ईश्वर ने हमें सुंदर धरती प्रदान की। हमारे पूर्वजों ने इसे सहेजा हमारे लिए। धरती को माँ का सम्मान दिया, प्रकृति को हर रूप में पूजा, वृक्षों को, नदियों को यहाँ तक की पशु पक्षियों को त्योहारों, पर्वों से जोड़कर यही सीख देने का प्रयास किया।
लेकिन हमने आधुनिकता की होड़ में सबकुछ भुला दिया। अगर कुछ याद भी रखा तो सिर्फ नाम के लिए प्रतीकात्मक रूप से। गाँव से शहर भागा, जंगल उजाड़े, कॉंक्रीट के जंगल बसाए, पर्यावरण को दूषित करने में कोई कसर बाक़ी न रखी, प्रदूषण फैलाए।
लेकिन सुकून फिर भी न पा सका। फिर भागने लगा है यही इंसान शहर से गाँव की ओर, ढूंढ़ने लगा है पेड़ों की शीतल छाँव, कल-कल बहती नदियों, झरनों का संगीत, पक्षियों का कलरव, खुला नीला तारों भरा आसमान।
ये ऊपरी चमक-धमक ये आधुनिक सुख हमें वह आत्मिक सुख नही दे सकते जो धरती की गोद में, प्रकृति के सानिंध्य से मिलता है, तो क्यों न धरती माता के हर श्रृंगार को सहेजे और मानवता को विनाश से बचाने में हर सम्भव प्रयास करें।
#विश्वपृथ्वीदिवस
लेकिन हमने आधुनिकता की होड़ में सबकुछ भुला दिया। अगर कुछ याद भी रखा तो सिर्फ नाम के लिए प्रतीकात्मक रूप से। गाँव से शहर भागा, जंगल उजाड़े, कॉंक्रीट के जंगल बसाए, पर्यावरण को दूषित करने में कोई कसर बाक़ी न रखी, प्रदूषण फैलाए।
लेकिन सुकून फिर भी न पा सका। फिर भागने लगा है यही इंसान शहर से गाँव की ओर, ढूंढ़ने लगा है पेड़ों की शीतल छाँव, कल-कल बहती नदियों, झरनों का संगीत, पक्षियों का कलरव, खुला नीला तारों भरा आसमान।
ये ऊपरी चमक-धमक ये आधुनिक सुख हमें वह आत्मिक सुख नही दे सकते जो धरती की गोद में, प्रकृति के सानिंध्य से मिलता है, तो क्यों न धरती माता के हर श्रृंगार को सहेजे और मानवता को विनाश से बचाने में हर सम्भव प्रयास करें।
#विश्वपृथ्वीदिवस
धरती की गोद में, प्रकृति के सानिंध्य से मिलता है, तो क्यों न धरती माता के हर श्रृंगार को सहेजे और मानवता को विनाश से बचाने में हर सम्भव प्रयास करें। .... बिल्कुल सही कहा आपने 👍
जवाब देंहटाएंधरती माता के हर श्रृंगार को सहेजने और और मानवता को विनाश से बचाने में हम सब को मिलकर प्रयास करना होगा
जवाब देंहटाएंसंध्या जी बहुत दिनो के बाद आपको लिखते देखकर खुशी हुई।
जवाब देंहटाएंसराहनीय लेख
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