सोमवार, 27 अगस्त 2012

कोरे पन्ने जीवन के... संध्या शर्मा

बहुत कुछ लिखना है
जीवन की किताब में
कुछ शब्द उकेरना है
कुछ भाव समेटना है
कहाँ से शुरुआत करूँ
कहाँ जाकर रुकूँ
कभी लगता है भूत लिखूं
भविष्य लिखूं
क्यों ना वर्तमान लिखूं
यहाँ भी भटक जाती हूँ
लिखने लगती हूँ
बिना स्याही के
शब्द उभरते नहीं
स्याही मिली
तो शब्द ना सूझे
मिले भी तो ऐसे
कि भर आये नयनो से
झर-झर  झर गए
जीवन के पन्ने
कोरे थे
कोरे ही रह गए....

मंगलवार, 21 अगस्त 2012

चिरनिद्रा से वापसी...संध्या शर्मा

आज अचानक असमय सो गई 
सोते हुए स्वपन में जाग उठी
उठते ही कविता की कॉपी याद आई
बैचेनी से इधर-उधर ढूँढने लगी 
अचानक पाँव तले पानी महसूस हुआ
इतना पानी देखकर समझ गई
मेरी काव्य सरिता में बाढ़ आई  
देखते - देखते उसमे डूबने लगी
तैरने के लिए कल्पना की डोर बांधी
विचारों का मज़बूत सहारा लिया
शब्दों के पुल खोजने लगी
उन्ही तरंगो में कल्पना की
सुन्दर सजीली नाव दिखी
उमंगों की एक छलांग में
उस नाव पर सवार हो गई
उसी नाव में दिखे डायरी के पन्ने
कुछ पूरे और कुछ अधगीले
कुछ सीधे कुछ मुड़े-तुड़े से
जल्दी -जल्दी उन्हें समेटने लगी
एक पन्ना हाथ से छूटा उड़ने लगा
अधीरता से उसे संभाला थामा
हाथ आया तो पढने का मन किया
जैसे ही उसे खोलकर देखा
आश्चर्य से आँखे खुल गईं
मैं गहरी नींद से जाग गई  
म्रत्यु को साधे जीवन से बांधे  
स्वप्न से बाहर यथार्थ की दुनिया में
मुझे ले आये खींचकर मेरे ही शब्द  
बताऊँ वहां क्या लिखा था?
 "चिरनिद्रा से वापसी"

मंगलवार, 14 अगस्त 2012

स्वतंत्रता दिवस और हम... संध्या शर्मा

आ गया फिर एक स्वतंत्रता दिवस. देश के प्रति अपनी भावनाएं अभिव्यक्त करने का दिन.आज़ादी को सेलीब्रेट करने का दिन. हमारे यहां त्योहारों की विशाल श्रृंखला है और राष्ट्रीय पर्व मनाने के सिर्फ़ दो ही अवसर आते हैं. फिर भी हमारे देश के युवा देश के प्रति अपना प्यार दर्शाने के कोई कसर बाकी नहीं रहने देते. जाहिर है, देशभक्त युवाओं को यह बात स्वीकार नहीं होगी कि वे देश को प्यार नहीं करते, उनके द्वारा अपनी देशभक्ति साबित करने का भरपूर प्रयास किया जाता है.वे वाहनों पर तिरंगा लहराते हैं, अपने मोबाइल में देशभक्ति की हैलो ट्यून लगाते हैं, स्क्रीनसेवर, वॉलपेपर, डेस्कटॉप, वेशभूषा, यहाँ तक की अपने चेहरे का मेकअप तक सब कुछ देश प्रेम के रंग में रंग देते हैं. फिर हम कैसे कह सकते हैं कि इन्हें इस देश की परवाह नहीं? देश से प्यार नहीं? लेकिन देशभक्ति को किसी पैमाने पर नहीं मापा जा सकता.
इसके लिए सचमुच अपने हृदय पर हाथ रखकर खुद से कुछ सवाल करने होंगे और खुद को ही कुछ ईमानदारी से जवाब देने होंगे. सोचिये हमने अपनी जन्मभूमि को माता का स्थान दिया है. यह देश सदियों से नारीत्व को सम्मान देने वाली गरिमामयी संस्कृति के लिए जाना जाता है अगर इस देश में नारी का किसी भी रूप में अपमान होता हैं, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज़ हत्या, स्त्री के मानमर्दन जैसी शर्मनाक घटनाएँ होती हैं. तो कैसे कह सकते है हम देशभक्त हैं? आपकी यह दिखावे की देशभक्ति देश के किस काम की? आपका राष्ट्रप्रेम किस काम का?
हमारा देश आज भ्रष्टाचार रुपी दानव की भेंट चढ गया है. बिना लेन-देन के कोई काम नहीं होता. सरकारी आफ़िसों में सर्वभक्षी अपना मुंह फ़ाड़े बैठे रहते हैं. थाने में स्त्रियों से बलात्कार होता है. अपराधी छूट जाते हैं, आम नागरिक सजा पाते हैं. सरकारी कर्मचारी उपरी आमदनी के लिए कुछ भी कर सकते हैं. ईमानदारी ताक पर रखी हुई है. लालफ़ीताशाही से परेशान आम आदमी न चाह कर भी अपना काम करवाने के लिए घूस देता है. भ्रष्टाचार अब शिष्टाचार बन गया है. इस तरह भ्रष्टाचार करके देश भक्ति का ढोंग करने वाले लोग कभी भी, किसी हालत में  देशप्रेमी नहीं कहला सकते. 

भ्रष्टाचार तमाम बुराइयों की जड़ है और लालच इस भ्रष्टाचार की जननी. अगर आप किसी भी रूप में इस तरह के काम में शामिल हैं, तो देशप्रेम के कितने ही ऊंचे स्वर में नारे लगा लीजिए सब दिखावा है सारे विचार खोखले हैं. क्या देश से भ्रष्टाचार हटाने का जिम्मा क्या सिर्फ कुछ खास लोगों का ही है? नहीं...  आजादी के 65 वें स्वतंत्रता दिवस हम संकल्प लें कि देश से भ्रष्टाचार और बुराईयों को समाप्त करने की पहल स्वंय से ही करेगें. हमारे पूर्वजों ने जिस राष्ट्र की कल्पना की थी, जिस भ्रष्टाचार विहीन, अपराध विहीन, सशक्त राष्ट्र का सपना अपनी जागती आखों से देखा था. वह एक दिन पूरा होगा. अगर हम नागरिक धर्म को निभाएगें तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा देश पुन: विश्वगुरु का दर्जा पाएगा.

बुधवार, 8 अगस्त 2012

माँ... संध्या शर्मा

यह कविता नहीं,  कुछ बाते हैं, जो कहना चाहती हूँ, शायद मैं ठीक से कह भी नहीं सकी... 

मेरी माँ अर्धमूर्छित अवस्था में भी 
हमारी चिंता करती बस यही कहती
बेटा मिलजुलकर रहना
छोटी बहन की शादी करना
भाई के लिए पढ़ी - लिखी दुल्हन लाना
सुन्दरता पर मत जाना
मेरी अंतिम यात्रा की खबर इन-इन को देना
इन्हें सबसे पहले फोन कर देना...
माँ जो पहले हमेशा हमे चिढाती थी कहकर
"हे भगवान ले लो मेरे प्राण" सुनकर
हम नाराज होते वो मुस्कुराती थी
वही डॉक्टर के आगे गिड़गिड़ाती
तीन साल असहनीय पीड़ा झेलती
जीती रही हमारी खातिर
जब कभी दर्द से थक हार जाती
मैं कहती माँ जीना है तुम्हे हमारे लिए
सुनकर जी उठती पर जाने क्या सोचती
फिर आई सन २००० अगस्त माह की ९ तारीख
याद है मुझे वो दर्द भरी कांपती आवाज
"बेटा बहुत दर्द है, अब नहीं सहा जाता
और और आगे नहीं सुना गया .....
उसदिन ईश्वर से हमने की थी प्रार्थना           
"तू अब मत रोने दे मेरी माँ को
बहुत रो चुकी, बहुत सह चुकी
अब हमारी रोने की बारी है"
शायद माँ भी बस इसीलिए रुकी थी
सो गई, मुख पर गहरी मुस्कान लिए
चिरनिद्रा में हमेशा-हमेशा के लिए........

रविवार, 5 अगस्त 2012

दोस्ती... संध्या शर्मा

दोस्ती एक सुन्दर मुक्त स्वरूप की संकल्पना ! एक बंधन..."दोस्ती" मात्र शब्द नहीं एक अहसास है ....जहाँ दो सत्यों का मिलन हो वहां सच्ची दोस्ती पनपती है ....जहाँ कोई भेद नहीं ....कोई द्वैत नहीं ....बस है तो एक मधुर अहसास ..! दोस्ती निस्स्वार्थ रूप में किया गया स्नेह, प्रेम, एक आलौकिक प्रेम की मधुर अनुभूति मैत्री... बरखा की बूंदों से कोई पूछता है क्या "तू यहाँ क्यों गिरी?" कभी तितलियों से पूछा है "तूने यही फूल क्यों चुना? "  फिर दोस्ती में ऐसे प्रश्न क्यों? सचमुच यह मित्रता स्त्री-पुरुष, सजीव-निर्जीव, ऊंच-नीच के भेद-भाव से परे होती है... कल की यादों के लिए आज के पल-पल को जी लो, अपनी राहें कभी न कभी तो अलग होनी ही हैं. हाथों में हाथ न सही दोस्ती का खुला आकाश यादों में जीवन भर के लिए साथ होगा ना, इतना भी काफी है जीने के लिए.    

दोस्ती करो तो 
जल सी निर्मल करो
दूर होकर भी
पल-पल याद आये
ऐसी करो

दोस्ती करो तो
चाँद - तारों सी अटूट करो
अंजली में भरकर भी
आकाश में ना समाये
ऐसी करो

दोस्ती करो तो
दीपक जैसी करो
अँधेरे में प्रकाश भर दे
ह्रदय को मंदिर कर दे
ऐसी करो 

दोस्ती करो तो
प्रकृति सी सुन्दर करो
नाज़ुक डोर विश्वास की
जीवन भर को बंध जाये
ऐसी करो

दोस्ती करो तो
कृष्ण-सुदामा सी पावन करो
विप्र-नृप का भेद भी
बीच ना आए
ऐसी करो