नवा - जूना...संध्या शर्मा
अरसे से
ठसाठस भरा
अस्त-व्यस्त था
मन का कमरा
आज समय मिला
नए - पुराने
विचारों- भावों
रिश्ते-नातों
यादों-अहसासों को
झाड़-पोंछ
करीने से सहेजा
कुछ टीसती यादों को
बुहार बाहर किया
खाली पड़े फूलदान में
महकते अहसासों को सजाया
बहुत जगह बन गई है
नयी उलझनों-सुलझनो को
दो पल सुस्ताने के लिए...
अच्छा लगता है रीअरेन्जमेन्ट...
जवाब देंहटाएंसुन्दर!!!!
अनु
यादों के अहसासों की सुंदर अभिव्यक्ति ,संध्या जी !!!
जवाब देंहटाएंRECENT POST: गर्मी की छुट्टी जब आये,
bahut hi badhia....
जवाब देंहटाएंmeri is website ko bhi dekhiyega
http://www.theunpredictablegame.org/
ये भी ज़रूरी है..... सुंदर भाव
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसादर
बीच-बीच में ऐसा करना अच्छा है..सुंदर भाव...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे .. बढ़िया।
जवाब देंहटाएंपुरानी यादें, नए अहसास।
जवाब देंहटाएंसुस्ताने का पर्य़ाप्त वक्त दे सकेगा उलझनों का खाली कूडादान...
जवाब देंहटाएंअच्छे विचार संयोजन पद्य में...
बहुत ज़रूरी है समय समय पर अहसासों पर जमी धूल झाड़ना..बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंयादों-अहसासों को
जवाब देंहटाएंझाड़-पोंछ
करीने से सहेजा
कुछ टीसती यादों को
बुहार बाहर किया
खाली पड़े फूलदान में
महकते अहसासों को सजाया------
जीवन में भोगे हुये यथार्थ की गहन अनुभूति
मन को आंदोलित करती रचना
बधाई
अच्छे भाव हैं, सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भाव लिए बेहतरीन कविता.
जवाब देंहटाएंमन का कमरा,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव.
आभार
bahut subdar
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