गुरुवार, 23 जून 2011

तेरी राह हूँ मंजिल नहीं......... संध्या शर्मा

तेरी राह हूँ
मंजिल नहीं
कश्ती हूँ
साहिल नहीं
वक़्त की आंधी चलेगी
इस तरह.............!
कश्ती कहीं
और साहिल कहीं
राह कहीं
मंजिल कहीं.............

शनिवार, 11 जून 2011

हम एक गीत गुनगुनाते हैं........ संध्या शर्मा

राह दुनिया की वो दिखाते हैं,
हम तो गलियां भी भूल जाते हैं.

उनकी यादों का सहारा लेकर,
अपनी तनहाइयाँ सजाते हैं.

जिनको समंदर डुबो नहीं सकता,
एक प्याले में डूब जाते हैं.

दाद देते हैं मेरे गीतों की,
क्या करें हम भी मुस्कुराते हैं.

कोई हमदर्द अब नहीं मिलता,
सब के सब घाव ही दिखाते हैं.

दर्द सीने में जब भी उठता है,
हम एक गीत गुनगुनाते हैं.