" उस वक़्त बेटा फीस जमा करने गया हुआ था . हमने कहा चलते हैं बाद में मिल लेंगे तो वह बोली "नहीं ! आप लोग इंतज़ार कर लीजिये और मिलकर ही चलिए " उसके इस कथन ने एक ही पल में कोरोना की भयावह हक़ीक़त सामने ला दी थी !
हम दोनों को एक ही रूम में बेड दे दिए गए .हॉस्पिटल में इलाज़ चालू हो गया . पहले दिन दो डोज़ दिए गए रेमिडेसिविर के और अगले पाँच दिन एक - एक देने थे | इसके अलावा भी सारी दवाइयाँ, सलाईन चल रही थी !
हॉस्पिटल से ही नाश्ते खाने चाय के अलावा सुबह काढ़ा और रात में हल्दी वाला दूध भी दिया जा रहा था|
दिन में तीन से चार बार भाप लेना और गार्गल करना भी जारी था |
यानी सारी पैथी को साथ लेकर चल रहे थे डॉक्टर ... लक्ष्य केवल मरीज का स्वस्थ होकर घर जाना था |
हम दोनों की हालत में बहुत अच्छा सुधार हो रहा था . 5 मार्च को डॉक्टर कह गए थे कि आज शाम के सी टी स्कैन के बाद सब सामान्य होने पर दूसरे दिन डिस्चार्ज कर दिया जायेगा !
शाम को सी टी स्कैन हुआ और 6 अप्रेल की सुबह डॉक्टर ने राउंड के समय हम दोनों को डिस्चार्ज नोट दे दिया | बहुत ख़ुशी - ख़ुशी सभी दवाईयां और ज़रूरी कागज़ात बैग में रखकर तैयार बैठे थे हम घर जाने के लिए |हमारे पास जो भी सामान था हमने वहीं छोड़ दिया था ताकि ज़रूरतमंदों के काम आ सके जिसमें स्टीम लेने और गर्म पानी करने की इलेक्ट्रिक वाली केतली आदि थे |
सारी फॉर्मेलिटी और बिलिंग की प्रक्रिया होते - होते दोपहर के लगभग चार बज चुके थे |हमारा दोपहर का भोजन भी वहीं हो गया था !
तभी अचानक मुझे बेचैनी सी महसूस हुई और हृदय गति बहुत तेज़ हो गई ! इस बैचेनी में भी दिमाग ने समय पर काम किया . मैंने तुरंत ऑक्सीमीटर में पल्स रेट देखा तो काफी बढ़ा हुआ दिखा ! शर्मा जी तुरंत डॉक्टर को बुला लाये और उसी समय मैं अपने डॉक्टर सारडा सर को फोन लगाकर बता ही रही थी कि हॉस्पिटल के डॉक्टर रुम में आ गए . उन्होंने तुरंत ई सी जी किया और कुछ दवाएं दी और मुझे आई सी यू में शिफ़्ट कर दिया !
बता दिया गया कि दो दिन मुझे आई सी यू में रहना था ! लेकिन मुझे इस बात की तसल्ली थी कि हाथ से आई वी सैट निकाल दिया गया था उसे पुनः नहीं लगाया गया था ! पूरे हाथ की नसें ड्रिप लगने से बहुत तकलीफ में थी !
लोगों की असली तकलीफें मुझे यहाँ आई सी यू में आकर देखने मिली ! जीवन में पहली बार इस जगह को देखा था ! पूरे शरीर में मशीनें, नाक में ऑक्सीजन पाईप और सिर के पास गूँजती मॉनिटर की तेज़ आवाज़ !
रात हो चली थी अगल - बगल आमने सामने हर तरफ कोरोना के मरीज़ थे ! बगल वाले का ऑक्सीजन लेबल बहुत कम था और वे ऑक्सीजन मास्क हटाकर इधर उधर कर दे रहे थे ! ड्यूटी पर उपस्थित सिस्टर उन्हें हर बार समझाती और बार - बार लगाकर दे रही थी . सारे स्टाफ और विशेषकर छोटी - छोटी उम्र की उन नर्सों का सेवाभाव मुझे हमेशा याद आता है ! हर वक़्त मुस्कुराते हुए अपने काम को सेवा के भाव और बड़ी लगन से करती, पी पी ई किट के अंदर बंद सभी एक जैसी लगती ! कितनी तकलीफ़ होती होगी इतनी गर्मी में इस पी पी ई किट को पहनकर काम करते हुए यह सोचकर मन श्रद्धा से भर जाता था उनके लिए !
रात बड़ी लम्बी हो गई थी लेटा भी नहीं जा रहा था मुझे ! ज़रा सी कोशिश भी करती तो पल्स रेट बहुत नीचे गिरने लगता था ! लग रहा था कि किसी से सारी रात बात करके इस रात को काट लूँ लेकिन बात भी नहीं की जा सकती थी ! एक बार सिस्टर से रिक्वेस्ट की कि मॉनिटर की आवाज़ कम कर दीजिये लेकिन उसने कहा ये ज़रूरी है आपके लिए !
डॉक्टर मुझे बार बार सोने के लिए कह रहे थे पर मुझे नींद कहाँ से आती ! थोड़ी - थोड़ी देर में नए मरीज़ आ रहे थे ! आख़िर में डॉक्टर ने कहा "अच्छा ठीक है आप बैठकर आँखें बंद करो और अपनी एक - एक सांस को महसूस करो " मैंने ऐसा करने की कोशिश की तो कुछ शांति हुई ! ऐसा ही करते - करते सुबह हो गई ! .... क्रमशः
सच में भयावह हकीकत है यह ।
जवाब देंहटाएंआपबीती कोरोना पीड़ित मानव के जीवन में एक सकारात्मक सोच उत्पन्न करने के साथ ही एक जंग में विजय प्राप्त करने में सहायक होगा।
जवाब देंहटाएंकैसी त्रासदी झेल रहे । भयावह लगता सब ।
जवाब देंहटाएंआपके लेख से मैं भी कुछ लिखने की प्रेरणा ले रही हूं,संध्या जी,क्योंकि मैं भी इस त्रासदी से पीड़ित रही हूं,
जवाब देंहटाएंपढ़कर ही मन विचलित हो रहा ... ईश्वर की कृपा से आप सब स्वस्थ हुए .. शुभकामनाएं अनंत
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