Bahut Sunder....
वायु से तेज जिसकी गति हो, कौन रोक सकता है उसे ....बहुत ही सुन्दर भाव ....सचमुच कितनी भी उफनती नदी हो समंदर में समा जाना है उसे .....बधाई
बहुत सुंदर
वाह, बढियाबहुत सुंदर
गहन भावों का सम्प्रेषण ......! ललित जी ने कवितायें मस्त अंदाज में प्रस्तुत प्रस्तुत की हैं .....! मजा आ गया ....ऐसे प्रयास होने चाहिए ...!
या सुनामी लाओगे ?
कुछ आक्रोश समुद्र में भी हलचल मचा देते हैं !
गहन भाव. आक्रोश बहुत सशक्त हो सकता है.लोहड़ी, मकर संक्रांति और माघ बिहू की शुभकामनायें.
आत्मसात तो शायद फिर भी कर ले ... रोकना उसके बस में भी नहीं ...गहरे भाव लिए ...
कम से कम शब्दों में बहुत कुछ लिख दिया गया। नाइस संध्या।
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
kya bat hainchand lafzo mein bahut kuch kah diya aapanecheck my bloghttp://drivingwithpen.blogspot.in/
सुंदर भाव,,,,समन्दर में भी कभी सुनामी आ जाती है,,,recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
वाह , कुछ शब्दो मे कितना कुछ कह दिया ।बहुत खूबसूरत। मकर सक्रांति की शुभकामनायें
वाह..
किसी के रोके न रुकेगा ये सैलाब अब ।
वाह.....समंदर की क्या औकात !!!बहुत बढ़ियासस्नेहअनु
वाह...बहुत सुन्दर..
समंदर को भी उफ़न जाने दो..
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ . सुंदर प्रस्तुति वाह .बहुत सुन्दर
wahhh...Bahut khoobsurat Pnaktiya...http://ehsaasmere.blogspot.in/
wah....kya baat hai.
बहुत सुंदर भाव..
वाह ... बहुत खूब कहा आपने ...
वाह विशालता की पराकाष्ठा
कुछ आक्रोश संवेदनशील पंक्तियाँ....
बहुत खूब,,,,जब आक्रोश चरम पर हो तो रोक पान नामुमकिन है ,,,,सुन्दर रचना !
लाजबाब संवेदनशील पंक्तियाँ..recent post : बस्तर-बाला,,,
YAKINAN ROK SAKENGE YADI WO MEETHE PAANI KA SAMUNDAR HO TO ANYATHA ....
Bahut Sunder....
जवाब देंहटाएंवायु से तेज जिसकी गति हो, कौन रोक सकता है उसे ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भाव ....सचमुच कितनी भी उफनती नदी
हो समंदर में समा जाना है उसे .....बधाई
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह, बढिया
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
गहन भावों का सम्प्रेषण ......! ललित जी ने कवितायें मस्त अंदाज में प्रस्तुत प्रस्तुत की हैं .....! मजा आ गया ....ऐसे प्रयास होने चाहिए ...!
जवाब देंहटाएंया सुनामी लाओगे ?
जवाब देंहटाएंकुछ आक्रोश समुद्र में भी हलचल मचा देते हैं !
जवाब देंहटाएंगहन भाव. आक्रोश बहुत सशक्त हो सकता है.
जवाब देंहटाएंलोहड़ी, मकर संक्रांति और माघ बिहू की शुभकामनायें.
आत्मसात तो शायद फिर भी कर ले ... रोकना उसके बस में भी नहीं ...
जवाब देंहटाएंगहरे भाव लिए ...
कम से कम शब्दों में बहुत कुछ लिख दिया गया। नाइस संध्या।
जवाब देंहटाएंभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
जवाब देंहटाएंkya bat hain
जवाब देंहटाएंchand lafzo mein bahut kuch kah diya aapane
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सुंदर भाव,,,,
जवाब देंहटाएंसमन्दर में भी कभी सुनामी आ जाती है,,,
recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
वाह , कुछ शब्दो मे कितना कुछ कह दिया ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत। मकर सक्रांति की शुभकामनायें
वाह..
जवाब देंहटाएंकिसी के रोके न रुकेगा ये सैलाब अब ।
जवाब देंहटाएंवाह.....
जवाब देंहटाएंसमंदर की क्या औकात !!!
बहुत बढ़िया
सस्नेह
अनु
वाह...बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंसमंदर को भी उफ़न जाने दो..
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत पंक्तियाँ . सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह .बहुत सुन्दर
wahhh...Bahut khoobsurat Pnaktiya...
जवाब देंहटाएंhttp://ehsaasmere.blogspot.in/
wah....kya baat hai.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव..
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत खूब कहा आपने ...
जवाब देंहटाएंवाह विशालता की पराकाष्ठा
जवाब देंहटाएंकुछ आक्रोश संवेदनशील पंक्तियाँ....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,,,,
जवाब देंहटाएंजब आक्रोश चरम पर हो तो रोक पान नामुमकिन है ,,,,
सुन्दर रचना !
लाजबाब संवेदनशील पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंrecent post : बस्तर-बाला,,,
YAKINAN ROK SAKENGE YADI WO MEETHE PAANI KA SAMUNDAR HO TO ANYATHA ....
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