बावली है...
आजकल उसे
चंदामामा, बिल्ली मौसी,
चिड़िया रानी, परियों के
सपने नहीं आते
उनकी जगह
सियार, भेड़िये,सांप
धुंए के उड़ते हुए
बवंडरों ने ले ली है
बहुत कोशिश की उसने
लेकिन इन्हें बदल ना सकी
धीरे - धीरे समझने लगी है
सोते जागते हर पल
उसके देह और मन पर
जीवन भर.........!
अदृश्य नज़रों का पहरा है
सपनो पर भी....
आजकल उसे
चंदामामा, बिल्ली मौसी,
चिड़िया रानी, परियों के
सपने नहीं आते
उनकी जगह
सियार, भेड़िये,सांप
धुंए के उड़ते हुए
बवंडरों ने ले ली है
बहुत कोशिश की उसने
लेकिन इन्हें बदल ना सकी
धीरे - धीरे समझने लगी है
सोते जागते हर पल
उसके देह और मन पर
जीवन भर.........!
अदृश्य नज़रों का पहरा है
सपनो पर भी....
बेहद सुन्दर ..रचना . सटीक उदगार . मन का डर .. सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा है |सपने कहाँ कहाँ से आते हैं शायद मन के सोच पर निर्भर करता है |बढ़िया रचना है |
जवाब देंहटाएंआशा
सपने में भी असुरक्षा के डर का अहसास ,,, रचना पसंद आई,,,बधाई
जवाब देंहटाएंrecent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
ये अनजाना भय...न जीने देता है,न सोने...
जवाब देंहटाएंबहुत गहन अभिव्यक्ति..
सस्नेह
अनु
भावनात्मक अभिव्यक्ति विवाहित स्त्री होना :दासी होने का परिचायक नहीं आप भी जाने इच्छा मृत्यु व् आत्महत्या :नियति व् मजबूरी
जवाब देंहटाएंkaisi vidambna hai....
जवाब देंहटाएंअसुरक्षा और डर का अहसास अब सपनों पर भी
जवाब देंहटाएंआ गया है... बहुत ही सहजता से भावों को प्रस्तुत किया है..
भावपूर्ण रचना....
सच में सपने भी कहीं न कहीं हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी से प्रभावित होती है ,,,
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभियक्ति !
पहरा ही नियति बन गयी है..
जवाब देंहटाएंअदृश्य नज़रों का पहरा है
जवाब देंहटाएंसपनो पर भी....
....लाज़वाब अहसास और उनकी अभिव्यक्ति...शायद कोई इस नियति को बदल सके...
वाकई अदृश्य नजरों का पहरा है
जवाब देंहटाएंसपने के माध्यम से बहुत ही
सुन्दर कटाक्ष .....या कहें व्यथा ...
बधाई ...
सोते जागते हर पल
जवाब देंहटाएंउसके देह और मन पर
जीवन भर.........!
अदृश्य नज़रों का पहरा है
सपनो पर भी....
बहुत सुन्दर
सटीक अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंयथार्थ को कहती सटीक रचना
जवाब देंहटाएंबावली है...
जवाब देंहटाएंआजकल उसे
चंदामामा, बिल्ली मौसी,
चिड़िया रानी, परियों के
सपने नहीं आते
हर आँखों में यही आलम है बेगुनाह पर ही पहरा है
कैसी विडम्बना है ....कैसा संत्रास.....दिन रात उठते बैठे ...बस सिर्फ डर का वास
जवाब देंहटाएंBeautiful Presentation.
जवाब देंहटाएंआदरणीया दीदी बेहद सुन्दर पंक्तियाँ शानदार प्रस्तुति हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसादर
स्त्री के बचपना और उसके सपनों पर पहरा है... गहन अभिव्यक्ति, शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंबहुत गहन ।
जवाब देंहटाएंbahut gahara bhav .
जवाब देंहटाएंकितना कठोर है सच ... गहरी संवेदना लिए ...
जवाब देंहटाएंसटीक
जवाब देंहटाएंओह....
जवाब देंहटाएंमंगल कामनाएं !