कब आऊं?
बरखा ने पूछा
जब इच्छा हो
मैंने कहा
कितना भी भीगो
सूखी ही रहोगी
वह मुस्कुराकर बोली
तुम सुनाने लगे कहानी
एक दिन....!
तुम और मैं साथ-साथ
बैठे थे जिस कागज़ की नाव पर
भिगो गई थी यह उसे
पलट गई थी वह
तब से बैर हो गया
तुमसे बरखा का
वह अलग बरसती रही
तुम अलग
मैं खड़ी रह गई
दोनों के बीच
सूखी नदी की तरह
उमस बढ़ी
अंतस तपता रहा
आज बीज बोने के बाद
स्वीकार कर पाए तुम उसे
बस इतना ही कह सके
कभी तो आएगी वह
राह देखेंगे मिलकर....
बहुत सुन्दर..........
जवाब देंहटाएंमुझे तो भिगो गयी..........
सस्नेह
मनोभावों का सहज सम्प्रेषण ....!
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन सुंदर प्रस्तुति,,,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ,,,,फुहार....: न जाने क्यों,
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबरखा से बैर ... वो भी इतना की भिगो नहीं पाती वो बरसने के बावजूद ... गहरी कल्पना ...
जवाब देंहटाएंअंतस तपता रहा .... अब तो स्वीकार कर लिया न ? भिगो ही देगी बरसा अब तो .... बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबड़ी सुन्दरता से बांधा है भावों को कविता में
जवाब देंहटाएंसरल मनोभावों की प्रस्तुति .... अति सुंदर ....
जवाब देंहटाएंगूढ़ अर्थ से परिपूर्ण बरखा
जवाब देंहटाएंभिगोती बरखा |
जवाब देंहटाएंभीगी=भीगी सी सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंबरखा के एक नए रूप से आवगत करवाया हैं आज आपने ..बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भाव संध्याजी ....!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंकोमल भाव लिए रचना.
वाकई सुंदर है यह रचना ...
जवाब देंहटाएंबधाई !
कभी तो आएगी वह
जवाब देंहटाएंराह देखेंगे मिलकर....
सुंदर रचना ..जागी रहे आस ...शुभकामनायें..
बहुत सुन्दर और मन मोहती रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
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सूचनार्थ
सैलानी की कलम से
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ब्लॉ.ललित शर्मा
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nhawnaon ki bhigi bhigi si abhivyakti.
जवाब देंहटाएंवह अलग बरसती रही
जवाब देंहटाएंतुम अलग
मैं खड़ी रह गई
दोनों के बीच
सूखी नदी की तरह
....बहुत कोमल अहसास..सुन्दर भावपूर्ण रचना...
सुंदर अहसास।
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित पक्तियां। हर शब्द का चयन अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है धन्यवाद।।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण रचना.
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