नियती घट की
अंतिम बूंदों सी
विदा बेला पर
जीवन रेखा के
समाप्ति काल तक
ऐसे लगी रहेगी
दृष्टि उस द्वारे पर
जैसे कोई मोर
व्याकुल नेत्रों से
बैठ तकता है
घिर-घिर बरसते
रिक्त होते मेघ को
जैसे कोई चातक
प्यासा तरसता है
स्वाति की बूँद को
और ..........!
गुजर जाता है
एक महायुग...
very nice expression sandhya ji
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंइस मायायुग की प्रतीक्षा भी लम्बी लगती है ...
जवाब देंहटाएंगहरे भाव ...
बहुत गहन और सुन्दर अभिव्यक्ति ......
जवाब देंहटाएंजैसे कोई चातक
प्यासा तरसता है
स्वाति की बूँद को
अह्ह्ह बस यही प्यास होनी चाहिए |
और वह क्षण कभी हाथ नहीं आता...
जवाब देंहटाएंBahut Sunder....
जवाब देंहटाएंबेहद गहन भाव
जवाब देंहटाएंकितने बेबस है इसके आगे सब.. सुन्दर रचना संध्या जी .
जवाब देंहटाएंआस है... जाती नहीं..सुन्दर रचना.
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