तुम .....
प्रकृति की अनुपम रचना
तुम्हारा विराट अस्तित्व
समाया है मेरे मन में
और मैं .....
रहना चाहती हूँ हरपल
रजनीगंधा से उठती
भीनी-भीनी महक सी
तुम्हारे चितवन में
चाहती हूँ सिर्फ इतना
कि मेरा हर सुख हो
तुम्हारी स्मृतियों में
और दुःख ........
केवल विस्मृतियों में................!
सुख हमारे और दुःख मेरे …
जवाब देंहटाएंगहन प्रेम की भावना !
प्रेम की विराट अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंbahut achhi rachna ..
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट भाव ......
जवाब देंहटाएंइसीलिये तो प्रेम सुन्दर है....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
सस्नेह
अनु
बहुत उत्तम भाव !
जवाब देंहटाएंnew postकिस्मत कहे या ........
New**अनुभूति : शब्द और ईश्वर !!!
अहा!अहा!अहा!.. सुन्दर है भीनी-भीनी महक..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव लिए सुन्दर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंबहुत ही अर्थपूर्ण ... सुख की स्मृतियाँ ही रहें जीवन में बस ... दुःख का नाम नहीं ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिवयक्ति.....बहुत ही अर्थपूर्ण
जवाब देंहटाएंबहुत गहन सार्थक अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,सुंदर सार्थक प्रस्तुति ...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST - फागुन की शाम.
बहुत सुन्दर .......
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .....
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंhttp://nivedita-srivastava.blogspot.in/2014/03/blog-post.html
जवाब देंहटाएंअपने ब्लाग "संकलन" में आपकी रचना सहेजी है ..... धन्यवाद !