यही है वह एकांत
वही पेड़ और शाखाएं
स्मृतियों की छायाएँ
यहीं से उगा था
चाँद प्रीत का
यहीं मिले थे पहली बार
ठीक उसी जगह जा पहुंचे
जो जगहें जानी पहचानी थी
हमारा स्वागत नहीं करतीं
फिर क्यों आ जाते हैं यहाँ
बार-बार ………!!
शायद कोई फ़ागुनी बयार
उतार फेंके पातों के पीले पर्दे
सूनी डालों पर हरियाए
कुछ अपनापन
अलसाई दुपहरी में
बौरा उठे इनका भी मन
इन सूनी घडि़यों में
मन की बनकर धड़कन
देखो एक कली कुलबुलाई
सेमल के अरुण कपोलों पर
वासंती लाली छाई..........
वही पेड़ और शाखाएं
स्मृतियों की छायाएँ
यहीं से उगा था
चाँद प्रीत का
यहीं मिले थे पहली बार
ठीक उसी जगह जा पहुंचे
जो जगहें जानी पहचानी थी
हमारा स्वागत नहीं करतीं
फिर क्यों आ जाते हैं यहाँ
बार-बार ………!!
शायद कोई फ़ागुनी बयार
उतार फेंके पातों के पीले पर्दे
सूनी डालों पर हरियाए
कुछ अपनापन
अलसाई दुपहरी में
बौरा उठे इनका भी मन
इन सूनी घडि़यों में
मन की बनकर धड़कन
देखो एक कली कुलबुलाई
सेमल के अरुण कपोलों पर
वासंती लाली छाई..........
बस ये लाली यूँ ही छायी रहे..
जवाब देंहटाएंकोमल भावों से गुंथी पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंसूनी डालों पर हरियाए
जवाब देंहटाएंकुछ अपनापन
................. अनुपम भाव संयोजन
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-03-2014) को मिली-भगत मीडिया की, बगुला-भगत प्रसन्न : चर्चा मंच-1549 पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन समोसे के साथ चटनी फ्री नहीं रही,ऐसे मे बैंक सेवाएँ फ्री कहाँ - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत ही सुंदर .....
जवाब देंहटाएंवाह , खूबसूरत अभिव्यक्ति है !!
जवाब देंहटाएंआपकी खासियत यह है दीदी कि आप भावनाओं को व्यक्त करने वाले शब्द ढूंढ लाती हैं
जवाब देंहटाएंसुभानाल्लाह ...... बेहतरीन रचना
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