अमरकंटक सुंदर धार्मिक स्थल है, शास्त्रों में यह शैव क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। जब हम कक्षा नवमी में पढ़ते थे, मीडिया सेंटर द्वारा आयोजित एक सप्ताह की कार्यशाला में हिस्सा लिए थे। वहाँ हमें अमरकंटक की एक सुन्दर डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई। तब से इच्छा थी वहां जाकर घूमने की। जबकि जबलपुर से एक दिन में वहां जाकर वापस आया जा सकता है, लेकिन संयोग नही बन सका। अचानक एक दिन योजना बनी, आनन-फ़ानन में रेल आरक्षण भी मिल गया और 11 जून की रात शिवनाथ एक्सप्रेस से चलकर हम सब बिलासपुर पहुंचे। वहां से लोकल ट्रेन से पेण्ड्रा रोड पहुंचे, स्टेशन के बाहर निकल कर हमें जाने के लिए आरामदायक वाहन मिल गया, जिससे हम लगभग 3 बजे अमरकंटक पहुंचे।
कल्याण आश्रम - अमरकंटक पहुँचकर हमें ठहरने की व्यवस्था कल्याण आश्रम उपलब्ध हुई। सुन्दर स्वच्छ भक्तिमय वातावरण और भव्य सुन्दर-सुन्दर मूर्तियों, हरे-भरे वृक्षों और रंग बिरंगे पुष्पों से सजा प्रांगण बड़ा ही मनमोहक था। कुछ देर प्रतीक्षा के बाद हमें वहां रुकने का स्थान मिल गया।
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कल्याण आश्रम का मुख्य द्वार |
अमरकंटक मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले की मैकल पर्वत श्रेणी स्थित अमरकंटक एक प्रसिद्ध शैव तीर्थस्थल है। समुद्र तल से 1065 मीटर इस स्थान पर मध्य भारत के विंध्य और सतपुड़ा की पहाडि़यों का मेल स्थल भी है। यहां के खूबसूरत झरने, तालाब, पहाडि़याँ और स्वच्छ, शांत वातावरण सभी का मन मोह लेता है। नर्मदा, जोहिला नदियों और शोणभ्रद का उद्गम स्थल अमरकंटक प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहा है। यहाँ का वातावरण इतना नयनाभिराम है कि यहाँ पर तीर्थयात्रियों समेत अनेक प्रकृति प्रेमी सैलानीयों का ताँता लगा रहता है। यह एक लोकप्रिय हिन्दू तीर्थस्थल है। माँ नर्मदा को समर्पित यहाँ अनेक मंदिर बने हैं। अमरकंटक आयुर्वेदिक वनस्पतियों के लिए भी प्रसिद्ध है, जिन्हें संजीवनी गुणों से भरपूर माना जाता है।
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नर्मदा उद्गम स्थान पर संध्या आरती |
नर्मदा उद्गम स्थल- शाम हो चुकी थी इसलिए आज ज्यादा कुछ घूमना संभव नहीं था। माँ नर्मदा का उद्गम स्थल आश्रम से करीब एक-डेढ़ किमी की दूरी पर है। हम जब वहां पहुंचे तो महाआरती का समय हो चुका था।अमरकंटक को पवित्र नर्मदा नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। यहां स्थित नर्मदाकुंड से नर्मदा नदी का उदगम होता है इस पवित्र नदी मे स्नान करने हेतु हजारों तीर्थयात्री दूर-दूर से आते हैं तथा इस जल मे स्नान करके पवित्रता का एहसास करते हैं। मान्यता है कि नर्मदा उत्पत्ति शिव की जटाओं से हुई है अत: भगवान शिव व उनकी पुत्री नर्मदा यहां पर वास करते हैं नर्मदा के उद्गम स्थल के चारों ओर कई मंदिरों का निर्माण किया गया है। इन मंदिरों में नर्मदा, शिव, कार्तिकेय और श्रीराम जानकी आदि मंदिर स्थापित हैं। यहाँ पर प्रस्तर का हाथी भी है, ऐसी मान्यता है की मोटे से मोटा व्यक्ति भी इसमें से निकल जाता है और दुबला पापी नही निकल सकता।
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नर्मदा मंदिर की पैड़ियों पर विश्राम |
कलचुरी कालीन कर्ण मंदिर समूह - नर्मदाकुंड से कुछ दूर दक्षिण में कलचुरी काल एवं उसके परवर्ती काल के समय के अनेक प्राचीन मंदिर बने हुए हैं जिनका निर्माण कलचुरी के महाराजा कामदेव एवँ कर्ण ने करवाया था। यहां का पातालेश्वर मंदिर उस समय की निर्माण कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। यहाँ मुख्यत पातालेश्वर मन्दिर, शिव मन्दिर, जोहिला मंदिर एवं कर्ण मन्दिर है। मंदिर के चारों ओर शानदार हरा भरा आंगन है। इसके एक किनारे पर कुआँ भी दिखाई दिया। पातालेश्वर शिव मंदिर छोड़कर मंदिरों में ताले लगे हुए थे. जबकि पातालेश्वर शिव मंदिर में बाकायदा जलाभिषेक और पूजा का प्रबंध था।
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कर्ण मंदिर समूह स्थित - जोहिल मंदिर |
इस स्थान की सुंदरता और पवित्रता ने दिनभर की गर्मी और सफ़र की तकलीफों को भुला सा दिया। वहां से वापसी में रात्रि भोजन ग्रहण करने पश्चात् हम कल्याण आश्रम आ गए। सोने से पहले आगामी योजना के अनुसार घूमने का प्रबंध किया जाना था. एक या दो घण्टे में सभी स्थानों को ठीक से नही देखा जा सकता, इसलिए १३०० रुपए में दिनभर लिए गाड़ी तय की गई।
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कलचुरी कालीन कर्ण मंदिर |
श्रीयंत्र मंदिर - श्रीयंत्र मंदिर की विशेषता है कि यह देवी का शक्तिपीठ माना जाता है और यहाँ मान्यता के अनुसार देवी के बाजू, कलाई का हिस्सा गिरा था। मंदिर पिछले 27 सालों से निर्माणाधीन है। बनावट से लगता है कि किसी रहस्यमय तांत्रिक प्रभाव वाली जगह में प्रवेश कर रहे हैं। इसे केवल विशेष मुहूर्त पर बनाया जाता है। याने विशेष मुहूर्त जितनी देर के लिये होगा, केवल उतनी ही देर काम चलेगा फिर रोक दिया जायेगा। बाहर लिखा था कि भीतर कहीं भी फोटो न लें। मंदिर में त्रिपुर सुंदरी की मूर्ति विद्यमान है। जब यह बन जाएगा तो केवल विशेषज्ञ (पंडित, साधु, महात्मा आदि) ही आ पाएंगे। कठिन साधना के बाद तंत्रशक्ति सिद्धी आंख पर काली पट्टी बांध करवाई जाएगी। जो माता की शक्ति यहां गुप्त रूप में मौजूद है उससे सिद्धी होगी। अनिष्ट होने की दृष्टि से इसे कोई देख नहीं सकता। अत: इसे ढंककर रखना शास्त्रों के अनुसार अनिवार्य है। श्रीयंत्र की शक्ल में बन रहा मंदिर का प्रागंण बरबस ही आकर्षित करता है।
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श्रीयंत्र मन्दिर |
सोनमुड़ा - सोनमुड़ा स्थल शोण नद का उद्गम है यह नर्मदाकुंड से कुछ दूर मैकल पहाडि़यों के किनारे पर स्थित है। शोण झरने के रूप में यहां प्रवाहित है। इसकी की रेत चमक से युक्त सुनहरी लगती है इस वजह से ही इसको शोण नद के नाम जाना जाता है। यहाँ पर स्थानीय जड़ी बूटियों की कई दुकाने दिखाई दी और दीवार पर पेंट किया हुआ हर साध्य-असाध्य रोग का नाम के साथ उन रोगों के इलाज़ मिलने वाली दवाओं का नाम।
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शोण उद्गम |
कबीर चबूतरा - कबीर चबूतरा कबीरपंथियों के लिए विशेष महत्व रखता है। इसी जगह पर संत कबीर ने वर्षों तप किया था तथा संत कबीर व गुरु नानकदेव जी मिले थे। उन्होने परस्पर अपने विचारों का आदन-प्रदान किया। इस चबूतरे के पास कबीर झरना भी बहता है। खूब सारे गुलबकावली के पौधे भी हैं यहाँ।
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कबीर चौरा |
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कपिल धारा |
दूधधारा - कपिलधारा का पानी आगे जाकर दूधधारा नामक प्रसिद्ध झरने के रूप में प्रवाहित होता है। काफी ऊंचाई से गिरने के कारण इस झरने का जल, दूध के जैसा धवल प्रतीत होता है इसीलिए इसे दुग्धधारा के नाम से जाना जाता है। कपिलधारा से बने पतले से पहाड़ी रस्ते से नीचे उतरकर इस स्थान पर पहुंचा जाता है। उतरना तो फिर भी हो गया, लेकिन वापस आना हमारे लिए बहुत कठिनाई भरा रहा, सांस लेना मुश्किल हो रहा था जैसे-तैसे रुक-रुक कर आखिर ऊपर वापस आ ही गए।
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दूध धारा |
शोण और नर्मदा की कथा - शोण और नर्मदा की प्रेमकथा पूरे अंचल में प्रचलित है। कहा जाता है कि राजा मैकल ( मैकल पर्वत श्रेणी) ने पुत्री राजकुमारी नर्मदा के लिए निश्चय किया कि जो राजकुमार बकावली के फूल लाकर देगा, उसका विवाह नर्मदा से होगा। राजपुत्र शोण, बकावली के फूल ले आया लेकिन देर हो जाने से विवाह नहीं हो पाया। इधर नर्मदा, शोण के रूप-गुण की प्रशंसा सुन आकर्षित हुई और नाइन-दासी जोहिला से संदेश भेजा। जोहिला ने नर्मदा के वस्त्राभूषण मांग लिए और संदेश लेकर शोण से मिलने चली। जयसिंहनगर के ग्राम बरहा के निकट जोहिला का शोण से संगम, वाम-पार्श्व में दशरथ घाट पर होता है और कथा में रूठी राजकुमारी नर्मदा कुंवारी ही विपरीत दिशा में प्रवाहित हो जाती है, याने पश्चिम दिशा में बहते हुए अरब सागर में जा मिलती है। जबकि शोण पूर्व की तरफ प्रवाहित हो बंगाल की खाड़ी में गिरता है. हमारे देश में ब्रह्मपुत्र और शोण दो नद माने गए है। और बाकी सब नदियाँ।
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हर जगह बंदरों का राज |
इन स्थलों के दर्शन पश्चात हम बहुत थक गए थे। भोजन के उपरांत आश्रम पहुंचे और रात भर आराम किया। अगले दिन हमने अपनी वापसी की। अमरकंटक से 700 रुपए में टैक्सी किराया कर पेंड्रा रोड़ स्टेशन पहुंचे और वहाँ से बिलासपुर आकर नागपुर के लिए ट्रेन पकड़ी। कुल मिलाकर गर्मी के मौसम कुछ दिन प्राकृतिक वातावरण में रहने के कारण हमारी यह यात्रा सुखद रही।
हमारा भी बड़ा मन है वहां जाने का .....
जवाब देंहटाएंआपके सुन्दर वृत्तांत ने और खलबली मचा दी.....
:-)
सस्नेह
अनु
सुंदर वर्णन और मनमोहक चित्रों को देखकर आनंद आ गया।
जवाब देंहटाएंकुछ माह पहले हमारा परिवार भी मां नर्मदे का दर्शन कर आये किन्तु जल्दबाज़ी में इतिहास को जानने का प्रयास नहीं किये। इसके अलावा कुछ स्थानों का भ्रमण नहीं हो पाया था। अब वह सब कुछ यहां मिल गया…सुन्दर वर्णन ।
जवाब देंहटाएंVERY NICE POST SANDHYA JI .THANKS TO SHARE .
जवाब देंहटाएंखूबसूरर्ती से लिखा और चित्रित किया यात्रा व्रतांत
जवाब देंहटाएंसुन्दर यात्रा वृतांत और चित्र
जवाब देंहटाएंप्रकृति का सान्निध्य सदा सुख से भर देता है..सुंदर वृतांत !
जवाब देंहटाएंसचित्र यात्रा वृतांत मन को भा गया ......
जवाब देंहटाएंआभार आपका
आनंद आ गया संध्या जी मनमोहक चित्रों को देखकर
जवाब देंहटाएंश्रीयंत्र की आकार में बन रहे मंदिर की निर्माण प्रक्रिया दिलचस्प है . वैज्ञानिक युग में भी तंत्र मंत्र अपनी जगह बनाये हुए हैं .
जवाब देंहटाएंसुन्दर वृतांत पढ़कर अमरकंटक देखने की इच्छा हो उठी है !
रोचक !
बहुत सुंदर,सचित्र यात्रा वृत्तांत.
जवाब देंहटाएंnice journey.
जवाब देंहटाएंbeautiful scenes.
सुंदर चित्रमय झांकी चलचित्र सी और विवरण भी उम्दा।
जवाब देंहटाएंअगस्त के प्रथम सप्ताह में जबलपुर जा रहा हूँ, कोशिश रहेगी कि यहाँ जाया जाये ! मंगलकामनाएं आपको
जवाब देंहटाएंbahut Accha....
जवाब देंहटाएंKripaya mera blog bhi dekhe
http://swayheart.blogspot.in/