अन्याय की धुआंधार बारिश में,
संघर्ष वृक्ष के बीज का,
तू अंकुर बन,
जड़ जमा ले गहरे तक और,
फल - फूल,
तूफान उठें, या गरजें बादल,
तुझे आकाश छूना है,
अपने जैसे असंख्य बीजों को,
जन्म देना है.
"मैं एक वृक्ष नहीं,
संघर्ष वृक्ष के बीज का,
तू अंकुर बन,
जड़ जमा ले गहरे तक और,
फल - फूल,
तूफान उठें, या गरजें बादल,
तुझे आकाश छूना है,
अपने जैसे असंख्य बीजों को,
जन्म देना है.
"मैं एक वृक्ष नहीं,
जंगल उगाना चाहती हूँ...
एक बाग नहीं,
संसार सजाना चाहती हूँ...."
संसार सजाना चाहती हूँ...."
snagherso ke beech ek nayi alakh jarur jagegi , jab aap itni sunder rachna likhengi to kaun vidrohi na ban jayega.........sab nyaya ke liye vidroh ker denge.bahut sunder aur bahut hi sarthak rachna ............badhai
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहरी अभिव्यक्ति आपके शब्द बहुत प्रभावित करते है
जवाब देंहटाएंयही बनती जा रही है तुम्हारी विशेषता | खुशी होती है ऐसी रचनाओं को पढ़ कर |
"मैं एक वृक्ष नहीं,
जवाब देंहटाएंजंगल उगाना चाहती हूँ...
एक बाग नहीं,
संसार सजाना चाहती हूँ...."
.....हर शब्द बोलता हुआ बहुत खूब शब्द संयोजन बहुत कमाल का खुबसूरत रचना .......संध्या जी
अपने जैसे असंख्य बीजों को,
जवाब देंहटाएंजन्म देना है.
"मैं एक वृक्ष नहीं,
जंगल उगाना चाहती हूं
बहुत सुंदर भाव
बधाई
hare bhare khwaab...
जवाब देंहटाएंसंघर्ष वृक्ष के बीज का,... जंगल खूब घना हो ... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चाह। बधाई।
जवाब देंहटाएं------
बेहतर लेखन की ‘अनवरत’ प्रस्तुति।
अब आप अल्पना वर्मा से विज्ञान समाचार सुनिए..
बहुत सुन्दर सृजनमयी - प्रण से भरी रचना रची है आपने संध्या जी .आभार
जवाब देंहटाएंमुश्किलें चाहे कितनी आये, ज़िन्दगी नहीं रुकती, वो हमेशा फलती फूलती है.
जवाब देंहटाएं---------------------------------------------
मैंने आपको फोल्लो किया है,
बहुत प्रभावित कर रही है आपकी ये रचना,
जवाब देंहटाएंसादर,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अपने जैसे असंख्य बीजों को,
जवाब देंहटाएंजन्म देना है.
"मैं एक वृक्ष नहीं,
जंगल उगाना चाहती हूं
बहुत सुंदर भाव
बधाई
बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंलिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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Bahut hi gahri abhi waykti.
जवाब देंहटाएंJai hind hai bharatBahut hi gahri abhi waykti.
Jai hind hai bharat
Bahut hi achi rachnaye likhti hai mam aap...padh kar acha lagta hai
जवाब देंहटाएंjai hind jai bharatBahut hi achi rachnaye likhti hai mam aap...padh kar acha lagta hai
jai hind jai bharat
बहुत सुन्दर ही नहीं कमाल की अभिव्यक्ति है आपकी ,संध्याजी.
जवाब देंहटाएंउत्साह और आक्रोश से ओतप्रोत.
आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.
pahli bar aapko pad rahaa hun....
जवाब देंहटाएंbahut achha laga..
gahre vichar aur gahri abhivyakti.....
mere blog par aapka swagat hai....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति बधाई इसी विषय पर मेरी रचना" आक्रोश का बीज" भी है
जवाब देंहटाएंआप की कविता जहाँ समाज को आंदोलित करती है वहीँ आप के मन का ज्वारभाटा जो लावा उगल रहा है --निसंदेह कविता सुन्दर है.
जवाब देंहटाएंमैं एक वृक्ष नहीं,
जवाब देंहटाएंजंगल उगाना चाहती हूँ...
एक बाग नहीं,
संसार सजाना चाहती हूँ....
अच्छी कामना है.
सार्थक सोच से भरी बहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंसुन्दर विचारों से लैस उत्कृष्ट कविता संध्या जी बधाई
जवाब देंहटाएं"मैं एक वृक्ष नहीं,
जवाब देंहटाएंजंगल उगाना चाहती हूँ...
एक बाग नहीं,
संसार सजाना चाहती हूँ...."
काश सबके मन में यही भावना हो...
बहुत खूबसूरत....
बहुत प्यारी अनुकरणीय आशा...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
मन की ये आग[जल्दी मे उपयुक्त शब्द नही मिला, कलमाडी की तरह मुझे भी भूलने की बीमारी हो गयी है]। आगे बढने की प्रेरणा देती है सुन्दर रचना।। ये तमन्ना यूँ ही जवान रहे और आप सुन्दर सा संसार बनायें। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंतूफान उठें, या गरजें बादल,
जवाब देंहटाएंतुझे आकाश छूना है,
अपने जैसे असंख्य बीजों को,
जन्म देना है...
अद्भुत सुन्दर पंक्तियाँ! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त रचना लिखा है आपने!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
'मैं एक वृक्ष नहीं
जवाब देंहटाएंजंगल उगाना चाहती हूँ ...
एक बाग़ नहीं,
संसार सजाना चाहती हूँ...
.............................पावन दृढ़ संकल्प की उत्तम रचना
"मैं एक वृक्ष नहीं,
जवाब देंहटाएंजंगल उगाना चाहती हूँ...
एक बाग नहीं,
संसार सजाना चाहती हूँ....
...सार्थक सोच से भरी बहुत खूबसूरत रचना.
शुभकामनाये..