करती हूँ अभिनय
आती हूँ रंगमंच पर प्रतिदिन
भूमिका पूरी नहीं होती
हर बार ओढ़ती हूँ नया चरित्र
सजाती, संवारती हूँ
गढ़ती हूँ खुद को
रम जाती हूँ रज कर
कि खो जाये "मुझमे"
"मैं" कहीं....
अब तो हो गई है आदत
किरदार निभाने क़ी
हर आकार में ढल जाती हूँ
पानी सी.....
पहचान खोकर शायद
पा सकूँ खुद को
समंदर में सीप तो बहुत मिल जाते हैं
सीप में मोती हर किसी को नहीं मिलता...
आती हूँ रंगमंच पर प्रतिदिन
भूमिका पूरी नहीं होती
हर बार ओढ़ती हूँ नया चरित्र
सजाती, संवारती हूँ
गढ़ती हूँ खुद को
रम जाती हूँ रज कर
कि खो जाये "मुझमे"
"मैं" कहीं....
अब तो हो गई है आदत
किरदार निभाने क़ी
हर आकार में ढल जाती हूँ
पानी सी.....
पहचान खोकर शायद
पा सकूँ खुद को
समंदर में सीप तो बहुत मिल जाते हैं
सीप में मोती हर किसी को नहीं मिलता...
पहचान खोकर शायद
जवाब देंहटाएंपा सकूँ खुद को
समंदर में सीप तो बहुत मिल जाते हैं
सीप में मोती हर किसी को नहीं मिलता...
हर किरदार में ढाल जाएँ तो बात ही क्या ... बहुत सुंदर रचना
मेरे पास ,मेरे हर पल हैं
जवाब देंहटाएंफिर भी ,
मैं अपने अनुपस्थित पल लिए
बार बार जीती हूँ ...पर किस के लिए ?...अनु
और सीप की खोज चलती रहती है अनवरत...ताउम्र...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संध्या जी.
सस्नेह
अनु
पहचान खोकर शायद
जवाब देंहटाएंपा सकूँ खुद को
समंदर में सीप तो बहुत मिल जाते हैं
सीप में मोती हर किसी को नहीं मिलता.
बहुत गहरे विचार
बेहतरीन रचना..
:-)
आप बने वो मोती सीप की
जवाब देंहटाएंयही शुभकामना है !!
सुंदर अभिव्यक्ति ....
समंदर में सीप तो बहुत मिल जाते हैं
जवाब देंहटाएंसीप में मोती हर किसी को नहीं मिलता...
निःशब्द करती लाइन प्रणाम
पहचान खोकर शायद
जवाब देंहटाएंपा सकूँ खुद को
समंदर में सीप तो बहुत मिल जाते हैं
सीप में मोती हर किसी को नहीं मिलता.
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ ।
शुभकामनाये संध्या जी।
पहचान खोकर शायद
जवाब देंहटाएंपा सकूँ खुद को
बेहतरीन भाव ......!
करती हूँ अभिनय
जवाब देंहटाएंआती हूँ रंगमंच पर प्रतिदिन
भूमिका पूरी नहीं होती
हर बार ओढ़ती हूँ नया चरित्र
सजाती, संवारती हूँ
अत्यंत सूक्षम चिंतन और चित्रण किया है आपने . बहुत बहुत शुभकामनायें ....!
समंदर में सीप तो बहुत मिल जाते हैं
जवाब देंहटाएंसीप में मोती हर किसी को नहीं मिलता...
बेहतरीन।
सादर
सीप में मोती किसी को नहीं मिलता, यह मनुष्य की ट्रैजिक नियति है इसे आपने सुंदर शब्दों में ढाला है। संध्या मेरी बड़ी बहन हैं वो लिखती नहीं है लेकिन जब भी भांजे के स्कूल में कविता पाठ होता है मुझे लिखने कहती है कल मैंने बापू पर एक कविता लिखी। जब भी आपका ब्लाग देखता हूँ मुझे बहन के साथ बिताए हुए बचपन के क्षण याद आ जाते हैं।
जवाब देंहटाएंअब तो हो गई है आदत
जवाब देंहटाएंकिरदार निभाने क़ी
हर आकार में ढल जाती हूँ
पानी सी..... बेजोड़
बहुत सुंदर भाव !
जवाब देंहटाएंवाह... वाह..... बहुत ही सुन्दर.....बहुत ही शानदार.....हैट्स ऑफ इसके लिए ।
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
सीप में मिली मोती सी रचना...सुन्दर..
जवाब देंहटाएंसमंदर में सीप तो बहुत मिल जाते हैं
जवाब देंहटाएंसीप में मोती हर किसी को नहीं मिलता...आपने सही कहा
भावमय बेहतरीन प्रस्तुति,,,,,सुंदर रचना,,,,,
RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
अच्छी भावाभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंकिरदार निभाने की आदत ही पड जाती है ..
एक नजर समग्र गत्यात्मक ज्योतिष पर भी डालें
khoobsoorat....detached rah kar kartvy bhi achche se poora hota hai aur takleef bhi kam hoti hai .
जवाब देंहटाएंसही कहा सब को सब कुछ नही मिलता....बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंसंसार एक रंगमंच है। ईश्वर जिसे जो किरदार सौंपा है उसे वह निभाना है। फ़िर पात्र को एक मुखौटा उतार कर दुसरा पहन लेना है, अन्य किरदार निभाने के लिए। यह सिलसिला अनवरत चलता रहता है और चल भी रहा है। इस बीच अगर अभीष्ट की प्राप्ति हो जाए तो वह ईश्वरीय कृपा ही है। सुंदर सारगर्भित रचना के लिए आभार, हरेली अमावस की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई
जवाब देंहटाएंशSSSSSSSSSS कोई है
सच , बिलकुल सच | उत्कृष्ट |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना .
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
जवाब देंहटाएंसमंदर में सीप तो बहुत मिल जाते हैं
जवाब देंहटाएंसीप में मोती हर किसी को नहीं मिलता...
....बहुत खूब! लाज़वाब अभिव्यक्ति...
सच कहा आपने
जवाब देंहटाएंआती हूँ रंगमंच पर प्रतिदिन
भूमिका पूरी नहीं होती
हर बार ओढ़ती हूँ नया चरित्र
सजाती, संवारती हूँ
बेहद खूबसूरत , आभार .
सादर
आपका सवाई
ऐसे नबंरो पर कॉल ना करे. पढ़ें और शेयर