और तुम
ले जा रहे हो मुझे सागर में
मुझे प्यास नहीं कोई चाह नहीं
हाँ डर है...!
कहीं सागर निगल न ले
मेरे अस्तित्व को
ध्यान से देखो मुझे मैं तो पत्थर हूँ
और तुम
ले जा रहे हो मुझे हिमशिखर पर
पारस बनने की चाह नहीं
हाँ डर है
कहीं पिघल ना जाऊं
मोम बनकर...!
मैं तो एक बूँद हूँ, नन्ही सी ओस की
और तुम
बनाना चाहते हो बदली
नहीं घिरना चाहती झूमकर
हाँ डर है
कहीं बरस ना जाऊं
और समा जाऊं धरती में हमेशा के लिए...!
अस्तिव के खोने का डर!!!
जवाब देंहटाएंअदभुद भावाव्यक्ति..
सुन्दर रचना.
बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंastitva khone ka dar bahut hi sunder...........
जवाब देंहटाएंअस्तित्व से परे होने में डर लगता है
जवाब देंहटाएंअपने आप क्यों खो दे ..... ? गहरी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंमिटा दे अपनी हस्ती को गर कुछ मर्तबा चाहिए
जवाब देंहटाएंकि दाना खाक में मिलकर,गुले-गुलजार होता है।
सुन्दर / सार्थक .
जवाब देंहटाएंsundar rachna
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअपने अस्तित्व की लडाई लडती रचना।
सुन्दर रचना.सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंध्यान से देखो मुझे मैं तो पत्थर हूँ
जवाब देंहटाएंऔर तुम
ले जा रहे हो मुझे हिमशिखर पर.........
अपने यहाँ पत्थर ही पूजे जाते हैं ...बात विश्वास और आस की हैं ...उम्मीद रखे अपने वजूद पर ...आभार
ये डर ही हमें हर हाल में जिन्दा भी रखता है .. अति सुन्दर..
जवाब देंहटाएंबिलकुल ताजे बिम्बों ,प्रतीकों के साथ लिखी अच्छी कविता |संध्या जी बधाई |
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढि़या भाव संयोजन ।
जवाब देंहटाएंवाह....सुन्दर शब्दों में गहन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंअपने अस्तित्व से दूर जाने में सच में डर लगता है..सुंदर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंsundar rachna.../
जवाब देंहटाएंsundar rachna.../
जवाब देंहटाएंsundar rachna.../
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहरी और भावपूर्ण अभिवयक्ति.........
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना, ख़ूबसूरत भावाभिव्यक्ति , बधाई.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना , मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है|
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत शब्दों में पिरोई गई रचना सुन्दर शब्द संयोजन |
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता
जवाब देंहटाएंमैं तो एक बूँद हूँ, नन्ही सी ओस कीऔर तुमबनाना चाहते हो बदलीनहीं घिरना चाहती झूमकरहाँ डर हैकहीं बरस ना जाऊं
संध्या जी बेहद ख़ूबसूरती से अलफ़ाज़ दिए है
मैं तो एक बूँद हूँ, नन्ही सी ओस की
जवाब देंहटाएंऔर तुम
बनाना चाहते हो बदली
नहीं घिरना चाहती झूमकर
हाँ डर है
कहीं बरस ना जाऊं
और समा जाऊं धरती में हमेशा के लिए...!
Wah! Kya likha hai!
अस्तिव के खोने का डर... सुन्दर शब्दों में गहन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएं