ताकती हूँ उसे बड़ी आस से,
छूना चाहती हूँ पास से,
सोचती हूँ उसे देखकर,
जब मैं पुकारूँ तो,
आयेगा वह इस धरती पर,
अगर नहीं आ सका,
तो बुला लेगा मुझे वहां,
तभी ख़याल आता है,
ये धरती भी तो कभी,
ऐसी ही रही होगी,
स्वच्छ, निर्मल, प्रदुषणमुक्त
क्या कसूर था उसका,
क्यूँ ये हाल हुआ उसका,
पर दोष है किसका...?
डर जाती हूँ सोचकर,
और...
नहीं बुलाना चाहती उसे यहाँ,
ना जाना चाहती हूँ वहां,
ओ मेरे प्यारे से चाँद,
तुम जहाँ हो वहीँ रहो,
मेरी दुआ है,
पीड़ा इस धरती सी
कभी ना सहो....
अलग अंदाज में पर्यावरण के प्रति सजगता का सन्देश देती - सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंकविता और उसके भाव बहुत ही सराहनीय हैं। लेकिन इस कविता के साथ लगी तस्वीर आंखो के सामने से हटती ही नहीं है। बहुत सुंदर तस्वीर है।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं..
निश्चित तौर पर धरती की पीड़ा सभी को समझने की ज़रूरत है।
जवाब देंहटाएंपर्यावरण संरक्षण का सार्थक संदेश देती हुई कविता।
सादर
Ek bhawpoorn rachna ke liye badhai.
जवाब देंहटाएंkya bat hain
जवाब देंहटाएंend ne to dil moh lia
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंभावनाओं से भरपूर.....
जवाब देंहटाएंआदर सहित
कमाल की कल्पना और संवेदना हैं आपकी.
जवाब देंहटाएंचाँद भी लाचार सा हो आपकी बातों पर गौर
कर रहा होगा.
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार.
behtreen prastuti
जवाब देंहटाएंbhavuk rachna
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...सुन्दर
जवाब देंहटाएंधरती का सिर्फ इतना ही कष्ट नहीं है संध्या जी... धरती तो करोड़ों लोगों के लातों के प्रहार भी सहती है.... कल्पना किजीए कि अगर चांद को भी ये प्रहार सहना पड़े तो....
जवाब देंहटाएंवैसे मेरे ब्लॉग पे मेरी एक कविता है... उसका लिंक मैं यहां दे रहा हूं... अगर पसंद आए तो टिप्पणी जरुर करें
http://aakarshangiri.blogspot.com/2010/10/blog-post.html
आकर्षण
काश। हम सभी ये समझ पाते।
जवाब देंहटाएंApki is rachna par hum kya tippani karen,
जवाब देंहटाएंek ped tum lagao ek ped hum lagaye or hariyali bharpur karen....
Bahut hi achi rachna........
Jai hind jai bharatApki is rachna par hum kya tippani karen,
ek ped tum lagao ek ped hum lagaye or hariyali bharpur karen....
Bahut hi achi rachna........
Jai hind jai bharat
आपकी चिंता जायज है सराहनीय ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...संध्या जी..
जवाब देंहटाएंसुंदर सन्देश ....अर्थपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंछूना चाहती हूँ पास से,
जवाब देंहटाएंसोचती हूँ उसे देखकर,
जब मैं पुकारूँ तो,
आयेगा वह इस धरती पर,
अगर नहीं आ सका,
तो बुला लेगा मुझे वहां,
सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है...........संध्या जी..
सुन्दर कविता.बेहतरीन शब्दों का चयन बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंsabki apni apni peeda hai...
जवाब देंहटाएंभावनाओं से भरपूर.....
जवाब देंहटाएंआपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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धरती कि पीड़ा को कहती अच्छी पास्तुती ..जहाँ जो है वहीं खुश रहे
जवाब देंहटाएंपर्यावरण की चिंता को सही तरीके से रचना के मध्यम से रक्खा है ...
जवाब देंहटाएंभावनाओं से भरपूर.**** हार्दिक शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंओ मेरे प्यारे से चाँद,
जवाब देंहटाएंतुम जहाँ हो वहीँ रहो,
मेरी दुआ है,
पीड़ा इस धरती सी
कभी ना सहो....
...बहुत बढिया अर्थपूर्ण प्रस्तुति!
सुन्दर कविता.... सार्थक भाव...
जवाब देंहटाएंसादर...
सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिए आभार
जवाब देंहटाएंbahut komal, nirmal bhaav bhari rachna.
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
बहुत खूब लिखा है आपने !शानदार और सार्थक रचना!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
सुंदर और गहन रचना
जवाब देंहटाएंसार्थक संदेश देती हुई कविता.
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंआदरणीया संध्या जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
ओ मेरे प्यारे से चांद,
तुम जहां हो वहीं रहो,
मेरी दुआ है,
पीड़ा इस धरती सी
कभी ना सहो....
बहुत सुंदर रचना है … पर्यावरण के प्रति आपकी उत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति ! आभार !
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut sundar . <3
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