जुगनु सा है जीवन मेरा
क्षण में बुझती जलती हूँ
मन भर प्रकाश फ़ैलाने
नित जोत सी जलती हूँ
सूरज ढलता पश्चिम में
मै चौबारे पर ढलती हूँ
हूं माटी का एक घरोंदा
नश्वर जग की राही हूँ
नही रही चाह महल की
सिर्फ़ तेरी चाहत चाही हूँ
सूरज ढलता पश्चिम में
मै चौबारे पर ढलती हूँ
जुगनु सा है जीवन मेरा
क्षण में बुझती जलती हूँ
तन्हाई में बैठ अकेले
बीज प्यार के बोती हूँ
कैसे गाऊँ गीत सुहाने
सूली सेज पे सोती हूँ
नियति यही रही मेरी
धरती जैसे चलती हूँ
मन भर प्रकाश फ़ैलाने
नित जोत सी जलती हूँ
हरा भरा प्रीत का झरना
बहे सुवास अमराई में
कांटे चुन लूं राह के तेरी
संग हूँ जग की लड़ाई में
दिवस ढलता चंदा ढलता
मै यामिनी सी जगती हूँ
नियति यही रही मेरी
धरती जैसे चलती हूँ
नियति यही रही मेरी धरती जैसे चलती हूँ...
जवाब देंहटाएंसुंदर पंक्तियाँ,.बेहतरीन प्रस्तुति,सुंदर रचना.....
MY NEW POST ...काव्यान्जलि...सम्बोधन...
प्रकाश फैलाती सी सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली अभिव्यक्ति.... बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर , सम्पूर्ण काव्य..बहुत ही सुन्दर लिखा है..बधाई...
जवाब देंहटाएंतन्हाई में बैठ अकेले
जवाब देंहटाएंबीज प्यार के बोती हूँ
कैसे गाऊँ गीत सुहाने
सूली सेज पे सोती हूँ
नियति यही रही मेरी
धरती जैसे चलती हूँ... बहुत ही अच्छी रचना . कर्तव्य पथ पर अकिंचन , अथक , अहर्निश
खुद को प्रकृति के साथ परिभाषित करती सुन्दर रचना तस्वीर भी खूबसूरत |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर काव्यधारा।
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 23-02-2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं..भावनाओं के पंख लगा ... तोड़ लाना चाँद नयी पुरानी हलचल में .
बहुत भावपूर्ण और सुंदर गीत !
जवाब देंहटाएंजुगनु सा है जीवन मेरा
जवाब देंहटाएंक्षण में बुझती जलती हूँ
मन भर प्रकाश फ़ैलाने
नित जोत सी जलती हूँ.........
....बेहतरीन प्रस्तुति
वाह ...वाह....बहुत ही सुन्दर गीत है ।
जवाब देंहटाएंतन्हाई में बैठ अकेलेबीज प्यार के बोती हूँकैसे गाऊँ गीत सुहानेसूली सेज पे सोती हूँनियति यही रही मेरीधरती जैसे चलती हूँ
जवाब देंहटाएंइस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें
नीरज
अनुपम भाव संयोजन लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंshandar abhivyakti...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,बेहतरीन अनुपम अच्छी प्रस्तुति,.....
जवाब देंहटाएंMY NEW POST...काव्यान्जलि...आज के नेता...
बहुत ही सुन्दर रचना, शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंसादर
सूरज ढलता पश्निम में
जवाब देंहटाएंमै चौबारे पर ढलती हूँ
बहुत खुबसूरत रचना....
हार्दिक बधाईयाँ.
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ,प्रभावशाली अभिव्यक्ति...
बधाई.
बेहतरीन कविता।
जवाब देंहटाएंसादर
सूरज ढलता पश्चिम में
जवाब देंहटाएंमै चौबारे पर ढलती हूँ
बहुत सुन्दर सारगर्भित रचना !
बेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंsampurdta liye huye sundar kavy
जवाब देंहटाएंवाह||
जवाब देंहटाएंबहूत हि सुंदर,,
अनुपम भाव संयोजन.....
बेहतरीन रचना....
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति है आपकी.
जवाब देंहटाएंशब्द और भाव संयोजन बहुत अच्छा लगा.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
समय मिलने पर 'मेरी बात...'
पर आईएगा.
मन को आलेकित करती सुंदर भावमयी कविता।
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