साहित्य की सभी विधाओं का अपना-अपना महत्व है। जिसमें कहानी, कविताएं, व्यंग्य, यात्रा वृतांत, रिपोर्ताज इत्यादि होते हैं। मेरा ध्यान सिर्फ़ कविताओं पर ही था। आज मैने अपने जीवन की पहली कहानी "पगार" लिखी है। अगर आपको पसंद आए तो साधुवाद की अधिकारी रहूंगी...
पल्लवी ओ पल्लवी, कहाँ हो तुम? कब से मुंह धो कर बैठा हूँ, आधा घंटा हो गया अभी तक नाश्ता नहीं लाई। जल्दी करो मुझे ऑफ़िस में देर हो रही है। कल भी टिंकु को स्कूल पहुचाने के कारण देर हो गयी थी। बॉस ने बहुत डांट पिलाई थी। - कमल ने खीजते हुए कहा.
जब तक वो नहीं मिलती नाश्ता
मिलने से रहा- पल्लवी ने बेड
रुम से ही जवाब दिया।.
क्या???
पगार...........
किसकी पगार ?
मेरी पगार और किसकी पगार - चादर
घड़ी करती हुई बेडरुम से बाहर
आकर बोली
अरे तुम ये क्या कह रही हो।
मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा।
- कमल ने आश्चर्य भरी नजरों से
पल्लवी को देखा।
तुम मुझे ऐसे क्यों देख रहे
हो, मैं घर के काम करती हूँ. तुम्हारे
बच्चे पालती हूँ. खाना बनाके परोसती
हूँ, कपडे धोती हूँ. सुबह से
शाम तक जी तोड़ मेहनत करती हूँ,
इन सबकी मुझे पगार मिलनी ही
चाहिए. कितनी पगार दोगे पहले
बताओ तभी नाश्ता मिलेगा।
क्या बडबड लगा रखी है? तुम्हे किस बात के पैसे चाहिए? सुबह-सुबह
ये पगार - बिगार क्यों लगा रखी
है? इन टीवी चैनलों ने तुम्हारा दिमाग खराब कर रखा है। मुझे
लगता है कि वो लाल झंडे वाली
आंटी तुम्हारे कान भर गयी। तुम घर
के काम करती हो न तो क्या ये घर तुम्हारा नहीं है? बच्चे तुम्हारे नहीं
हैं क्या? तुम तो शहर की काम वाली
बाई जैसे पगार दो पगार दो की
रट लगा रही हो तुम्हारा दिमाग ठीक
है कि नहीं?- कमल ने गुस्से में
कहा।
"मैं पूरे होश में हूँ. मुझे
किसी पागल कुत्ते ने नहीं काटा
है. सुना है अब सरकार पति की
पगार में हिस्सा देने का कानून
बनाने वाली है."
आं........ सरकार का दिमाग ख़राब
हो गया है क्या? ऐसे उलटे सीधे
निर्णय लेने लगी है सरकार।
पति - पत्नी में लड़ाई कराने का
काम भी करने लगी ये सरकार? और तुम्हे ये सब कैसे पता चला?
कल अखबार में पढा था तभी से
सोच रही थी कि तुम्हे आज कह ही
दूं।... दिल्ली की संसद में महिला
बाल विकास मंत्रालय की तरफ
से एक प्रस्ताव रखा है कि
पति की कमाई का दो प्रतिशत हिस्सा
पत्नी को पगार के रूप में दिया
जाये. ये कानून पास होना ही है,
इसीलिए अभी से मेरी पगार तय
कर दो. कितनी पगार दोगे बोलो??
अरे तुम फ़ालतु की बातें छोड़ो
और जल्दी से नाश्ता लेकर आओ।
नहीं तो मै बाहर ही कर लूँगा।
रहने दो तुम्हारा नाश्ता।-
गुस्से से कमल ने पैर पटकते
हुए दरवाजे की तरफ़ रुख किया।
तभी कॉल बेल बजी। दरवाजा खोलने
पर पल्लवी के पापा दिखाई दिए।
आते ही बोले -" न सूत न कपास,
जुलाहों में लट्ठा लट्ठ। मैं
काफ़ी देर से दरवाजे पर खड़ा तुम्हारा
वार्तालाप सुन रहा था। अरे
ऐसे कानून कभी पारित होते हैं
?कानून बने या न बने औरत तो घर
की लक्ष्मी होती न? घर में जो
भी होता है वह सबका होता है ?
हमारी संस्कृति में हम नारी
को लक्ष्मी मानते हैं, लक्ष्मी
धन की देवी होती है। सुख समृद्धि
की दात्री होती है। क्या अब
लक्ष्मी को भी पगार मांगना
पड़ेगा ? घोर कलयुग आ गया है यदि
ऐसा ही रहा तो लड़की वाले पहले
ही पूछने लगेंगे कि तुम मेरी
बेटी को कितनी पगार दोगे? अगर
यह स्थिति आ गयी तो सारे सामाजिक
संबंध छिन्न भिन्न हो जाएगें।
वह कौन कलंकिनी होगी जो अपने
बच्चों को दूध पिलाने के पैसे
लेगी ?
पापा की बातें पल्लवी और कमल
खड़े हुए सुन रहे थे। उन्होने
आगे कहा - बेटी हमने दुनिया देखी
है। खोपड़ी के बाल यूं ही धूप
में सफ़ेद नहीं किए। पता नहीं
किससे बददिमाग की उपज है यह।
हमारे यहाँ कन्यादान का रिवाज
है.विवाह के समय बेटी का पिता
जवाई से अपनी बेटी को सुखी रखने
और कोई कमी ना होने देने का वचन
लेता है, ऐसा नहीं पूछता कि पगार
कितनी दोगे .अरे मैं कमाके लाता
हूँ तो पगार कहाँ रखता हूँ तेरी
माँ के पास ही न? कहाँ खर्च
किये कभी पूछता हूँ क्या ? पगार
मांगने का हक सिर्फ़ उसी को है
जिसके बाप ने उसकी माँ को पगार
दी हो।
पत्नी को अर्धागिनी ही नहीं,
उत्मार्ध भी कहा गया। वह पति
के शरीर का उत्तम आधा भाग है
समझती है ना तू गृहस्थी के संसार
में जीवन की गाड़ी दोनों को मिलकर
ही चलानी पड़ती हैं, तू घर संभालती
है, कमल बाहर काम करता है, इसने
कभी तुझसे खाना-कपडे के पैसे
मांगे हैं क्या?? हाँ जितनी जरुरत
हो तुझे सोच - समझ के खर्च कर
ले. परन्तु फ़ालतु बातों पर घर
में विवाद नहीं होना चाहिए।
इससे घर का वातावरण अशांत होने
से आर्थिक और शारीरिक हानि
ही होती है। जा बेटी चाय बना
कर ले आ।
सही व्यंग्य ...आज कल टीवी,मीडिया,और नयी सोसाइटी ने हम हाउस वाइफ का दिमाग खराब करके रखा हुआ है .....गृह लक्ष्मी को पगार ???????
जवाब देंहटाएंप्रवाहमय प्रेरक कहानी,,बहुत सुन्दर सराहनीय प्रयास,बधाई संध्या जी,,,
जवाब देंहटाएंrecent post : बस्तर-बाला,,,
बधाई संध्या जी....बड़िया प्रयास !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें!
प्रासंगिक लगी कहानी..... बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सराहनीय प्रयास,बधाई संध्या जी,,,
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (23-01-13) के चर्चा मंच पर भी है | अवश्य पधारें |
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ |
गृह लक्ष्मी को पगार ? बहुत सुन्दर कहानी,
जवाब देंहटाएंएक विचारणीय बात जिस पर भी सबका ध्यान देना जरूरी है …………पहला प्रयास सार्थक रहा ……बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कहानी ... सहज ढंग से समझा गई
जवाब देंहटाएंहा हा ... मस्त है कहानी ... सामयिक ... ओर बहुत प्रभावी ...
जवाब देंहटाएंबधाई हो कहानी लेखन की पहली शुरुआत पर ...
बहुत रोचक कहानी..
जवाब देंहटाएंमुझे डर है कोई आपको 'दकियानूस' न साबित कर दे। अगर इस बात से आपको भय नहीं तो आपके दुस्साहस को प्रणाम। बधाई व शुभकामनाएं!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी कहानी .....
जवाब देंहटाएंकहानी लिखने का पहला प्रयास बहुत हि उत्तम रहा....
जवाब देंहटाएंसफल प्रयास...बहुत बढीया कहानी .....
:-)
वाह पहला प्रयास इतना दमदार ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया प्रस्तुति !!
आपकी पहली कहानी ही प्रभावित कर गयी . यूँ ही लिखते रहिये..
जवाब देंहटाएंसुन्दर कहानी है...साहित्य की इस विधा में भी हाथ आजमाते रहिए।।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसटीक आलेख!
सुन्दर प्रयास.....सराहनीय ।
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी कहानी...शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंविलंब से पहुचे, रास्ते में ट्रैफ़िक जाम था। देश में इतने अधिक व्हीआईपी हो गए हैं कि कब कहाँ जाम लग जाए पता नहीं चलता। :)
जवाब देंहटाएंपहली कहानी ही किसी मंजे हुए कथाकार सी लगती है। वैसे कहानियाँ मैं कम ही पढता हूँ लेकिन आपकी कहानी एक सार्थक संदेश देती है। पति एवं पत्नी दोनो एक दूसरे के पूरक हैं। दोनो के बिना आपसी सहयोग के गृहस्थी की गाड़ी चलना नामुकिन है। प्रकृति ने जिसको जो काम सौंपा है उसे वह करना है। प्रकृति के विरुद्ध किया गया कोई भी काम लाभप्रद नहीं होता।
अच्छा हो गया जो एन वक्त पर पल्लवी के पापा आ गए और उसको बात समझ में आ गयी। अगर उसके ससुर होते तो समझने समझाने का काम थोड़ा कठिन हो जाता। :) :) :)
बहुत रोचक और सफल प्रयास...शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंपहला प्रयास ...लगा नहीं पढ़कर...इतना सहज बहाव..कोई रोड़ा नहीं ...कहीं बहाव अटका नहीं...कहानी की पहली खूबी ...दूसरी कहानी बिना रुके एक ही सांस में पढ़ जाये ...दोनों ही खूबियाँ आपकी कहानी में थी ...बाधाई ..बस ऐसे ही लिखती तहिये...:)
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