इतनी बडी बस्ती में
मुझे एक भी इंसान नहीं दिखता
चेहरे ही चेहरे हैं बस
किस चेहरे को सच्चा समझूँ
किसे झूठा मानूं
और उस पर इन सबने
अपनी जमीन पर बाँध रखी है
धर्म की ऊंची - ऊंची इमारतें
इन्ही में रहते हैं ये मुखौटे
क्षण प्रतिक्षण बदल लेते हैं
नाम, जाति, रंग,रूप
बसा रखा है सबने मिलकर
मुखौटों का एक नया शहर
जिन्हें चाहिए यहाँ सिर्फ मुखौटे
जिनमे मन, ह्रदय,
भावना कुछ नहीं
बस फायदे नुकसान के सबंध
इंसान जिए या मरे
कोई फर्क नहीं पड़ता
इन मुखौटों को
लगे हैं कारोबार में
श्मशान विस्तारीकरण के
ये नहीं जानते
मृत्यु केवल अंत नहीं
आरंभ भी है
भय नहीं आनंद भी है
जीवन एक परवशता,
अनिश्चितता है
सिर्फ और सिर्फ
मौत की निश्चितता है
साफ-साफ नज़र आने लगे हैं
इन मुखोटों के पीछे छिपे चेहरे
बदलेंगे मुखौटे लेकिन
नहीं बदलेंगे उनके चेहरे
इस सच्चाई के साथ
मैंने भी जीना सीख लिया है
मुखौटो की बस्ती में
अपना घर बना लिया है!!!!!
मुझे एक भी इंसान नहीं दिखता
चेहरे ही चेहरे हैं बस
किस चेहरे को सच्चा समझूँ
किसे झूठा मानूं
और उस पर इन सबने
अपनी जमीन पर बाँध रखी है
धर्म की ऊंची - ऊंची इमारतें
इन्ही में रहते हैं ये मुखौटे
क्षण प्रतिक्षण बदल लेते हैं
नाम, जाति, रंग,रूप
बसा रखा है सबने मिलकर
मुखौटों का एक नया शहर
जिन्हें चाहिए यहाँ सिर्फ मुखौटे
जिनमे मन, ह्रदय,
भावना कुछ नहीं
बस फायदे नुकसान के सबंध
इंसान जिए या मरे
कोई फर्क नहीं पड़ता
इन मुखौटों को
लगे हैं कारोबार में
श्मशान विस्तारीकरण के
ये नहीं जानते
मृत्यु केवल अंत नहीं
आरंभ भी है
भय नहीं आनंद भी है
जीवन एक परवशता,
अनिश्चितता है
सिर्फ और सिर्फ
मौत की निश्चितता है
साफ-साफ नज़र आने लगे हैं
इन मुखोटों के पीछे छिपे चेहरे
बदलेंगे मुखौटे लेकिन
नहीं बदलेंगे उनके चेहरे
इस सच्चाई के साथ
मैंने भी जीना सीख लिया है
मुखौटो की बस्ती में
अपना घर बना लिया है!!!!!
झूठ और सच के बीच अब इतनी हल्की सी लकीर है कि ...कौन क्या है पता ही नहीं चलता .....खूबसूरत रचना ......सादर
जवाब देंहटाएंआज के जीवन का, शत प्रतिशत ज्वलंत चित्रण!
जवाब देंहटाएंमुखौटे लगाने वाले जानते तो अवश्य हैं, किन्तु इस बात
को स्वीकार नहीं करते कि ईश्वर ये मुखौटा ही नहीं पूरी खाल
से आपके सूक्ष्म शरीर (आत्मा) को निकाल किन किन चीजों की खाल में भेज देता है ...
बहुत ही बढ़िया .....
अखंड सत्य बयां करती सुन्दर और सटीक रचना, मुझे बेहद पसंद आई दिली बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंबदलेंगे मुखौटे लेकिन
जवाब देंहटाएंनहीं बदलेंगे उनके चेहरे
इस सच्चाई के साथ
मैंने भी जीना सीख लिया है
मुखौटो की बस्ती में
अपना घर बना लिया है!!
सच को बयान करती . आपने अपने दिल की मानी अच्छा किया .
सत्य का बयान करती सुन्दर रचना विजय्दाश्मीन पैर हार्दिक शुभ कामनाएं
जवाब देंहटाएंशाश्वत सत्य को बयान करती हुई कविता और इसा दुनियां के कथित यथार्थ को उजागर करती हुई रचना के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंसत्य को उजागर करती सटीक रचना..
जवाब देंहटाएंसत्य की सफल अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंमैंने भी जीना सीख लिया है
जवाब देंहटाएंमुखौटो की बस्ती में
अपना घर बना लिया है!!!!!geena padta hai ......bahut acchi prastuti....
सत्य कहती सटीक रचना..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति...
:-)
मुखौटों के पीछे ही छिपे हैं सब चेहरे ....
जवाब देंहटाएंजिसमें अपनी शक्ल नज़र आये वह अपना हो सकता है ... पर जुआ ही है
जवाब देंहटाएंअच्छा किया जो जीना सीख लिया
व्यक्ति जीवन में अगर इस अहसास से आगे बढ़ता है तो उसका जीवन निश्चित रूप से सभी के लिए प्रेरक होता है .....लेकिन विडंबना यह है कि हम जीवन की वास्तविकताओं को नजरअंदाज करते हैं और मुखौटों को धारण करते हैं ..... फिर जीवन जैसा होना चाहिए था वैसा नहीं होता ......!
जवाब देंहटाएंमृत्यु केवल अंत नहीं
जवाब देंहटाएंआरंभ भी है
भय नहीं आनंद भी है
बहुत गंभीर बात अत्यंत भावपूर्ण.
सच बात कहती कविता
जवाब देंहटाएंसादर
यहाँ जीने के लिए मैंने भी एक मुखौटा लगा लिया है....
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और गहन रचना..
सस्नेह
अनु
मुखौटों का सच जानकर भी ....हमें उन्हें स्वीकारना है ...
जवाब देंहटाएंकटु सत्य है.... जिससे आपने अवगत कराया है....
जवाब देंहटाएंमृत्यु केवल अंत नहीं
जवाब देंहटाएंआरंभ भी है
भय नहीं आनंद भी है
हमारी सनातन सोच यही कहती है, जन्म और मरण पर भारतीय दर्शन कुछ ऐसा ही तो कहता है। बहुत अच्छी रचना के लिए बधाई ।
जीवन की आपाधापी में व्यक्ति स्वयं मुखौटा बन जाता है, अपने असल रुप को छुपाने के लिए। मायावी दुनिया से संघर्ष करने के लिए उसे नित नए मुखौटे धारण करने पड़ते हैं। इन्ही मुखौटों के साथ न चाहते हुए भी जीवन बसर करना पड़ता है। जिसने समझ लिया दुनिया के सार को वह मुखौटों के साथ भी गुजर कर लेता है..........
जवाब देंहटाएंइस सच्चाई के साथ
जवाब देंहटाएंमैंने भी जीना सीख लिया है
मुखौटो की बस्ती में
अपना घर बना लिया है!!!!!yahi sahi hai......
बहुत गहन और सशक्त पोस्ट।
जवाब देंहटाएंytam-****
जवाब देंहटाएंइस सच्चाई के साथ
जवाब देंहटाएंमैंने भी जीना सीख लिया है
मुखौटो की बस्ती में
अपना घर बना लिया है!
सच्चाई के साथ जीना और मन की बात मानना चाहिए,,,,,
RECENT POST LINK...: खता,,,
बहुत सुन्दर .बहुत खूब,बेह्तरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंगंभीर बात कह डाली आपने कविता के माध्यम से
जवाब देंहटाएं