मंगलवार, 15 अक्टूबर 2013

आम खबर


ख़बरों का अम्बार
ख़बरों भरा अखबार
कहीं नरसंहार
कहीं बलात्कार
पुलिस का अत्याचार
अधिकारियों का भ्रष्टाचार
नेताओं के हथकंडे
सुरक्षा बलों के डंडे
संवाददाताओं के पुलिंदे
रतजगे उनींदे
रेल बस की लेटलतीफी
मध्यम वर्ग की मज़बूरी
पक्ष की घोषणाएं
विपक्ष की आलोचनाएँ
मंत्रियों के दौरे
आश्वासनों के सकोरे
वादों के कुल्हड़
दावों पर हुल्लड़
रसोई गैस-पेट्रोल का अभाव
उस पर बढ़ते भाव
आम आदमी परेशान
महंगाई से हलाकान
सायकिल ओंटते हुए
पेट में भूख की जलन
अवसाद से भरा मन
मारा जाता है एक दिन
स्विस बैंक की रफ़्तारी
चपेट में आकर
बन जाता आम आदमी
अखबारों की खबर....!

16 टिप्‍पणियां:

  1. किसी के लिए और किसी के लिए ख़ास .....खबर की अपनी दुनिया होती है और सब पर उसका अपना प्रभाव होता है .....!!!

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  2. बहुत अच्छी रचना...सार्थक विचार लिए.

    सस्नेह
    अनु

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  3. स्विस बैंक की रफ्तारी की चपेट में आकर मारा जाता है आम आदमी। यह पंक्ति बताती है कि आप अर्थव्‍यवस्‍था की विसंगतियों की अच्‍छी जानकारी रखते हैं।

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  4. सार्थक विचार लिए.बहुत सुंदर .रचना..

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  5. देश की वर्तमान दशा पर सटीक कविता…… शुभकामनाएं

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  6. सुंदर और सार्थक रचना-----
    उत्कृष्ट प्रस्तुति

    सादर आग्रह है मेरे ब्लॉग सम्मलित हों
    पीड़ाओं का आग्रह---
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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  7. सच में आज आदमी सिर्फ एक ख़बर बन कर रह गया है..बहुत सटीक अभिव्यक्ति...

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  8. देश की वर्तमान स्थिति के कड़ा प्रहार है ... व्यंगात्मक सुन्दर रचना ...

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  9. आम आदमी की जिंदगी दिन बा दिन कितनी मुश्किल होती जा रही है। ……. उसकी परेशानी को जुबान देते शब्द |

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  10. लाज़वाब संध्या जी ...हर खबर में पिस्ता है आम आदमी मेरे भी ब्लॉग पर आये

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  11. बहुत सुन्दर आज की हकीकत एवं अवसादों को व्यक्त करती बहुत ही सुन्दर रचना आपकी

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