भ्रष्ट आचरण की लाश कन्धों पर लिए,
निकल पड़ते हैं मौत के सौदागर,
आतंक और दहशत फ़ैलाने के लिए,
अनेकों के कुलदीपक बुझ जाते हैं,
कितने अपनों से बिछड़ जाते हैं,
तब खून पानी सा बहता है,
आंसू पानी बन जाते हैं,
और लहलहाते हैं,
साम्प्रदायिकता के बाग़,
खिल उठता हैं, आतंकवाद
जो चुभता हैं कांटे बनकर,
कर देता है बेगुनाहों के सीने छलनी,
इन्हें ख़त्म करने के लिए काँटों को नहीं,
पेड़ों को काटना होगा,
पूरा जड़ से ही,
हमेशा - हमेशा के लिए.....
निकल पड़ते हैं मौत के सौदागर,
आतंक और दहशत फ़ैलाने के लिए,
अनेकों के कुलदीपक बुझ जाते हैं,
कितने अपनों से बिछड़ जाते हैं,
तब खून पानी सा बहता है,
आंसू पानी बन जाते हैं,
और लहलहाते हैं,
साम्प्रदायिकता के बाग़,
खिल उठता हैं, आतंकवाद
जो चुभता हैं कांटे बनकर,
कर देता है बेगुनाहों के सीने छलनी,
इन्हें ख़त्म करने के लिए काँटों को नहीं,
पेड़ों को काटना होगा,
पूरा जड़ से ही,
हमेशा - हमेशा के लिए.....
इन्हें ख़त्म करने के लिए काँटों को नहीं,
जवाब देंहटाएंपेड़ों को काटना होगा,
पूरा जड़ से ही,
हमेशा - हमेशा के लिए
बिल्कुल सत्य कहा है आपने,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
इन्हें ख़त्म करने के लिए काँटों को नहीं,
जवाब देंहटाएंपेड़ों को काटना होगा,
पूरा जड़ से ही,
हमेशा - हमेशा के लिए.....
sahi kaha hai aapne kash aesa hi
rachana
jo koi katega nahi... kabhi nahi
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा है इस कविता में.
जवाब देंहटाएंसादर
साम्प्रदायिकता के बाग़,
जवाब देंहटाएंखिल उठता हैं, आतंकवाद
जो चुभता हैं कांटे बनकर,
कर देता है बेगुनाहों के सीने छलनी,
इन्हें ख़त्म करने के लिए काँटों को नहीं,
पेड़ों को काटना होगा,
पूरा जड़ से ही,
हमेशा - हमेशा के लिए...
koi nahi samjhega .hume khud hi ek alakh jagani hogi samj me tabhi sayed samj aaye.......inhe hamar derd.......sunder aur bhavpurn rachna ke liye aapko hardik badhayi
jakhm bhi hume hi lage hai aur iska ilaj bhi hume hi kern hai ...............
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंकितने अपनों से बिछड़ जाते हैं,
तब खून पानी सा बहता है,
आंसू पानी बन जाते हैं,
और लहलहाते हैं,
इन्हें ख़त्म करने के लिए काँटों को नहीं
जवाब देंहटाएंपेड़ों को काटना होगा,
पूरा जड़ से ही
सही कहा ... अब जड़ों को काटने का समय आ गया है ... पर इसमें सबकी भागीदारी चाहिए ...
जवाब देंहटाएंkash ki koi aisa beej hi n bne jisse ise ped bnne our fir use katne ki jroorat pde .
जवाब देंहटाएंkya vo subha kbhi to aayegi ?
Very true.. Don't know when are we going to be doers not just thinkers..
जवाब देंहटाएंऐसे पौधों को जड़ से ही काटना होगा....
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअच्छी भावनाएं।
पर क्या यह संभव है। स्थिति काफी शर्मनाम है।
कल खबर देख रहा था...... मुंबई में विस्फोट के बाद से हो रही बारिश ने आतंकी घटना के सबूत को नष्ट कर दिया है।
अरे यह बताएं कि पहले जिसमें सबूत भी थे, मामला अदालत में पहुंचा और सजा भी हो गई अपराधियों को उनका क्या हुआ.....
अफजल गुरू और कसाब को उनके किए की सजा कम मिलेगी यह एक बडा सवाल है... आतंकवाद.... नक्सलवाद... इनसे नुकसान किसका है आम आदमी का ही....
बहुत सुन्दर कविता लिखा है आपने! सच्चाई को बखूबी शब्दों में पिरोया है! बेहतरीन प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंइन्हें ख़त्म करने के लिए काँटों को नहीं,
जवाब देंहटाएंपेड़ों को काटना होगा,
पूरा जड़ से ही,
हमेशा - हमेशा के लिए.....
वाह,सही समाधान सुझाया है आपने !
वर्तमान परिस्थिति को रखांकित करती हुई बेहतरीन कविता !
आभार !
well written.. I agree with the point u made in above lines.
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने, पर पता नहीं कब आएगा वो दिन...
जवाब देंहटाएं------
जीवन का सूत्र...
लोग चमत्कारों पर विश्वास क्यों करते हैं?
इन्हें ख़त्म करने के लिए काँटों को नहीं,
जवाब देंहटाएंपेड़ों को काटना होगा,
पूरा जड़ से ही,
हमेशा - हमेशा के लिए.....
सही कहा आपने....पर इसमें सबकी भागीदारी चाहिए ..
यही तो हमारे देश का दुर्भाग्य है की सब जानते समझते हुवे भी हम सुधरना नहीं चाहते |
कोई हमें दो जूता मार के निकल जाए तो भी हम प्रतिक्रया करने वाले जीव नहीं हैं |
हमारा तो बस एक ही नारा है अहिंसा परमो धर्मः |
जो भी कुछ हो रहा है हमारे भाग्य में लिखे अनुसार ही हो रहा है !
जब इश्वर चाहेगा तभी हमारे दिन सुधरेंगे |
कोई लाख करे चतुराई करम का लेख टले ना मेरे भाई .................
कल 17/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत खूबसूरत भावनाएं दूसरे के दर्द में दर्द महसूस करती हुई क्यु न हो आंखिर इंसान ही तो इंसान का दर्द जान सकता है पर ये सोच कर बहुत दुःख होता है की ऐसा करने वालों की इंसानियत एक बार भी उनसे ये सवाल नहीं करती होगी ?
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण सुन्दर रचना दोस्त |
मर्म-स्पर्शी चिंतन-समाधान सहित.
जवाब देंहटाएंइन्हें ख़त्म करने के लिए काँटों को नहीं,
जवाब देंहटाएंपेड़ों को काटना होगा,
पूरा जड़ से ही,
हमेशा - हमेशा के लिए.....
...आपने सही कहा स्थिति शर्मनाम है।
वर्तमान परिस्थिति पर बेहतरीन कविता
जवाब देंहटाएं.... आपकी लेखनी का बेसब्री से इंतज़ार रहता है.....!
सार्थक पोस्ट ........हमें अपने साथ -साथ पूरी-की -पूरी व्यवस्था को ही बदलना होगा
जवाब देंहटाएंअब जड़ों को काटने का समय आ गया है .....
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत कविता.
जवाब देंहटाएंइन्हें ख़त्म करने के लिए काँटों को नहीं,
जवाब देंहटाएंपेड़ों को काटना होगा,
पूरा जड़ से ही,
हमेशा - हमेशा के लिए.....
बहुत सच कहा है..बहुत मर्मस्पर्शी और सुन्दर रचना..
कड़वी सचाई है आपके शब्दों में .
जवाब देंहटाएंकाश हम मर सकें एक आम मौत .
'इन्हें ख़त्म करने के लिए काँटों को नहीं,
जवाब देंहटाएंपेड़ों को काटना होगा
पूरा जड़ से ही
हमेश-हमेशा के लिए..'
................समाधान देती रचना ....यथार्थ का मार्मिक चित्रण