संभव है वह भूल जाए
लेकिन मैंने संभाल रखा है
तुम न पहचानो मगर
बेखटके आता-जाता है
मेरी कविताओं में
उसका वह एक शब्द ...
देखना एक न एक दिन
मैं तुम्हारे मन में
रोप जाऊंगी बिरवा
उसी शब्द का
फिर खिलेंगे
तुम्हारे मन के द्वार पर
शब्दों के सुन्दर फूल
जिसकी खुशबू से
तुम्हारा आँगन ही नहीं
पूरा संसार महकेगा
बस तुम विश्वास रखना
मन का द्वार खुला रखना....!
लेकिन मैंने संभाल रखा है
तुम न पहचानो मगर
बेखटके आता-जाता है
मेरी कविताओं में
उसका वह एक शब्द ...
देखना एक न एक दिन
मैं तुम्हारे मन में
रोप जाऊंगी बिरवा
उसी शब्द का
फिर खिलेंगे
तुम्हारे मन के द्वार पर
शब्दों के सुन्दर फूल
जिसकी खुशबू से
तुम्हारा आँगन ही नहीं
पूरा संसार महकेगा
बस तुम विश्वास रखना
मन का द्वार खुला रखना....!
लहलहाएगी कविता की लता....
जवाब देंहटाएंमहकाएगी भावों की बेला चमेली......
बहुत सुन्दर.
सस्नेह
अनु
शब्दै मारा गिर पड़ा,शब्दै छोड़ा राज
जवाब देंहटाएंजिन्ही शब्द विवेकिया तिनका सरिगौ काज…
शब्द का एक बिरवा अनंत कथा का रुप ले सक्ता है जो सदियों तक चलती हैं।
सारी महिमा शब्द की है।
गहन भाव समेटे हुए है आपकी कविता।
बिलकुल.... बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना. आपकी अन्य कविताएँ भी बहुत अच्छी हैं.
जवाब देंहटाएंसादर
नीरज 'नीर'
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा):
भावपूर्ण ... प्रेम का बिरवा खिलेगा उम्र भर ...
जवाब देंहटाएंप्रेम के शब्द से प्रेम ही उपजेगा ...
आपके विश्वास से उनका मन का द्वार जरुर खुलेगा।
जवाब देंहटाएंआपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 23/03/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंशब्द का बीज ही विशाल तरु बनता है..सुंदर रचना, आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (23-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
शब्दों की माया अपार है,बसर्ते शब्द रूपी बीज रोप कर विशाल आकार देने की क्षमता होनी चाहिए,,
जवाब देंहटाएंRecentPOST: रंगों के दोहे ,
यही बिरवा तो वटवृक्ष है भावों का.. बहुत ही अच्छी लगी ..
जवाब देंहटाएंरोप जाऊंगी बिरवा
जवाब देंहटाएंउसी शब्द का
फिर खिलेंगे
तुम्हारे मन के द्वार पर
शब्दों के सुन्दर फूल
जिसकी खुशबू से
तुम्हारा आँगन ही नहीं
पूरा संसार महकेगा
बस तुम विश्वास रखना
मन का द्वार खुला रखना....!
मन के अंतस को छूता और झकझोरता बिरवा
बहुत खूब
बस तुम विश्वास रखना
जवाब देंहटाएंमन का द्वार खुला रखना....!
....बहुत खूब! बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
beshak achchhee racana hai jee
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना,सादर आभार.
जवाब देंहटाएंशब्द में सारा अर्थ निहित है -अजर है शब्द!
जवाब देंहटाएंतुम्हारे मन के द्वार पर
जवाब देंहटाएंशब्दों के सुन्दर फूल
जिसकी खुशबू से
तुम्हारा आँगन ही नहीं
पूरा संसार महकेगा
बस तुम विश्वास रखना
मन का द्वार खुला रखना....!बहुत सुन्दर भाव सजोये सुन्दर रचना
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सुन्दर और भावपूर्ण कविता ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंपधारें "चाँद से करती हूँ बातें "
बहुत ही सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन....
:-)
मन के भावों को जब शब्दों का साथ मिलता है तो इस तरह की कविता जन्म लेती है ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंअनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ... आभार
जवाब देंहटाएंMan ko chooti behtreen rachna sandhya ji
जवाब देंहटाएंहोली की अग्रिम शुभकामनाएँ स्वीकारें !
जवाब देंहटाएंबहुत सराहनीय प्रस्तुति.बहुत सुंदर. आभार !
जवाब देंहटाएंले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज
यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली है.
मौसम आज रंगों का , छायी अब खुमारी है
चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
रंगों के पर्व होली की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामंनाएँ!
जवाब देंहटाएंभावुक अनुभूति सार्थक रचना
बहुत बहुत बधाई
होली की शुभकामनायें
aagrah hai mere blog main bhi padharen
aabhar
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल 26/3/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है ,होली की हार्दिक बधाई स्वीकार करें|
जवाब देंहटाएं