सोमवार, 27 अक्टूबर 2014

धंधा (लघुकथा)

"दीप … दीप … रुक जा बेटा ... "  साईकिल पर मस्ती करता दीप, पीछे से
अचानक आती कार और मेरा घबराकर उठ बैठना देखकर सुमित भी जाग गए। "क्या हुआ ? कोई डरावना सपना देखा क्या? मुझे घबराए देख वो भी परेशान हो गए।  मैं बहुत तेज़ी से हांफ रही थी।  "ऐसे ही बुरा सपना देख लिया" कहकर अपने आप को संयत कर सोने का प्रयत्न करने लगी. लेकिन नींद आँखों से कोसों दूर थी, आज दिन में घटी घटना चलचित्र की भांति घूमने लगी। जब से बेटे को पढ़ने के लिए अपने से दूर भेजा है, हर वक़्त सिर्फ उसी की याद और चिंता सताती रहती है। 

उस दिन शाम को हम घूमने निकले, तभी मज़दूरों की बस्ती का एक बच्चा अचानक गाडी के सामने आ गया। चालक ने इतनी तेज़ी से ब्रेक लगाए कि गाड़ी काफी दूर तक घिसटती चली गई, लेकिन बच्चे को चोट आ ही गई, ज्यादा कुछ नही हुआ.था।  बस्ती के लोगों ने चारों तरफ से उन्हे घेर लिया . बच्चे की माँ जोर जोर से रोने लगी, लोग उनकी गरीबी का वास्ता देकर कोसने लगे. मैं तो बहुत डर गई थी, तभी गाडी के मालिक ने जेब से कुछ रुपये निकालकर उन्हें दे दिए, लोग तुरंत शांत हो गए और  वो लोग भी तेज़ी से गाडी स्टार्ट करके आगे बढ़ गए।

मैं तो इस घटना को लगभग भूल ही चुकी थी, लेकिन आज के हादसे ने सब कुछ याद दिला दिया। हुआ यूँ कि आज  हम भी उसी बस्ती से गुज़र रहे थे कि, जाने कहाँ से इक बच्चा आकर हमारी गाड़ी से टकरा गया. बहुत प्रयत्न के बावज़ूद भी बच्चा घायल से होने से बच ना सका। हमारे साथ भी वही सब दोहराया गया, आखिर में बात पांच सौ रुपए पर जाकर समाप्त हुई, दीपावली में कुछ दिन ही शेष थे और किसी के घर का कुलदीपक घायल है, वह भी हमारे कारण, यह बात मुझे बहुत परेशान कर रही थी । सान्त्वना देने के खयाल से मैं भी उनके पीछे-पीछे उनके डेरे तक चली गई, अचानक मेरी नज़र पिछ्ली बार घायल हुए बच्चे पर गई, जिसका घाव एक सप्ताह बीत जाने पर भी अब तक ताज़ा था। 

हमने जब उस बच्चे की मां से पूछा कि आपने इसका ईलाज़ क्यों नही करवाया तो वहां उपस्थित एक व्यक्ति ने जवाब दिया "अरे इनका तो धंधा है ये  …"  मैं स्तब्ध खड़ी रह गई,   क्या रुपए के लोभ के सामने ममता हार जाती है  …!  या फ़िर मज़बूरी इतनी भी मज़बूर हो सकती है…?

13 टिप्‍पणियां:

  1. मजबूरी ही ज़्यादा है । हालात जो न करवाये

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  2. एक माँ की ममता इतनी क्रूर नहीं हो सकती।

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  3. कटु एवं दुखद सत्य ! पैसा हासिल करने के लिये मजबूरी बहुत कुछ करवा लेती है इनसे !

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  4. कुछ लोग जांगरचोर और कामचोर होते हैं, इसलिए धन प्राप्ति का सरल मार्ग ढूंढते हैं। पेट तो चराचर जगत के सभी प्राणियों के साथ लगा हुआ है, पर मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो "पापी पेट" के सहारे सारे बुरे कर्म करता है। धिक्कार है ऐसे लोगों को, आपने इस महामारी का यथार्थ चित्रण किया है। शुभकामनाएँ।

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  5. भूख के आगे ममता भी बौनी पड़ जाती है...

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  6. कभी ऐसे धांडे मे बच्चे की जान ही चली गई तो... आपने इस धन्दे का यतार्थ चित्रण किया है . बधाई.

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  7. एक कटु सत्य...कई बार इस धंधे और मज़बूरी में अंतर करना मुश्किल हो जाता है...बड़े लोग भी कई बार यह तरीका ब्लैक मेल करने के लिए अपनाते हैं, मेरे साथ भी एक बार ऐसा हो चुका है...

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  8. सामजिक परिस्थति पे तीखा व्यंग ... पर ये धंधा कितनी मजबूरी में किया जाता होगा ...

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  9. दुःख की बात है कि लोग ऐसा भी करते हैं

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  10. बहुत ही दुःख की बात है आज के समय में
    सामजिक परिस्थति पे तीखा व्यंग

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