बुधवार, 6 जुलाई 2011

"मैं तुम्हारा हूँ......" संध्या शर्मा

"तुम मेरी हो........"
उसने धीरे से  कानों में कहा.....!
सुनकर आनंदविभोर हो उठी थी वह 
मनमयूर ख़ुशी से नाचने लगा........

"मैं किसी को इतनी पसंद हूँ
.....!"  
इसकी कल्पना और उसका सुख

उन शब्दों के जादू में उलझकर
भूल बैठी खुद को....
जब भान आया
तो समझा था उसे
उन शब्दों का सच्चा अर्थ
प्रेम की अपेक्षा
स्वामित्व का भाव ज्यादा था उनमे

दोनों को ही
चाहिए परस्पर आधार 
जब ये संसार चलता है, आपसी प्यार
और सामंजस्य से एक दुसरे के...
तो फिर ये स्वामित्व क्यों.....?
 

लुटा देगी खुशियाँ तुमपर सारी
माँग लेगी दुख सारे तुम्हारे
तपोगे जीवन की धूप में उसके साथ
चलना होगा तुम्हे भी
उसके साथ
बोलो...?
चल सकोगे...?

तो फिर कह दो ना.....!
"मैं तुम्हारा हूँ......."    
        

31 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रचना..

    दोनों को ही चाहिए परस्पर आधार
    जब ये संसार चलता है, आपसी प्यार
    और सामंजस्य से एक दुसरे के...
    तो फिर ये स्वामित्व क्यों.....?

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  2. आधार तो परस्पर होता है ... किसी एक से नहीं होता .. स्वामित्व कुछ नहीं होता जहां प्रेम होता है ...

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  3. बस यही कहना मुश्किल होता है……जिस दिन अहम गल जायेगा उस दिन जीवन संवर जायेगा।

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  4. चित्र के साथ साथ बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना ! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!

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  5. क्या मेरा और मेरा अपना ......सारा जग है झूठा सपना . तो फिर किस पर अधिकार और कैसा अधिकार ..न करें किसी से नफरत और कर सकें तो करें प्यार ..आपका आभार

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  6. "मैं किसी को इतनी पसंद हूँ.....!"
    इसकी कल्पना और उसका सुख
    उन शब्दों के जादू में उलझकर
    भूल बैठी खुद को....
    जब भान आया
    तो समझा था उसे
    उन शब्दों का सच्चा अर्थ
    प्रेम की अपेक्षा
    स्वामित्व का भाव ज्यादा था उनमे... aur tab , andar kuch chatakta hai

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  7. प्यार में 'मैं' और 'तू' का भेद खत्म हो जाता है.
    'मै' या 'मेरा' से राग,'तू' और 'तेरा' होने से द्वेष होता है.
    लेकिन 'तू' 'मै' हो जाये और 'मै' 'तू' हो जाये.यानि मै और तू के बीच भेद मिट जाये,तो प्यार हो जाता है.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

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  8. bahut sunder rachna yadi aham ko door karke ek doosre ke ho jaayen to jindagi beshkeemti ho jaye.

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  9. shandar kavita
    sach kaha aapane
    love main dono taraf hona chahiye

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. दोनों को ही चाहिए परस्पर आधार
    जब ये संसार चलता है, आपसी प्यार
    और सामंजस्य से एक दुसरे के...
    तो फिर ये स्वामित्व क्यों.....?


    बहुत प्रभावित करती रचना ..... यह प्रश्न तो बनता है.....

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  12. लुटा देगी खुशियाँ तुमपर सारी
    माँग लेगी दुख सारे तुम्हारे
    तपोगे जीवन की धूप में उसके साथ
    चलना होगा तुम्हे भी उसके साथ
    बोलो...?
    चल सकोगे...?
    तो फिर कह दो ना.....!
    "मैं तुम्हारा हूँ......."

    Bahut sunder

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  13. संध्या जी,
    आपकी रचना दिल को छू गयी.
    "मैं तुम्हारा हूँ" कहना तो आसान है.
    निभाना मुश्किल है.
    काश यही शब्द हम भगवान् के लिए बोल पाते.

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  14. सुंदर और प्रभावी रचना।
    सच है प्‍यार में '' मैं'' और '' तुम'' के भाव खत्‍म हो जाते हैं,
    रह जाता है तो सिर्फ '' हम''
    शुभकामनाएं आपको।

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  15. तुम मेरी हो और मैं तु्म्हारा हूँ दोनो के कहने में जमीन आसमान का अंतर है। इस कविता वो अभिव्यक्ति हुई है।

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  16. "दोनों को ही चाहिए परस्पर आधार
    जब ये संसार चलता है"

    प्रभावशाली प्रस्तुति

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  17. सूक्ष्म भाव का गहन विवेचन करती ............सुन्दर रचना
    मैं और तुम जब एकाकार होकर हम हो जाएँ , तभी सच्चा प्रेम प्रादुर्भूत हो सकता है |

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  18. वास्तविक प्रेम का सुन्दर चित्रण

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  19. सुन्दर भाव गुंथन और परस्पर सम्बन्धों में बराबरी मांगती रचना .

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  20. लुटा देगी खुशियाँ तुमपर सारी
    माँग लेगी दुख सारे तुम्हारे
    तपोगे जीवन की धूप में उसके साथ
    चलना होगा तुम्हे भी उसके साथ
    बोलो...?
    चल सकोगे...?
    तो फिर कह दो ना.....!
    "मैं तुम्हारा हूँ.......
    बहुत प्रभावित करती रचना .......संध्या जी

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  21. अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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  22. आपकी रचना जितनी बार पढिए, लगता है पहली बार पढ रहा हूं।

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  23. लुटा देगी खुशियाँ तुमपर सारी
    माँग लेगी दुख सारे तुम्हारे
    तपोगे जीवन की धूप में उसके साथ
    चलना होगा तुम्हे भी उसके साथ
    बोलो...?
    चल सकोगे...?
    तो फिर कह दो ना.....!
    "मैं तुम्हारा हूँ......."

    "sach me mai tumhara hu"...........bahut sunder rachna marmik prastuti ke liye badhai

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  24. क्या प्यार होता है ? शायद नही , लगता है , अहसास होता है , लगाव को दोस्ती और रिश्ते को हम समझ बैठते हैं प्यार । बहुत कठिन है डगर प्रेम की ।

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