सोमवार, 12 दिसंबर 2011

मौन के शब्द... संध्या शर्मा


तारों में हँसती
फूलों सी खिलती
आज भी इस मन में
बसती है तू
मिट्टी की खुश्बू
अब भी तुझे लुभाती है
पहिली बारिश में
अब भी भीगती है तू
अब भी संग मेरे
धूप में चलती है
आँचल की शीतल छाँव
अब भी करती है तू
मेरी अंखियों के झरोखों से
अब भी झांकती है तू
अब भी मन की देहरी पर
दीप जलाती है तू
बोलती सी आँखें तेरी
हरपल बतियाती हैं मुझसे
फिर भी दुनिया कहती है
मौन हूँ मैं
और मौन है तू....

 

32 टिप्‍पणियां:

  1. पर तू तो मेरे साथ है , मुझीमें लीन - बहुत ही बढ़िया

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  2. संध्या जी,..अच्छी रचना सुंदर पोस्ट,...बधाई
    मेरी नई रचना..
    नेताओं की पूजा क्यों, क्या ये पूजा लायक है
    देश बेच रहे सरे आम, ये ऐसे खल नायक है,
    इनके करनी की भरनी, जनता को सहना होगा
    इनके खोदे हर गड्ढे को,जनता को भरना होगा,

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  3. खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |

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  4. जब एक ही हैं तो शब्दों की क्या आवश्यकता ...... बहुत सुंदर

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  5. भावों को खूबसूरती से उकेरा है ... बहुत सुन्दर

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  6. बहुत खूबसूरती से पिरोया है भावों को ...

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  7. वाह! बहुत खूबसूरत भावपूर्ण प्रस्तुति है आपकी.
    मौन के शब्द दिल में गुंजन कर रहे है जी.


    मेरे ब्लॉग पर आयीं आप और सुन्दर भावपूर्ण टिपण्णी भी की
    आपने,इसके लिए मैं दिल से आभारी हूँ आपका.

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  8. मौन और मुखरता के प्रतिमान भिन्न हैं... जिस वार्ता की बात कविता कर रही है... उसे सुनने समझने के लिए एक अलग शक्ति चाहिए जो प्रायः नहीं मिलती... इसीलिए सुन्दर वार्तालाप से अनजान लोग मौन समझ लेते हैं शब्दों को...!
    सुन्दर रचना!

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  9. सुन्दर शब्दों से सुसज्जित लाजवाब रचना लिखा है आपने !बधाई!
    मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    http://seawave-babli.blogspot.com/

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  10. ये मौन कुछ ऐसा ही होता है , बहुत ही प्यारी लगी संध्या जी , आपकी रचना.

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  11. बोलती सी आँखें तेरी
    हरपल बतियाती हैं मुझसे
    फिर भी दुनिया कहती है
    मौन हूँ मैं
    और मौन है तू....

    ....सच में मौन की एक अलग ही भाषा होती है...बहुत सुंदर प्रस्तुति..

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  12. मेरी अंखियों के झरोखों से
    अब भी झांकती है तू
    अब भी मन की देहरी पर
    दीप जलाती है तू

    मौन के ये शब्द बहुत ही अच्छे लगे।

    सादर

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  13. अति सुन्दर |
    शुभकामनाएं ||

    dcgpthravikar.blogspot.com

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  14. मौन की भाषा अमर होती है
    शब्दों में शीरीं द्खल होती है
    उनसे मिलने की हसरत लिए
    यूँ ही रोज शामो शहर होती है

    सुंदर कविता के लिए आभार

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  15. बहुत सुन्दरता से एहसास लिखीं है आपने ...!

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  16. जहाँ शब्दों की सीमा समाप्त होती है वहीँ से मौन की भाषा शुरू होती है !
    बहुत ही सुन्दर कविता !

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  17. सुंदर भाव की सुंदर रचना .............

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  18. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.....मन को छू गई.....

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  19. ये मौन भी बहुत कुछ कह जाता ही ... गहरे एहसास को बयान कर जाता है ...

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  20. गहन संवेदनशील...बहुत सुंदर अल्फाज़ ..
    बहुत बहुत आभार.....संध्या जी

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  21. अकेलेपन का विश्वसनीय याथी है मौन।
    बहुत सुंदर कविता।

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  22. अकेलेपन का विश्वसनीय साथी है मौन।
    बहुत सुंदर कविता।

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  23. ▬● संध्या जी , आपकी लिखी रचना पहली बार देखी... पसंद आया आपका कहने का अंदाज...
    मौन हूँ मैं
    और मौन है तू.... ( बहुत खूब )

    ठीक लगे तो यहाँ आकर भी देखिये :
    Meri Lekhani, Mere Vichar..
    Gaane Anjaane.. (Bhoole Din, Bisri Yaaden..)
    .

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  24. कल 11/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  25. बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन रचना....

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