(1)
तू...
चली गई
अच्छा ही हुआ
रहती तो
दिल धडकता
अन्याय के
विरोध में
कभी तो
भड़कता
(2)
अब
सबकी
सुनती हूँ
दबा सकती हूँ
आवाज़ मन की
तू होती तो
हारती
रोज तुझसे
तेरा क़र्ज़
मैं चुकाती
(3)
देख
कैसी निर्लज्ज हूँ
तू नहीं है
फिर भी
बचा रखी हैं
कुछ साँसे
बिन तेरे भी
जीने के लिए
इस शरीर को
देती हूँ रोज
थोड़ी-थोड़ी
अंतरात्मा बिन जीना ..... तीनों ही रचनाएँ गहरी अभिव्यक्ति लिए
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा गहरे भाव लिए सुंदर रचना,,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: रंग गुलाल है यारो,
बहुत ही भावपूर्ण और उम्दा प्रस्तुतिकरण,आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
संध्या जी बहुत ही यथार्थपरक, सामूहिक संवेदना उकेरी है आपने। संतुष्टि तो तब हो जब चाहा गया व्यवहार बन सके।
जवाब देंहटाएंअंतरात्मा की ध्वनि सुन पाने के लिए सम्वेदनशील होना ही पड़ेगा ,अच्छी रचना .....
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (10-03-2013) के चर्चा मंच 1179 पर भी होगी. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी रचना...
जवाब देंहटाएंएक आवाज़
जवाब देंहटाएंतेरी या मेरी
यूँ ही गूंजती रहें
कुछ तेरे दिल,कुछ मेरे दिल
बस वो यूँ ही खुद को
जिन्दा रखे ||...अंजु(अनु)
तीनों ही रचनाएँ भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी
जवाब देंहटाएंयह यादें भी ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ...
तीनों अतरात्मा की आवाज मन को बेध गई
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ...
अंतरात्मा की आवाज और सोच से उपजे विचार.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ.
बहुत सुन्दर रचना... महाशिवरात्रि की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण और उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंlatest postअहम् का गुलाम (दूसरा भाग )
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बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंक्या कहने
मार्मिक ... गहरा दुःख लिए मन की आवाज़ ...
जवाब देंहटाएंपरम को छूती हैं तीनों ..
सुन्दर प्रस्तुति... बधाई
जवाब देंहटाएंतीनों ही रचनाएँ बहुत ही गहन भाव लिए है...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाएँ ..
कई बार यही तो करने का जी होता है.. अंतरात्मा के साथ..
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना..
जवाब देंहटाएंvery nice sandhya .
जवाब देंहटाएंBahut sundar...
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