"इश्क, मोहब्बत, व्यापार हो या हो कोई सरकार
पेट में जब तक पड़े न रोटी, सब कुछ है बेकार!!!"
असमय बारिश
आंधी तूफ़ान
रूठ गया क्यों
इनसे भगवान
जस का तस
इनका दर्द
बढ़ता जाता
क़र्ज़ का मर्ज़
गीली आखें
पोंछ रहा
चुपचाप खड़ा
देख रहा
पानी में मिलते
खून पसीने से सिंचे
खेत - खलिहान
हलाकान- परेशान
कोई है जो सुने.... ?
धरती का कर्ज चुकाते
कृषि-प्रधान देश के
इन किसानो की
दु:ख-भरी दास्तान ...!!!
पेट में जब तक पड़े न रोटी, सब कुछ है बेकार!!!"
असमय बारिश
आंधी तूफ़ान
रूठ गया क्यों
इनसे भगवान
जस का तस
इनका दर्द
बढ़ता जाता
क़र्ज़ का मर्ज़
गीली आखें
पोंछ रहा
चुपचाप खड़ा
देख रहा
पानी में मिलते
खून पसीने से सिंचे
खेत - खलिहान
हलाकान- परेशान
कोई है जो सुने.... ?
धरती का कर्ज चुकाते
कृषि-प्रधान देश के
इन किसानो की
दु:ख-भरी दास्तान ...!!!
दर्द भरी रचना..... ! सच हमारे किसान की हालत बहुत ही दयनीय हैं ...
जवाब देंहटाएंदुखद .... मर्मस्पर्शी भाव
जवाब देंहटाएंहालात का बयां करती सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : आ गए मेहमां हमारे
दर्द भरा अहसास
जवाब देंहटाएंउफ्फ्फ अत्यंत मार्मिक |
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति. से साक्षात्कार हुआ । मेरे नए पोस्ट
जवाब देंहटाएं"सपनों की भी उम्र होती है " (Dreams havel life) पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है।
किसानो कि सच्चाई कहती बहुत ही संवेदनशील रचना..
जवाब देंहटाएंकिसानों की तो नियति यही है, वर्षा आधारित खेती एक जुआ है, जो कभी मालामाल कर देता है तो कभी कंगाल …… आपने बहुत अच्छा शब्द चित्र खींचा है।
जवाब देंहटाएंसंध्या जी दर्द भरी रचना किसानो कि सच्चाई कहती बेहद संवेदनशील रचना.....!!
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