़ नज़र आ रही थी, मासूम का मुरझाया चेहरा माँ की तरह अपना दुःख छुपा नहीं सका.
 
कई दिनों बाद दोनों के चेहरों पर पहले जैसी शांति नज़र आ रही है. बेटी की सुरक्षा के लिए चिंता करती भोली माँ जान गई है कि भूखे रहकर जो सुरक्षा घेरा वह बना रही है, उन भूखे भेड़ियों के लिए कोई मायने नहीं रखता, इसलिए उसने आज बेटी को दे दिया है अपना लकड़ी काटने वाला हंसिया, और साथ में वह गुर जिससे वह काट कर रख दे अपनी ओर गलत निगाहें उठाने वाले का सिर. निश्चिन्त होकर गई रामरती। सिर्फ आज ही उन्हें सोना होगा आधा पेट क्योंकि अधपेट रहकर खरीदेगी एक नया हंसिया. आज की भूख उन्हें देगी भूख से मुक्ति और भूखे भेड़ियों से सुरक्षा.

मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

नवा - जूना...संध्या शर्मा

अरसे से 
ठसाठस भरा
अस्त-व्यस्त था
मन का  कमरा
आज समय मिला
नए - पुराने 

विचारों- भावों
रिश्ते-नातों
यादों-अहसासों को
झाड़-पोंछ
करीने से सहेजा
कुछ टीसती यादों को
बुहार बाहर किया 
खाली पड़े फूलदान में 

महकते अहसासों को सजाया 
बहुत जगह बन गई है
नयी उलझनों-सुलझनो को
दो पल सुस्ताने के लिए...

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

सदा नीरा ...संध्या शर्मा


ना कोई डोर/
नातों की
ना कोई बंधन/
वादों का
फिर भी...
साथ चलते जाना
सदा नीरा के सिमटने से
मिलन का अहसास
पास होकर भी दूर होना
दो किनारे हैं...
तो क्या हुआ ???
अथाह है प्रेम पराकाष्ठा
तय है एक दिन
समन्दर होना....

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

"युगे-युगे"... संध्या शर्मा

मिथ्या दंभ में चूर
स्वयं को श्रेष्ठ घोषित कर
कोई श्रेष्ठ नहीं हो जाता
निर्लज्जता का प्रदर्शन
निशानी है बुद्धुत्व की
सूर्य को क्या जरुरत
दीपक के प्रकाश की
वह तो स्वयं प्रकाशित है
फ़िर, प्रतिस्पर्धा कैसी?
है हिम्मत ....?
तो बन जाओ उसकी तरह
छूकर दिखाओ ऊँचाइयों को
जगमगाओ उसकी तरह
जिस दिन ऐसा होगा
स्वयं झुक जाओगे
फलाच्छादित वृक्ष जैसे
चमकोगे आकाश में
तारों बीच चाँद की तरह
कीर्ति जगमगाएगी
"युगे युगे" दसों दिशाओं में
यही है मृत्यु लोक में
वैतरणी से तरने का मार्ग....

बुधवार, 3 अप्रैल 2013

यायावरी को सार्थक करती पुस्तक "सिरपुर : सैलानी की नजर से"





सुप्रसिद्ध ब्लॉगर ललित शर्मा की पुस्तक "सिरपुर : सैलानी की नजर से" हाथ में आई तो पढते ही चली गई। सरल, सहज एवं प्रवाहमय शब्द शैली इसकी विशिष्टता है जो पाठक को अंत तक बांधे रहती है। पुरातत्व एवं इतिहास जैसे नीरस विषय को इन्होंने अपनी लेखनी से रोचक बना दिया। प्राचीन कोसल की राजधानी सिरपुर के यात्रा वृत्तांत को इन्होने अपनी पुस्तक के माध्यम से संजोया है। सैलानी की नजर से सिरपुर का वर्णन करते हुए कहीं ये नहीं लगता कि किसी यात्री को पढा जा रहा है, लगता है कि किसी पुराविद या इतिहासकार की कृति पढ रहे हैं। ऐसा इसलिए है कि इन्होंने विद्यार्थी जीवन से सिरपुर की यात्राएं कई बार की हैं। 

पुस्तक में इन्होंने यात्रा के दौरान घटित छोटी-छोटी बातो एवं घटनाओं पर भी सुक्ष्म दृष्टि डाली है। बस में मोबाईल पर बातें करती लड़कियाँ हो या सहयात्री का गोद में खेलने के लिए आतुर बच्चा। रायपुर से सिरपुर के बीच आने वाले अन्य दर्शनीय स्थलों के विषय में जानकारी देकर इस पुस्तक को महत्वपूर्ण बना दिया है। यात्री की मंजिल भले ही कहीं और हो पर वह रास्ते में होने वाली घटनाओं और स्थलों पर भी नजर रखनी चाहिए। पुस्तक में छत्तीसगढ़ की खेती किसानी के साथ संस्कृति की झलक देखने मिलती है। रास्ते में धान काटते किसान हों या दीवाली के बाद गाड़ा बाजा के साथ परम्परागत लोक नृत्य करते राऊत। सभी इस पुस्तक का हिस्सा हैं।

पुस्तक के प्रारंभ में वर्तमान सिरपुर नगर में उत्खनित स्थलों का नक्शा दिया गया है। जिससे सिरपुर आने वाले सैलानियों को दर्शनीय स्थलों की जानकारी सहज ही प्राप्त हो जाए। मूर्तियों के शिल्प के सारगर्भित वर्णन के साथ तत्कालीन शिल्पकारों की आर्थिक, सामाजिक दशा पर शोध प्रशंसनीय है। सिरपुर का प्राचीन नाम श्रीपुर था, वर्तमान गाँव का नाम सिरपुर है। इन्होने वर्तमान सिरपुर का भी गहन सर्वेक्षण किया है, जो वर्तमान की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। सर्वेक्षण में सरकारी कार्यालयों, स्कूलों के साथ सायकिल का पंचर बनाने की कि दुकानों का जिक्र है। जिससे पर्यटक को यह जानकारी मिलती है कि कोई भी गाड़ी पंचर होने पर आपातकाल में सिरपुर में पंचर बनाने की सुविधा भी उपलब्ध है।

किंवदंतियों के साथ सिरपुर भ्रमण रोचक बन पड़ा है इससे पता चलता है कि एक सैलानी की दृष्टि कहाँ तक जा सकती है। सुरंग टीला से प्रारंभ हुई सिरपुर यात्रा  लक्ष्मण मंदिर, राजमहल, नागार्जुन आचार्य निवास, स्वास्तिकविहार, पद्यपाणिविहार आनंदप्रभ कुटी विहार, सेनकपाट, जैन विहार, बालेश्वर शिवालय समूह, तीवरदेव महाविहार, सुरई-ससई विहार, किसबिन डेरा, बाजार क्षेत्र, गंधर्वेश्वर मंदिर,अरुणोदय स्तूप के साथ करबा-करबिन टीला में भूगर्भ में दबे हुए युगल मंदिर पर सम्पन्न होती है।

सिरपुर से पूर्व शरभपुर राजवंश की राजधानी शरभपुर थी, जिसका जिक्र व्हेनसांग अपने यात्रा वृत्तांत में करते हैं। यहाँ पर सैलानी की जिज्ञासु प्रवृति की झलक दिखाई देती है। सैलानी शरभपुर की खोज में बार-नवापारा के सघन वन में प्राचीन राजधानी की खोज में निकल पड़ता है। जंगल में भटकने बाद उसे कई नाले पार करके पहाड़ी पर सिंघन गढ  का किला मिल जाता है। वहाँ की स्थिति का वर्णन इन्होने बखूबी अपनी पुस्तक  में किया है। साथ ही खूर्द-बूर्द होती पुरातात्विक धरोहरों के संरक्षण के लिए चेताया है। धसकुड़ के झरने के साथ खैर के वृक्षों की छाल से कत्था बनानी वाली खैरवार जाति की जानकारी भी सैलानी की पैनी नजर की परिचायक है।

सिरपुर के स्मारकों, भौगौलिक स्थिति का वर्णन करते हुए शोधपूर्ण दृष्टि डालते हुए सिरपुर के पतन के कारणों के साथ परग्रहियों (एलियन) के आगमन का भी जिक्र पुस्तक का महत्वपूर्ण अध्याय है। सिरपुर के बाजार की आभासी सैर पढने से ऐसा लगता है कि हम हजारों वर्ष पीछे जाकर उस काल खंड का हिस्सा बन गए हैं। जैसे कोई टाईम मशीन से हमें महाशिव गुप्त बालार्जुन के काल की सैर करवा लाया हो। बाजार की सैर के दौरान मूर्तियों के शिल्प के साथ प्राचीन कोसल में स्त्रियों द्वारा धारण किए जाने वाले आभुषणों का अद्भुत वर्णन है।

पुस्तक के अंत में सिरपुर के संबंध में ब्लॉगर्स के द्वारा की गई टिप्पणियों को स्थान दिया गया। किसी भी पुस्तक में पाठकों की प्रतिक्रियाओं को प्रथम संस्करण में स्थान पहली बार दिया गया है। पुस्तक के कव्हर पर सिरपुर के उत्खनन में प्राप्त महत्वपूर्ण एवं विशाल स्मारक सुंरग टीला (पंचायतन मंदिर) को प्रमुख स्थान देने के साथ लक्ष्मण मंदिर एवं तीवरदेव विहार स्थित भूमि स्पर्श मुद्रा में स्थित बुद्ध प्रतिमा को मुख्यरुप से दर्शाया गया है। पुस्तक का कव्हर आकर्षक है तथा सामग्री भी नि:संदेह पठनीय एवं संग्रहणीय है। यह पुस्तक सैलानियों के साथ शोधकर्ताओं, विद्यार्थियों एवं आम आदमी के लिए भी बहुपयोगी है।

पुस्तक सिरपुर; सैलानी की नज़र से
लेखकललित शर्मा
प्रकाशकईस्टर्न विन्ड, नागपुर
मूल्यरुपये 375/- (सजिल्द)
कुल पृष्ठ – 99
रंगीन 10 पृष्ठ अतिरिक्त