रफ़्ता रफ़्ता घर को सजाना होगा,
सपनों की जन्नत को बसाना होगा.
कभी तो आएगा चलकर यहाँ वो,
सफ़र में जो मुसाफ़िर बेगाना होगा.
दर्द दिया है जो उस जालिम ने,
रफ़्ता रफ़्ता उसे भी भुलाना होगा.
वस्ल की बात हो तो क्या कहने,
गमों को बंदनवार सा सजाना होगा.
बहुत भटके इस जहाँ में सितमगर,
गर वो मिल जाएं तो ठिकाना होगा.
खूबसूरत गजल
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव से सजी सुन्दर गजल...
जवाब देंहटाएंहर नज्म सुन्दर है...
गमों को बंदनवार सा सजाना होगा...
जवाब देंहटाएंवाह...
बहुत सुंदर गज़ल.....
वस्ल की बात हो तो क्या कहने,
जवाब देंहटाएंगमों को बंदनवार सा सजाना होगा... क्या कहने
Bahut Khoob...
जवाब देंहटाएंवाह ,,,, बहुत अच्छी नज्म सुंदर भाव,......
जवाब देंहटाएंRECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
बहुत सुन्दर गजल...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गज़ल्।
जवाब देंहटाएंवस्ल की बात हो तो क्या कहने,
जवाब देंहटाएंगमों को बंदनवार सा सजाना होगा.
खूबसूरत गजल
बहुत सुंदर // बहुत खूब
जवाब देंहटाएं@वस्ल की बात हो तो क्या कहने,
जवाब देंहटाएंगमों को बंदनवार सा सजाना होगा.
गमों को बंदनवार सा सजा कर सारे गिले शिकवे दूर करने हैं। तभी वस्ल का मजा है। शेर वजनदार है और बिंब काफ़ी अच्छा बन पड़ा है। साधूवाद, भाव बनाए रखें।
बहुत प्रेरक और सुंदर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंsundar ...har line shandar hain
जवाब देंहटाएंThanks
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