दुखों से प्यार है, मुझे
यही कहा था ना तुमने
और मुझे...
तुम पर फक्र है
जख्म को सहेजा
वेदनाओं की सीमा से परे
बगैर पैरासिटामाल के
आंसुओं के समन्दर को
अपनी आँखों में जगह दी
कितने तूफ़ान उठे
पर छलकने ना दिया
कवि ही पढ़ सकता है
आँखों में छिपी वेदना
कैसे समझेगा भला
तुम्हारे माथे के घाव को
कुमकुम का टीका
समझने वाला
अपने रिसते जख्मों पर
चन्दन का लेप करने वाला
देखो...वह अश्वत्थामा
भटकर रहा है अनवरत
अपने जख्मों के लिए
बेटाडीन मांगते द्वार-द्वार....
तुम भूलकर भी
द्वार बंद मत करना
ना ही उसे इंकार करना
क्योंकि... वह एक बेटाडीन ही है
जो उसके जख्म भरेगा
वही तुम्हारे लिए भी लाभकारी होगा ...
क्योंकि... वह एक बेटाडीन ही है
जवाब देंहटाएंजो उसके जख्म भरेगा ,,,,,सुंदर अभिव्यक्ति ,,,,
recent post: गुलामी का असर,,,
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जवाब देंहटाएंआदरणीया दीदी बहुत ही सुन्दर रूप दिखाया है आपने इस रचना हार्दिक बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंदर्द के फूल भी खिलते हैं,बिखर जातें हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..एक चिकित्सकीय रचना..
जवाब देंहटाएंकोई कैसे समझेगा इस दर्द को ? दर्द तो दर्द ही देकर समझाता है ..
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (26-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
Bdhai ...sundar Rachna ke liye
जवाब देंहटाएंhttp://ehsaasmere.blogspot.in/2013/01/blog-post_26.html
नये पुराने के अनूठे संगम के साथ उत्कृष्ट प्रस्तुति ! गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंवाह....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना......
सस्नेह
अनु
अच्छी सुन्दर रचना बधाइ
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