शनिवार, 29 दिसंबर 2012

प्रीतनिया.... संध्या शर्मा

 
गीत नया क्या गाऊं साथी
छेड़ूँ क्या वीणा पर तान
क्रंदन उर की हर धडकन में
पीड़ा होती प्रबल महान

 
छूटी लय,ताल बिखरी है 
बिसरा सकल सुरों का भान
मेरे मन के राग राग से
कैसे हो अबतक अनजान

उपमाएं तुम ही मेरी हो
तुम ही मेरे हो उपमान
तुम बिन कैसे मैं पर खोलूं
तुम बिन कैसे भरूं उड़ान
 
तुम उषा की स्वर्णिम आभा
तुम बिन मैं दिवस की सांझ
बेकल मन क्यों तुमको चाहे
क्यों तुममे बसते हैं प्राण

हिरण्यगर्भ सुरभित सुमन
निसदिन संचित नेह सुजान
सुर ताल लय मृदंग किंकणी
तेरी बाट तके है नित मान

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर, एक लाइन याद आ रही है

    किसको अपने गीत सुनाऊं
    जग सारा बहरा लगता है.

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  2. उपमाएं तुम ही मेरी हो
    तुम ही मेरे हो उपमान
    तुम बिन कैसे मैं पर खोलूं
    तुम बिन कैसे भरूं उड़ान,,,

    वाह,,बहुत ही सुंदर भाव ,,,,

    recent post : नववर्ष की बधाई

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  3. बहुत खुबसूरत शब्दो मे मनोभाव को उजागर किया है..सुंदर भाव ,,,,

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  4. वाह !लय और ताल मन को लुभा रही है..

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  5. उपमाएं तुम ही मेरी हो
    तुम ही मेरे हो उपमान
    तुम बिन कैसे मैं पर खोलूं
    तुम बिन कैसे भरूं उड़ान

    beautiful lines with greaceful emotions and feelings

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  6. बहुत प्यारी रचना....
    सुन्दर!!!

    सस्नेह
    अनु

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  7. आपकी कविता मन के संवेदनशील तारों को झंकृत कर गई। मेरी कामना है कि आप अहर्निश सृजनरत रहें। धन्यवाद।

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  8. आदरणीया दीदी मन के भीतर उठ रहे सवालों को कविता के रूप में सुन्दरता से सभी के समक्ष उतारा है संवेदनशील प्रस्तुति हार्दिक बधाई स्वीकारें.

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  9. मन में उठते भावों को सुन्दर सार्थक शब्द दिए हैं ...
    बहुत सुन्दर रचना ..

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  10. वाह! बहुत भावपूर्ण रचना..शब्दों और भावों का अद्भुत संयोजन...नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें..

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